जानिए कैसे आतंक के साये से निकलकर इस युवक ने बनाया खुद को कश्मीरी युवाओं का रोल मॉडल

नई दिल्ली: सुरनकोट इलाका जिसे आज से लगभग 2 दशक पहले आतंकियों का गढ़ माना जाता था। उस समय वहाँ का एक लड़का जिसनें अपने घर को जलते और आस-पास के लोगों को आतंकियों की गोली का शिकार होते हुए और कई लोगों को आतंकवाद से जुड़ते देखा। उसी बचपन की उम्र से उसके मन में आतंकवाद के खिलाफ नफरत भर गयी। उसे बचपन में ही परिवार के साथ अपना घर छोड़ना पड़ा। लेकिन उसके मन में कुछ करने की इच्छा थी। जम्मू आकर कड़ी मेहनत और कुछ करने की चाहत ने उस बच्चे को कश्मीर प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में अव्वल बना दिया।
जी हाँ हम बात कर रहे हैं कश्मीर के अंजुम बशीर खान की। आज के समय में अंजुम बशीर खान जम्मू-कश्मीर के युवाओं के लिए रोल मॉडल बन गए हैं। पूंछ जिले की सुरनकोट तहसील के मोड़ा बछाई गाँव में अनुजम अपने परिवार के साथ रहते हैं। पास के ही हील काका में 2003 में भारतीय सेना ने 72 आतंकियों को मौत के घाट उतारा था। अंजुम ने अपने बचपन में ही आतंकवाद का क्रूर रूप देखा। मोड़ा बछाई गाँव में आतंकियों का दबदबा रहता था। यहाँ आतंकी दिन रात घूमते और क्रिकेट खेलते हुए दिखाई देते थे।
क्षेत्र में आतंकवाद का साया इस कदर फैला हुआ था कि जब कोई बाहर या स्कूल जाता था तो घर वालों को एक ही डर सताती थी कि फिर वो उसे देख भी पाएंगे या नहीं। 4 अगस्त 1998 की काली रात को गाँव पर आतंकियों ने हमला करके 19 लोगों को मौत के घाट उतार दिया। मरने वालों में 11 बच्चे और एक गर्भवती महिला भी शामिल थी। आतंकियों ने कई घरों को आग लगा दी। 29 जून 1999 को आतंकियों ने 15 लोगों को जिन्दा जला दिया। इसमें कई बच्चे भी शामिल थे। जलने वाले घरों में एक घर अंजुम का भी था।
दहशत की वजह से गाँव के लोग डर गए और यहाँ-वहाँ भागने लगे। अंजुम भी अपने परिवार के साथ जम्मू आ गए। अंजुम ने वहाँ आकार पढाई शुरू कर दी और जमकर मेहनत करने लगे। 2008 में अंजुम ने बाबा गुलाम शाह बडशाह यूनिवर्सिटी में कंप्यूटर इंजीनियरिंग में दाखिला ले लिया। उन्होंने 2012 में अपनी पढ़ाई पूरी कर ली। यह वो समय था जब कई युवा आतंक की राह चुन रहे थे। अंजुम ने वहाँ से निकलकर अपनी पढ़ाई को जारी रखा। हाल ही में घोषित हुए कश्मीर प्रशासनिक सेवा के परिणाम में अंजुम ने राज्य में टॉप किया है। इस समय अंजुम आतंक के गढ़ में रहने वाले युवाओं के लिए रोल मॉडल बन चुके हैं।