इस दिन मनाई जाएगी देव दीपावली, जानिए पूजन विधि और शुभ मुहूर्त!

सनातन धर्म में देव दीवाली का बेहद महत्व है। यह पर्व हिंदू माह की कार्तिक में पूर्णिमा मनाया जाता है। यह दीवाली के 15वें दिन पड़ता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव ने इस दिन त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन पूजा-पाठ और वैदिक मंत्रों का जाप करने से दोगुना फल की प्राप्ति होती है। यह त्योहार शिव के पुत्र भगवान कार्तिक की जयंती का भी प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन (Dev Deepawali 2024 Date) देवता गण स्वर्ग से पृथ्वी लोक पर आते हैं और अपने भक्तों के सभी कष्टों को दूर करते हैं, तो चलिए देव दीवाली की तिथि और पूजा विधि से लेकर सबकुछ जानते हैं।

देव दीपावली का शुभ मुहूर्त (Dev Deepawali Shubh Muhurat)

हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा की तिथि 15 नवंबर को सुबह 06 बजकर 19 मिनट पर शुरू होगी। वहीं, इस तिथि का समापन 16 नवंबर को देर रात 02 बजकर 58 मिनट पर होगा। सनातन धर्म में उदया तिथि का महत्व है। इसलिए 15 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा व देव दीपावली मनाई जाएगी। इसके साथ ही इस दिन 2 घंटे 37 मिनट तक का शुभ मुहूर्त रहेगा। ऐसे में प्रदोष काल में शाम 5 बजकर 10 मिनट से शाम 7 बजकर 47 मिनट तक देव दीपावली मनाई जाएगी।

देव दीपावली पूजा विधि (Dev Deepawali Pujan Vidhi 2024)

कार्तिक पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें।

इस दिन गंगा नदी या किसी पवित्र नदी में स्नान करना शुभ माना जाता है।

यदि किसी वजह से आप पवित्र नदी में स्नान के लिए नहीं जा पा रहे हैं, तो घर के पानी में गंगा जल मिलाकर स्नान करें।

सुबह के समय मिट्टी के दीपक में घी या तिल का तेल डालकर दीपदान करें।

भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करें।

पूजा के समय भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें।

घर के कोने-कोने में दीपक जलाएं।

शाम के समय भी किसी मंदिर में दीपदान करें।

इस दिन श्री विष्णु सहस्रनाम, विष्णु चालीसा का पाठ करें।

आरती से पूजा को समाप्त करें।

पूजा में हुई गलतियों के लिए क्षमा याचना करें।

देव दीपावली के पूजन मंत्र

ऊं नमो नारायण नम:

ऊँ श्रीं ल्कीं महालक्ष्मी महालक्ष्मी एह्येहि सर्व सौभाग्यं देहि मे स्वाहा।।

ऊँ ह्रीं श्री क्रीं क्लीं श्री लक्ष्मी मम गृहे धन पूरये, धन पूरये, चिंताएं दूरये-दूरये स्वाहा:।।

ॐ त्र्यम्बेकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धूनान् मृत्योवर्मुक्षीय मामृतात्।।

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