Kanwar Yatra 2025: न करें होड़, न दिखाएं बल, आस्था के लिए पर्याप्त है एक बूंद गंगाजल

कांवड़ यात्रा में कुछ वर्षों से प्रतिस्पर्धा में क्षमता से अधिक गंगाजल उठाने के प्रचलन से न केवल संत महंत बल्कि आमजन और चिकित्सक भी चिंतित हैं। हाल यह है कि कुछ युवा एक-दूसरे की होड़ में और शारीरिक बल दिखाने के चक्कर में 100 से 200 लीटर तक गंगाजल कंधों पर उठाकर ले जा रहे हैं। संत-महंतों का कहना है कि महादेव एक बूंद या एक लोटा जल से भी प्रसन्न होते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि क्षमता से अधिक भार उठाकर ही उनको प्रसन्न किया जा सकता है। वहीं, चिकित्सकों का कहना है कि ऐसा करने से शारीरिक दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। पेश है अमर उजाला की प्रमुख लोगों से वार्ता के विशेष अंश…
वैसे तो कहा जाता है कि सनातन धर्म में अंधभक्त हंै, लेकिन सच्चाई है कि जहां पर आस्था है वहां अंधभक्त होते ही हैं। आस्था के उल्लास में इतना भी उत्साह नहीं होना चाहिए कि खुद को भी परेशानी हो और दूसरों को भी। बालक, महिलाएं, वृद्ध तक भारी वजन उठाकर चल रहे हैं। महादेव भारी वजन उठाने से नहीं बल्कि मां गंगा को लेकर जाने वाले के भाव से प्रसन्न होंगे। चूंकि गंगा मां हैं तो वह कभी नहीं चाहेंगी कि उनका पुत्र कष्ट उठाए। इसका भी ध्यान रखना होगा। -जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी राज्य राजेश्वराश्रम महाराज, कनखल हरिद्वार
कांवड़ यात्रा का बदलता स्वरूप चिंता का विषय है। यह केवल प्रतिस्पर्धा है, जबकि यह आस्था का पर्व है इसे दमखम दिखाने का पर्व नहीं बनाना चाहिए। बल का प्रदर्शन किसी और मंच पर हो सकता है पर अपने बल का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। युवाओं को एक-दूसरे की होड़ नहीं करनी चाहिए। युवाओं, महिलाओं व बच्चों को सुझाव है कि वह क्षमता के अनुसार जल लेकर जाएं। कांवड़ हर जगह रखना भी अच्छा नहीं है। इससे उसकी पवित्रता पर भी सवाल उठते हैं। – महामंडलेश्वर स्वामी ललितानंद गिरी, महंत भारत माता मंदिर
आज जो कांवड़ का स्वरूप बदला है, यह काफी चिंता के विषय हैं। अधिक से अधिक जल ले जाने की परंपरा गलत तरीके से बनाई जा रही है। डेढ़-दो क्विंटल जल लेकर जाना, 10 कदम चलना और फिर रुक जाना यह कोई तप का साधन नहीं है। मां गंगा से भगवान का अभिषेक करने का यह पर्व है। शांतिपूर्वक और कुशलता से इस पर्व को संपन्न करना ही हमारी परंपरा और धर्म में है। कांवड़ यात्रियों से अपील है कि वह अपनी क्षमता से अधिक वजन ना उठाएं, जिससे बाद में किसी तरह से परेशानी हो। -श्रीमहंत रविंद्रपुरी महाराज, अध्यक्ष अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद
कांवड़ यात्रियों को अपनी शक्ति का प्रदर्शन इस तरह नहीं करना चाहिए। यदि नियमित और रूटीन में भार उठाने का अनुभव हो, तब वह कर सकते हैं, लेकिन केवल कांवड़ के लिए क्षमता से अधिक भार लेकर पैदल चलना काफी हानिकारक साबित हो सकता है। इससे रीढ़ व कंधों से जुड़ीं समस्याएं और तमाम तंत्र संबंधी परेशानियां हो सकती हंै। चरक और सुश्रुत संहिता में भी इसका उल्लेख है कि क्षमता के अनुसार ही वजन उठाना चाहिए। -डॉ. संजय सिंह, विभागाध्यक्ष रोग निदान विभाग उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय