लोकसभा चुनाव : दिल्ली ने दो बार देश के मतदाताओं की राय के विपरीत किया मतदान

दिल्ली के मतदाताओं ने 17 लोकसभा चुनावों में दो बार देश के मतदाताओं की राय के विपरीत मतदान किया। दोनों बार देश की जनता ने कांग्रेस का साथ दिया, जबकि दिल्ली में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा था।

वर्ष 1967 व 1991 में केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनी थी, लेकिन दिल्ली की जनता ने दोनों ही बार कांग्रेस उम्मीदवारों को करारा झटका दिया। वर्ष 1967 के चुनाव में दिल्ली की सात में से केवल एक ही सीट कांग्रेस जीत सकी थी, जबकि वर्ष 1991 में कांग्रेस के दो उम्मीदवार जीते थे।

वर्ष 1952 से लगातार तीन चुनाव में जीत रही कांग्रेस को वर्ष 1967 के लोकसभा चुनाव के दौरान टिकट बंटवारे को लेकर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी एवं दिल्ली के प्रथम मुख्यमंत्री चौ. ब्रह्मप्रकाश के बीच हुए टकराव का खामियाजा भुगतना पड़ा था। उस समय चौ. ब्रह्मप्रकाश का दिल्ली में काफी रुतबा था।

वे बाहरी दिल्ली से चुनाव जीत गए थे, लेकिन छह सीटों पर कांग्रेस हार गई थी। इन छह सीटों पर उनकी पसंद के उम्मीदवार नहीं थे।वर्ष 1991 में राम मंदिर लहर के बीच कांग्रेस तमाम अनुमानों को झुठलाते हुए केंद्र में सरकार बनाने में कामयाब हुई थी, लेकिन वह दिल्ली की जनता को राम मंदिर लहर में जाने से नहीं रोक सकी थी।

उस चुनाव में कांग्रेस को वर्ष 1967 की भांति बाहरी दिल्ली के अलावा सदर संसदीय क्षेत्र में ही जीत मिली थी। दिलचस्प बात यह है कि वर्ष 1991 में कांग्रेस की लाज सज्जन कुमार और जगदीश टाइटलर ने बचाई थी। वर्ष 1989 के चुनाव में करारी हार के मद्देनजर कांग्रेस ने वर्ष 1991 के चुनाव में अधिक से अधिक सीट जीतने की रणनीति बनाई थी।

इस दौरान उसने टिकट बंटवारे में नवंबर 84 के दंगों के आरोपियों की भी परवाह नहीं की थी। इस तरह उसने दो बार से टिकट से वंचित रहने वाले सज्जन कुमार को बाहरी दिल्ली और जगदीश टाइटलर को सदर क्षेत्र से टिकट दिया था। सज्जन को वर्ष 1984 व 1989 में टिकट नहीं दिया गया था। वहीं, टाइटलर को वर्ष 1989 में करारी हार का समाना करना पड़ा था।

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