जम्मू- कश्मीर चुनाव 2024 : अलगाववादियों के गढ़ में भी बरसे वोट
जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के आखिरी चरण में लोकतंत्र का अलग रंग दिखा। अलगाववादियों के गढ़ में जहां वोट पड़े, तो वहीं आतंकियों के परिवारों ने भी मतदान कर लोकतंत्र में आस्था जताई। बॉर्डर से सटे इलाकों में भी जमकर मतदान हुआ। पहली बार पाकिस्तान से आए शरणार्थी, गोरखा व वाल्मीकि समाज के लोगों ने मत डाले। कड़ी सुरक्षा के बीच तीसरे चरण में सात जिलों की 40 सीटों पर 69.65 फीसदी मतदान हुआ। पहले चरण में 61.38 और दूसरे चरण में 57.31 फीसदी मत पड़े थे।
बारामुला जिले के सोपोर में आतंकी संगठन द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) के शीर्ष कमांडर उमर मीर के पिता गुलाम हसन मीर ने ब्रथ कलां में वोट डाला। अलगाववादियों के गढ़ रहे सोपोर, लंगेट, पलहालन समेत उत्तरी कश्मीर की सभी 16 सीटों पर लोग घरों से बूथ तक बेखौफ पहुंचे। इंजीनियर रशीद, एजाज गुरु तथा सज्जाद लोन के इलाके में भी मतदान हुआ। सीमा से लगे कठुआ के हीरानगर, सांबा के रामगढ़, जम्मू के सुचेतगढ़, छंब, अखनूर, बिश्नाह व एलओसी से सटे उड़ी, गुरेज, करनाह, त्रेहगाम, कुपवाड़ा व लोलाब में सुबह से ही मतदान के लिए लंबी कतारें देखने को मिलीं।
सोपोर में 2014 से 15% अधिक वोटिंग
तीसरे चरण में 7 जिलों की 40 सीटों पर 69.65 फीसदी मतदान हुआ। पहले में 61.38 व दूसरे में 57.31% मत पड़े थे। मढ़ सीट पर सर्वाधिक 81.47% व सोपोर सीट पर सबसे कम 45.32% मतदान हुआ। सोपोर में 2014 में 30.41% मत पड़े थे। जिलों में उधमपुर में सर्वािधक 76.09% व बारामुला में सबसे कम 53.9% वोट पड़े। सांबा में 75.88%, कठुआ में 73.34%, जम्मू में 71.4%, बांदीपोरा में 67.68%, कुपवाड़ा में 66.79% मतदान हुआ। मतदान प्रतिशत 2014 की तुलना में कम रहा। पिछली बार इन 7 जिलों में 73.13% वोट पड़े थे।
पीओके से सटी लीपा घाटी बनी जम्हूरियत के जश्न का गवाह
म्हूरियत का जश्न, लोगों की आंखों में मतदान की चमक, लंबी कतारें और इंतजार का धैर्य, न कोई हुल्लड़ न विरोध…ये नजारा दिखा जिला कुपवाड़ा में जीरो लाइन पर बसे करनाह में। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) से सटा करनाह 10 साल बाद हुए चुनाव की खुशी में डूब गया। पीओके से सटे लीपा घाटी के त्रेडा शरीफ इलाके के बाशिंदे इन पलों के गवाह बने। करनाह क्षेत्र में शांतिपूर्ण माहौल रहा। लोग सुबह से ही मतदान केंद्रों की ओर बढ़ते दिखे। उनका सिर्फ यही कहना था कि उन्होंने अपना वोट अपने मुस्तकबिल को सुरक्षित करने और इलाके में खुशहाली लाने के लिए दिया है। उन्हें इस बात की खुशी है कि दस साल बाद उन्हें यह अधिकार प्राप्त हुआ।