केजरीवाल ने कहा ‘किसी भी कानून या संविधान में नहीं लिखा दिल्ली है देश की राजधानी’

अक्सर ही विवादों में छायी रहने वाली अरविंद केजरीवाल सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के सामने एक ऐसा अजीब प्रश्न रख दिया जिसको लेकर जज भी पहली बार में कुछ न कह सके।
अक्सर ही विवादों में छायी रहने वाली अरविंद केजरीवाल सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के सामने एक ऐसा अजीब प्रश्न रख दिया जिसको लेकर जज भी पहली बार में कुछ न कह सके। केजरीवाल सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में प्रश्न रखा कि क्या संविधान या देश की संसद द्वारा पारित कोई कानून घोषित करता है कि दिल्ली देश की राजधानी है?  दरअसल सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र को लेकर बहस चल रही थी जिसके दौरान दिल्ली सरकार की वकील इंदिरा जयसिंह ने जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस एके सीकरी, एम खनविलकर, डीवाई चंद्रचूण और अशोक भूषण की बेंच के सामने ये प्रश्न रखा।   PC: अमर उजाला इंदिरा जयसिंह ने खंडपीठ के सामने ये तर्क रखा कि संविधान में या किसी कानून में ये बात नहीं लिखी है कि दिल्ली देश की राजधानी थी।  उन्होंने कहा, 'राजधानी के बारे में किसी कानून में नहीं लिखा है। कल को केंद्र सरकार कहीं और राजधानी बनाने का फैसला ले सकती है। हम जानते हैं कि ब्रिटिशों ने कलकत्ता से दिल्ली को राजधानी बनाया था। हालांकि नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली एक्ट जरूर है लेकिन इसमें ये नहीं है कि दिल्ली ही देश की राजधानी है।'  इंदिरा जयसिंह के इस तर्क पर बेंच ने कोई टिप्पणी नहीं की। इंदिरा ने आगे कहा कि इस वक्त खंडपीठ के सामने बड़ा प्रश्न ये है कि क्या एक जगह के दो बॉस हो सकते हैं- दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार।  उन्होंने आगे कहा, 'मैं ये दावा नहीं कर रही कि दिल्ली एक राज्य है क्योंकि इसके पास विधानसभा, मंत्रीपरिषद और मुख्यमंत्री हैं। लेकिन जैसे अन्य राज्यों में केंद्र और राज्य की शक्ति ‌का स्पष्टीकरण साफ-साफ और अलग-अलग होता है वैसा ही कुछ दिल्ली के लिए भी होना चाहिए।' 'राज्य सरकारों को केंद्र के साथ म‌िलकर करना है काम'    इंदिरा जयसिंह ने अदालत से कहा कि दिल्ली और केंद्र सरकार के बीच में सत्ता बंटवारा स्पष्ट रूप में होना चाहिए ताकि केजरीवाल सरकार सामाजिक सरोकारों के कार्य जैसे महिला कल्याण, रोजगार, शिक्षा, सफाई और स्वास्थ के क्षेत्र में कार्य बिना केंद्र की बाधा के कर सके।  सुनवाई कर रही जजों की बेंच ने कहा कि संविधान ने राज्यों और केंद्र द्वारा किए जाने वाले कार्यों को लेकर तीन सूचियां बनाई हैं। सभी राज्यों को केंद्र के साथ मिलकर कार्य करना है। किसी भी कानून में ये ‌नहीं लिखा है कि दोनों सरकारें अलग-अलग काम करेंगी।केजरीवाल सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में प्रश्न रखा कि क्या संविधान या देश की संसद द्वारा पारित कोई कानून घोषित करता है कि दिल्ली देश की राजधानी है?

दरअसल सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र को लेकर बहस चल रही थी जिसके दौरान दिल्ली सरकार की वकील इंदिरा जयसिंह ने जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस एके सीकरी, एम खनविलकर, डीवाई चंद्रचूण और अशोक भूषण की बेंच के सामने ये प्रश्न रखा।

इंदिरा जयसिंह ने खंडपीठ के सामने ये तर्क रखा कि संविधान में या किसी कानून में ये बात नहीं लिखी है कि दिल्ली देश की राजधानी थी।

उन्होंने कहा, ‘राजधानी के बारे में किसी कानून में नहीं लिखा है। कल को केंद्र सरकार कहीं और राजधानी बनाने का फैसला ले सकती है। हम जानते हैं कि ब्रिटिशों ने कलकत्ता से दिल्ली को राजधानी बनाया था। हालांकि नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली एक्ट जरूर है लेकिन इसमें ये नहीं है कि दिल्ली ही देश की राजधानी है।’

इंदिरा जयसिंह के इस तर्क पर बेंच ने कोई टिप्पणी नहीं की। इंदिरा ने आगे कहा कि इस वक्त खंडपीठ के सामने बड़ा प्रश्न ये है कि क्या एक जगह के दो बॉस हो सकते हैं- दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार।

उन्होंने आगे कहा, ‘मैं ये दावा नहीं कर रही कि दिल्ली एक राज्य है क्योंकि इसके पास विधानसभा, मंत्रीपरिषद और मुख्यमंत्री हैं। लेकिन जैसे अन्य राज्यों में केंद्र और राज्य की शक्ति ‌का स्पष्टीकरण साफ-साफ और अलग-अलग होता है वैसा ही कुछ दिल्ली के लिए भी होना चाहिए।’

‘राज्य सरकारों को केंद्र के साथ म‌िलकर करना है काम’

इंदिरा जयसिंह ने अदालत से कहा कि दिल्ली और केंद्र सरकार के बीच में सत्ता बंटवारा स्पष्ट रूप में होना चाहिए ताकि केजरीवाल सरकार सामाजिक सरोकारों के कार्य जैसे महिला कल्याण, रोजगार, शिक्षा, सफाई और स्वास्थ के क्षेत्र में कार्य बिना केंद्र की बाधा के कर सके।

सुनवाई कर रही जजों की बेंच ने कहा कि संविधान ने राज्यों और केंद्र द्वारा किए जाने वाले कार्यों को लेकर तीन सूचियां बनाई हैं। सभी राज्यों को केंद्र के साथ मिलकर कार्य करना है। किसी भी कानून में ये ‌नहीं लिखा है कि दोनों सरकारें अलग-अलग काम करेंगी।

 
 

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