जानिए कैसे होता है राज्यसभा का चुनाव, ये है जीतने का फॉर्मूला

राज्यसभा की 58 सीटों के लिए शुक्रवार 23 मार्च को मतदान होने हैं। अप्रैल और मई महीने में खाली हो रहीं 16 राज्यों की  58 सीटों के लिए हालांकि अधिकांश सीटों पर निर्विरोध चुनाव संपन्न हो चुके हैं लेकिन कल यूपी की 10 सीटों के लिए मतदान होगा और कल ही दिन मतगणना भी होगी। 13 राज्यों से 50 राज्यसभा सदस्यों का कार्यकाल  2 अप्रैल को खत्म हो रहा है वहीं  दो राज्य (ओडिशा और राजस्थान) से छह राज्यसभा सदस्यों का कार्यकाल 3 अप्रैल और झारखंड से दो सदस्यों का कार्यकाल 3 मई को समाप्त हो रहा है।

 

जानिए कैसे होता है राज्यसभा का चुनाव, ये है जीतने का फॉर्मूलाजानिए कैसे होता है राज्यसभा का चुनाव, ये है जीतने का फॉर्मूलाबता दें कि इनमें उत्तर प्रदेश से सबसे अधिक 10 सदस्यों का कार्यकाल दो अप्रैल को खत्म हो रहा है जबकि महाराष्ट्र और बिहार से छह-छह, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल से पांच-पांच व गुजरात और कर्नाटक से चार-चार सदस्यों का कार्यकाल भी समाप्त हो रहा है। 

ऐसी है राज्यसभा की संवैधानिक व्यवस्था 

संविधान सभा के अनुसार आजाद भारत में राज्य सभा के गठन की घोषणा 23 अगस्त 1954 को की गई थी जब उपराष्ट्रपति को इसका पदेन सभापति बनाया गया। यानि जो भी उपराष्ट्रपति होगा वही सभापति होगा। राज्यसभा का गठन संघीय व्यवस्था में राज्यों के हितों की रक्षा करने के लिए किया गया है। इसके सदस्यों की संख्या लोकसभा से कम रखी गई। राज्यसभा में विशेषज्ञों की नियुक्ति की वजह से इसे पुनरीक्षण सदन भी माना जाता है जो लोकसभा द्वारा पारित प्रस्तावों की ढंग से जांच कर सके और इसके सदस्य मंत्रिपरिषद को भी बेहतर स्वरूप दे सकें।
 
ऐसा होता है राज्यसभा का स्वरूप 

राज्यसभा के सदस्य का चुनाव राज्य विधान सभाओं के चुने हुए विधायक करते हैं। प्रत्येक राज्य के प्रतिनिधियों की संख्या ज्यादातर उसकी जनसंख्या पर निर्भर करती है। इस प्रकार, उत्तर प्रदेश के राज्यसभा में 34 सदस्य हैं। मणिपुर, मिजोरम, सिक्किम, त्रिपुरा आदि छोटे राज्यों के केवल एक एक सदस्य हैं। राज्यसभा में अधिकतम 250 तक सदस्य हो सकते हैं। इनमें राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत 12 सदस्य तथा 238 राज्यों और संघ-राज्य क्षेत्रों द्वारा चुने सदस्य होते हैं। इस समय राज्यसभा के 245 सदस्य हैं। राज्यसभा के प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल छह वर्ष का होता है। 

ऐसे होता है राज्यसभा का चुनाव  

अनुच्छेद 84 के तहत भारत का नागरिक होने के अलावा राज्यसभा की सदस्यता हेतु न्यूनतम आयु 30 वर्ष तय की गई जबकि निचले सदन लोकसभा के लिए यह 25 वर्ष है। 
 
संविधान के अनुच्छेद 102 में दिवालिया और कुछ अन्य वर्ग के लोगों को राज्यसभा सदस्य बनने के लिए अयोग्य घोषित किया गया है। जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 154 के अनुसार राज्यसभा सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है। हर 2 साल में इसके एक तिहाई सदस्य सेवानिवृत्त हो जाते हैं इसलिए राज्यसभा कभी भंग नहीं होती।

न्यूनतम 10  सदस्यों की सहमति आवश्यक

राज्य सभा में सदस्यों का चुनाव राज्य विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा किया जाता है जिसमें विधान परिषद् के सदस्य वोट नहीं डाल सकते। नामांकन फाइल करने के लिए न्यूनतम 10  सदस्यों की सहमति आवश्यक होती है। सदस्यों का चुनाव एकल हस्तांतरणीय मत के द्वारा निर्धारित कानून से होता है। इसके अनुसार राज्य की कुल विधानसभा सीटों को राज्यसभा की सदस्य संख्या में एक जोड़ कर उसे विभाजित किया जाता है फिर उसमें 1 जोड़ दिया जाता है।

इसे इस तरह समझें कि यूपी में कुल 403 विधायक हैं और 11 राज्यसभा सीट हैं जिन्हें 12 ( 11 + 1) से विभाजित करके फिर उसमे 1 जोड़ने पर 34 की संख्या आती है जो वहां चुनाव जीतने के लिए न्यूनतम वोटों की संख्या होगी। विधायक वरीयता के अनुसार अपना वोट देते हैं और पहली वरीयता के न्यूनतम वोट जिसे मिल जाते हैं वह व्यक्ति विजयी हो जाता है।

इसके बाद यदि सदस्यों के लिए वोटिंग होती है तो सबसे कम वोट मिलने वाले उम्मीदवार के वोटों को दूसरी वरीयता के अनुसार अन्य उम्मीदवारों को ट्रांसफर कर दिया जाता है। यह सिलसिला तब तक चलता है जब तक उम्मीदवार विजयी नहीं हो जाए। इसीलिए चुनाव होने की स्थिति में विधायकों द्वारा अन्य वरीयता के मतों का महत्व बहुत बढ़ जाता है।

 
 
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