यहाँ जानिए तंत्र साधना से जुड़े कुछ रहस्यों के बारे में

पहली बात तो यही कि आप तंत्र साधना क्यों करना चाहते हैं? जब आपका यह ‘क्यों’ स्पष्ट हो जाए, तब आप साधना से संबंधित ग्रंथों का अध्ययन करें। ग्रंथों या पुस्तकों का अध्ययन करने के बाद किसी योग्य तंत्र साधक को खोजें। चार किताबें पढ़कर खुद ही साधना शुरू करना चाहें, तो सावधान हो जाएं, क्योंकि इससे बुरा परिणाम हो सकता है।

तांत्रिक साधना का उद्देश्य सिद्धि से साक्षात्कार करना है। इसके लिए अंतर्मुखी होकर साधनाएं की जाती हैं। तंत्र को मूलत: शैव आगम शास्त्रों से जोड़कर देखा जाता है, लेकिन इसका मूल, अथर्ववेद में पाया जाता है। तंत्र साहित्य विस्मृति के चलते विनाश और उपेक्षा का शिकार हो गया है। अब तंत्र शास्त्र के अनेक ग्रंथ लुप्त हो चुके हैं। 

सुधी अध्येताओं के अनुसार, 199 तंत्र ग्रंथ हैं। तंत्र विद्या के माध्‍यम से व्यक्ति अपनी आत्मशक्ति का विकास करके कई तरह की शक्तियों से संपन्न हो सकता है, यही तंत्र का उद्देश्य है। इसी तरह तंत्र से ही सम्मोहन, त्राटक, त्रिकाल, इंद्रजाल, परा, अपरा और प्राण विद्या का जन्म हुआ है। तंत्र से वशीकरण, सम्‍मोहन, विद्वेषण और स्तम्भन क्रियाएं भी की जाती हैं।

इसी तरह मनुष्य से पशु बन जाना, गायब हो जाना, एक साथ पांच-पांच रूप बना लेना, समुद्र को लांघ जाना, विशाल पर्वतों को उठाना, करोड़ों मील दूर के व्यक्ति को देख लेना व बात कर लेना जैसे अनेक कार्य, तंत्र की बदौलत ही संभव हैं।  तंत्र-शास्त्र में जो पांच तरह की साधना बतलाई गई हैं, उसमें मुद्रा साधन बड़े महत्व का और श्रेष्ठ है। मुद्रा में आसन, प्राणायाम, ध्यान आदि योग की सभी क्रियाओं का समावेश है। 

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