करणी सेना की मांगों पर विचार करेगी मध्य प्रदेश की सरकार, पढ़े पूरी ख़बर
मध्य प्रदेश में चुनाव से ठीक पहले एक बार फिर अलग-अलग जातियों के संगठन सक्रिय हो गए हैं। असल में सरकार को दबाव में लगाने और अपनी मांगों-शर्तों को मनवाने का यह सबसे अच्छा समय होता है। यही वजह है कि राजपूतों के संगठन करणी सेना ने मध्य प्रदेश में शिवराज सरकार के खिलाफ बड़ा आंदोलन खड़ा किया और तीन दिन के भीतर ही सरकार ने उनकी मांगों पर विचार करने के लिए एक कमिटी के गठन का ऐलान कर दिया।
8 जनवरी को करणी सेना ने भोपाल में शिवराज सिंह चौहान की अगुआई वाली भाजपा सरकार के खिलाफ बड़े प्रदर्शन का आयोजन किया। संगठन ने आर्थिक आधार पर आरक्षण और एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत बिना जांच गिरफ्तारी के प्रावधान पर दोबारा विचार समेत 22 मांगों के साथ आंदोलन शुरू किया। प्रभावशाली संगठन ने यह भी कहा कि सरकार जब तक मांगें नहीं मानती है तब तक आंदोलन जारी रहेगा। 2018 में भी राजपूत समुदाय ने शिवराज सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था और भाजपा चुनाव हार गई थी। बताया जाता है कि 2019 में केंद्र की भाजपा सरकार ने गरीबों सवर्णों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया तो इसके पीछे यह भी एक बड़ी वजह थी।
बुधवार को शिवराज सरकार के मंत्री अरविंद सिंह भदौरिया ने करणी सेना के नेताओं से मुलाकात की और उनकी मांगों को सुना। सरकार ने इन पर विचार करने के लिए एक कमिटी के गठन का वादा किया। इसके बाद आंदोलन खत्म कर दिया गया। हालांकि, शिवराज सरकार के लिए यह दोधारी तलवार की तरह होगा। राजनीतिक जानकारों की मानें तो आरक्षण और एससी/एसटी ऐक्ट को लेकर करणी सेना की मांगों पर विचार करने से भले ही राजपूत खुश हो जाएं लेकिन एक बड़ा तबका नाराज हो सकता है।
करण सेना के प्रवक्ता हिमांशु सिंह ने ईडी से बातचीत में कहा, ‘चुनाव से पहले मांगों को उठाना एक आंशिक सत्य है, लेकिन हम इन मांगों को 14 साल से उठा रहे हैं। बहुत से लोगों को एससी/एसटी कानून के तहत झूठे आरोपों में गिरफ्तार किया जा रहा है। हमारी मांग है कि आरक्षण जाति की बजाय आर्थिक आधार पर हो। इसमें कुछ गलत नहीं है और यह सिर्फ राजपूतों के लिए नहीं है।’करणी सेना के प्रवक्ता ने कहा कि उन्होंने आंदोलन के लिए मध्य प्रदेश को इसलिए चुना क्योंकि राज्य के कई मंत्री समुदाय के लिए अपमानजनक बातें कर रहे थे।