तस्वीरों के जरिये जानिए इस खौफनाक टेस्ट की सच्चाई ‘टू फिंगर टेस्ट’, यानी की बलात्कार के बाद एक और बलात्कार

अगर आपको लगता है कि एक लड़की के साथ सबसे गलत काम बलात्कार होता है तो शायद आप गलत हैं, इस पोस्ट को पूरा पढ़कर आपको यकीन हो जायेगा कि एक लड़की के साथ क्या और किस हद तक गलत हो सकता है?

 तस्वीरों के जरिये जानिए इस खौफनाक टेस्ट की सच्चाई ‘टू फिंगर टेस्ट’, यानी की बलात्कार के बाद एक और बलात्कार

एक 14 साल की लड़की जिसका 2 दिन पहले कुछ दरिंदों ने बलात्कार किया था वो अस्पताल में एक सफ़ेद चादर पर लेटी ये सोच रही है कि कब उसका इलाज़ पूरा हो और एक बार फिर वो सामान्य ज़िन्दगी जी पायेगी. हालाँकि अब सामान्य ज़िन्दगी की उसकी परिभाषा यकीनन ही बदल चुकी है, लेकिन जो भी है, वो उसे ही सामान्य समझ लेगी. वो अस्पताल में बेड पर लेटी जिस वक़्त ये सब सोच रही है ठीक उसी वक़्त एक महिला नर्स वहां आती है और उसके शरीर पर पड़ा चादर हटा देती है. मासूम लड़की जबतक कुछ समझ पाती तबतक नर्स उसका सलवार नीचे और कुर्ता नाभि के ऊपर कर चुकी होती है.

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14 साल की वो मासूम जो महज़ कुछ घंटे पहले कुछ नरभक्षियों के चंगुल से छूटकर आई थी, वो एक बार फिर दर्द से कराह उठती है. क्या आप जानते हैं कि ना ही नर्स ने उस बच्ची का सलवार नीचे करने की उससे इजाज़त ली थी और ना ही डॉक्टरों ने उसकी योनी में ऊँगली डालने से पहले उसकी मर्ज़ी जानी थी. भारत में इसको इलाज़ का नाम दिया गया है. जी हाँ यही तो था टू फिंगर टेस्ट, यानी  की बलात्कार के बाद एक दूसरा बलात्कार.

जिन्हें नहीं जानकारी है उन्हें हम यहाँ बता दें कि ये टू फिंगर टेस्ट अमानवीय, अवैज्ञानिक, कुंठित, और गैर कानूनी है.  

एक रेप पीड़िता के योनी में ऊँगली डालकर डॉक्टर उनके निजी अंगों के लचीलेपन की पड़ताल करता है. इससे ये तय किया जाता है कि एक महिला अपनी सेक्स लाइफ में कितनी सक्रीय है. हालाँकि भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है जो डॉक्टरों को इस तरह की मनमानी की छूट दे. जानकारी के लिए बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 2003 में टीएफटी को ‘दुराग्रही’ कहा था. ज्यादातर देशों ने इसे पुरातन, अवैज्ञानिक, निजता और गरिमा पर हमला बताकर खत्म कर दिया है.

इस अमानवीय तरीके को बंद करने के लिए अब देश के कोने-कोने से आवाजें उठने लगीं हैं. अभी 26 जनवरी को भी इस जघन्य काम के खिलाफ दिल्ली में जमकर नारेबाजी हुई थी. मांगें भी उठीं कि, “टू फिंगर टेस्ट बंद करो.” नतीजे? अभी उनका इंतज़ार है.

इस मुद्दे पर महाराष्ट्र में वर्धा के सेवाग्राम में महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में फॉरेंसिक एक्सपर्ट और वकील डॉ. इंद्रजीत खांडेकर कहते हैं, “उस टेस्ट का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है.” वो मानते हैं कि उंगलियों के साइज के हिसाब से नतीजे बदल जाते हैं. हाइमन और वजाइना से जुड़ी पुरानी दरार भी यह साबित नहीं करती है कि लड़की या महिला की सक्रिय सेक्स लाइफ रही है. बंगलुरू के वैदेही इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में फॉरेंसिक एक्सपर्ट और कानून के जानकार डॉ. एन. जगदीश के मुताबिक इस तरह की दरार कसरत, खेल-कूद, चोट, किसी लकड़ी या उंगलियों के कारण भी पड़ सकती है. वे कहते हैं, “कुछ महिलाओं की हाइमन इतनी लचीली होती है कि सेक्स के दौरान भी आसानी से नहीं टूटती.” 

ऐसे में ये सोचने वाली बात है कि अगर एक महिला के शील का हनन एक बार किया जा ही चुका है तो आखिर इलाज़ के नाम पर एक बार फिर उन्हें उसी दलदल में झोंकने का क्या फ़ायदा? और खासकर जब इलाज़ के इस तरीके के बेबुनियाद और सटीक भी नहीं माना जाता तब? अनुरोध कहिये या विनती, लेकिन अगर ये पोस्ट किसी भी ऐसे तक पहुँच सके जो महिलाओं के साथ हो रही इस ज्यादती को रोकने में समर्थ हो तो कृपा करके इस अपराध को जल्द-से-जल्द रोके जाने के लिए सख्त-से-सख्त कदम उठाये जाने चाहिए.

 
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