आइए, कालाष्टमी व्रत विधि और महत्व जानते हैं-

हिंदी पंचांग के अनुसार 12 मई को कालाष्टमी है। इस दिन देवों के देव महादेव के रौद्र स्वरूप काल भैरव की पूजा-अर्चना की जाती है। तंत्र मंत्र सीखने वाले साधक कालाष्टमी की रात्रि में सिद्धि प्राप्ति हेतु अनुष्ठान करते हैं। धार्मिक मान्यता है कि कालाष्टमी पर विधिपूर्वक काल भैरव देव की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में व्याप्त काल, कष्ट, दुख और संकट दूर हो जाते हैं। साथ ही घर में सुख और समृद्धि का आगमन होता है। अतः साधक निष्ठा भाव से महादेव के रौद्र स्वरूप की पूजा उपासना करते हैं। आइए, कालाष्टमी व्रत विधि और महत्व जानते हैं-

शुभ मुहूर्त
ज्योतिषियों की मानें तो ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी 12 मई को सुबह 09 बजकर 06 मिनट से शुरू होकर अगले दिन यानी 13 मई को सुबह 06 बजकर 50 मिनट पर समाप्त होगी। सनातन शास्त्रों में निहित है कि काल भैरव देव की पूजा और उपासना रात्रि में की जाती है। अतः 12 मई को कालाष्टमी मनाई जाएगी।
पूजा विधि
इस दिन सुबह में उठकर सबसे पहले भगवान शिव को प्रणाम करें। इसके बाद घर की साफ-सफाई कर गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें। अब आचमन कर व्रत संकल्प लें और नवीन वस्त्र धारण करें। व्रती काले रंग का वस्त्र पहन सकते हैं। अब भगवान शिव के रौद्र स्वरूप काल भैरव देव की पूजा पंचामृत, दूध, दही, बिल्व पत्र, धतूरा, फल, फूल, धूप-दीप आदि से करें। पूजा के दौरान निम्न मंत्र का जाप करें-
काल भैरव देव के मंत्र
ओम भयहरणं च भैरव:।
ओम कालभैरवाय नम:।
ओम ह्रीं बं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरूकुरू बटुकाय ह्रीं।
ओम भ्रं कालभैरवाय फट्।
अंत में आरती अर्चना कर सुख, समृद्धि, वंश और धन वृद्धि की कामना करें। अगर आप शारीरिक रूप से सक्षम हैं, तो दिनभर उपवास रखें। शाम में आरती अर्चना कर फलाहार करें। अगले दिन नित्य दिनों की तरह पूजा पाठ के बाद व्रत खोलें। व्रत खोलने के समय जरूरतमंदों को दान अवश्य दें।