जापान ने इस बात पर दिया चीन को नसीहत, कहा…

चीन को तीखा संदेश देते हुए जापानी बौद्ध सम्मेलन में कहा गया है कि वो दलाई लामा के उत्तराधिकारी मामले में दखल देना बंद कर दें। साथ ही कहा गया है कि तिब्बती लोगों को यह तय करना होगा कि वे तिब्बती संस्कृति और इतिहास के आधार पर किसको दलाई लामा का उत्तराधिकारी चुनना चाहते हैं, चीन को इसका अधिकार नहीं है।  साथ ही चीन को दिए गए संदेश में तिब्बत के धार्मिक और आध्यात्मिक मामलों में चीन के निरंतर हस्तक्षेप पर कड़ी आपत्ति जताई गई है। जापान बौद्ध सम्मेलन एक ऐसा संगठन है जो जापान समेत विश्व के लाखों बौद्ध धर्म के अनुयायियों को एक साथ लाता है।

“तिब्बत की संस्कृति और इतिहास के आधार पर उत्तराधिकारी”

जापान बौद्ध सम्मेलन के महासचिव श्रद्धेय इहिरो मिजुतानी ने कहा, “14वें दलाई लामा 6 जुलाई 2022 को 87 वर्ष के हो गए, जिसके बाद उनके भावी उत्तराधिकारी का मुद्दा काफी गंभीर हो गया है। इसपर पूरे विश्व की नजर है कि आखिर किसको उत्तराधिकारी बनाया जाएगा। हम जापान के भिक्षुओं का मानना है कि तिब्बती लोगों को उनकी तिब्बती बौद्ध संस्कृति और इतिहास के आधारा पर अगले उत्तराधिकारी का फैसला करना चाहिए।”

पीआरसी, जो तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (टीएआर) को नियंत्रित करती है, वो साल 2007 में बनाई नीति पर काम कर रही है, जिसके अनुसार दलाई लामा के अगले उत्तराधिकारी का चयन करने का अधिकार चीन की है, हालांकि, इसे गैर-धार्मिक माना जाता है। जापानी बौद्ध सम्मेलन ने कहा, “गैर-धार्मिक लोगों द्वारा धार्मिक नेता का निर्णय लेना अपने आप में विरोधाभासी है”।

वर्ल्ड फेडरेशन के जापान बौद्ध सम्मेलन के संदेश में कहा गया है कि धर्म से संबंधित मामले धार्मिक मूल्यों के अनुरूप होने चाहिए, इसलिए जिन लोगों के पास धार्मिक मूल्य नहीं हैं, उन्हें ऐसे मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

बौद्ध धर्म के कारण जुड़े हैं जापान, भारत और तिब्बत

जापान, भारत और तिब्बतियों के बीच संबंध बौद्ध धर्म से जुड़े हुए हैं, जो समृद्ध इतिहास के साथ एशिया के प्रमुख विश्व धर्मों में से एक है। बौद्ध धर्म भारत में 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में उत्पन्न हुआ था और यह उपमहाद्वीप के प्रमुख धर्मों में से एक था। हालांकि, धीरे-धीरे भारत में इनकी जनसंख्या कम हो गई और आज बौद्ध धर्म के बहुत ही कम लोग बचे हैं। इसके बावजूद, बौद्ध धर्म भारत की सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना हुआ है और भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करता है।

दलाई लामा को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है और शांतिपूर्ण व अहिंसक तरीके से चीनी सरकार के खिलाफ लड़ रहे हैं।” जापान एक लंबे समय से बौद्ध धर्म के कारण तिब्बत से जुड़ा हुआ है। इसलिए दलाई लामा और तिब्बती बौद्ध धर्म की स्थिति का मुद्दा जापान के लिए महत्वपूर्ण विषय रहा है। तिब्बती ध्वज का डिजाइन भी एक जापानी बौद्ध भिक्षु ‘अओकी बंक्यो’ द्वारा तैयार किया गया था, जो एक सैन्य अनुवादक थे।

जापान ने हमेशा किया है बौद्ध धर्म का समर्थन

तिब्बत पर चीनी आक्रमण और दलाई लामा के भारत में निर्वासन के बाद भी जापान ने निर्वासित तिब्बती सरकार की सहायता करना जारी रखा था। जापान पहला विदेशी देश था जिसका दलाई लामा ने 1967 में दौरा किया था। इसके बाद, 1976 में दलाई लामा का जापान प्रतिनिधि कार्यालय टोक्यो में स्थापित किया गया। तिब्बती बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक नेता दलाई लामा का दुनिया भर के कई बौद्ध नेताओं द्वारा बहुत सम्मान किया जाता है।

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