LOC पर शहीद पति की कसम खाकर पत्नी ने उठाया ऐसा कदम की PM मोदी के साथ सब करेंगे नमन

पाकिस्तान की गोलीबारी में शहीद हुए पति की कसम खाते हुए पत्नी ने ऐसा फैसला लिया कि मां-बाप का सिर फक्र से ऊंचा हो गया। पीएम मोदी भी नमन करेंगे.

बार्डर ते फौजी ईक वारी शहीद होंदा ए और सदा वास्ते अमर हो जांदा ए, पर उसदे परिवार नूं हर रोज शहीद होणा पेंदा ए। सरकार नू कया सी, परगट सिंह दी बहू नूं सरकारी नौकरी देवणगे पर डेढ़ माह तें दोबारा कोई हाल पूछण भी नहीं आंदा। परिवार परगट सिंह के भरोसे सी, अब वो भी नहीं रहा। अब करिये तो की करिये। सरकारां तो फौजी दे अंतिम संस्कार तई ही साथ रहंदी नैं, इसदे बाद तो कोई मुड़ के भी नी वेखदा। ये ये दर्द और तल्ख भरे शब्द हैं शहीद की मां सुखविंदर कौर के।
सुखविंद्र कौर का कहना है कि गणतंत्र दिवस तों अस्सी घर ही बाट वेखदे रहे, सरकार और प्रशासन को साडी याद तक नहीं आई। तुस्सी ही दसो ये साडा मान है या अपमान? सोमवार को शहीद परगट सिंह के गांव रंबा पहुंची। उस समय शहीद के घर में ताला लगा था, पड़ोस में पूछने पर पता चला कि परिवार वाले शहर गए हैं। जैसे ही अमर उजाला टीम गांव के बस क्यू शेल्टर पर पहुंची तो परगट सिंह का परिवार ऑटो से करनाल जा रहा था।
शहीद की मां ने केंद्र सरकार पर सवाल दागे और कहा कि आखिरकार हमारा देश किस बात का इंतजार कर रहा है, टीवी खोलते ही ताबूतों में सैनिकों की लाश दिख रही हैं और सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है। आखिर कब तक हम अपने लालों को न्यौछावर करते रहेंगे? अब फैसले का समय है। पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए।
शहीद की मां सुखविंदर कौर और पिता रतन सिंह ने कहा कि सरकारें केवल सैनिक के अंतिम संस्कार तक साथ देती हैं, उसके बाद कौन किसको संभालता है? हम तो अपनी बता सकते हैं। बेटा शहीद हुआ तो मंत्री से लेकर बड़े अधिकारी तक आए। सरकार की तरफ से शहीद की पत्नी रमनप्रीत कौर को सरकारी नौकरी का आश्वासन दिया था, पर अब गांव का पटवारी तक घर नहीं आता। यही नहीं, गणतंत्र दिवस तक पर हमें बुलाया तक नहीं गया। मां सवाल करती हैं कि क्या इसी दिन के लिए मां अपने बेटों को देश की सीमा पर भेजती हैं?
शहीद परगट सिंह के परिवार में पिता रतन सिंह, मां सुखविंदर कौर, पत्नी रमनप्रीत कौर, बेटा दिवराज सिंह, बड़ा भाई हरप्रीत सिंह, बड़े भाई की पत्नी रिंपी रानी, बड़े भाई का बेटा नवजोत और बेटी संदीप कौर हैं। दादा जगीर सिंह और दादी प्यार कौर भी हैं, जो शहीद के चाचा के घर रहते हैं। पूरा परिवार परगट सिंह पर आश्रित था। परगट के शहीद होने पर परिवार पर दिक्कतों का पहाड़ टूटा हुआ है। घर का पालन पोषण शहीद का बड़ा भाई मजदूरी करके कर रहा है। घर के हालात इतने खराब हैं कि परगट सिंह का भाई अपने दो बच्चों की छह माह से स्कूल की फीस नहीं भर पा रहा है।