खपत बढ़ाकर आर्थिक सुस्ती दूर करने का इरादा, संतुलन साधने पर रहा जोर

 वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के सामने बजट पेश करते वक्त दो चुनौतियां थीं। एक तो आर्थिक सुस्ती को देखते हुए मांग को बढ़ावा देना था और दूसरा वित्त वर्ष 2025-26 के लिए सकल राजकोषीय घाटे को कम करना। वित्त मंत्री ने आम बजट में इन दोनों के बीच संतुलन साधने की कोशिश की है। साथ ही, सरकार ने पूंजीगत खर्च के मुकाबले खपत बढ़ाने पर फोकस किया है।

खपत बढ़ाने के क्या उपाय हुए?

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में 12 लाख रुपये तक की सालाना कमाई को टैक्स फ्री कर दिया है। इसमें 75 हजार का स्टैंडर्ड डिडक्शन भी मिला लें, तो यह छूट 12.75 लाख तक हो जाती है।

नुवामा इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर और रिसर्च कमेटी के हेड अबनीश रॉय (Abneesh Roy) का कहना है कि इसका मतलब है कि अब खासकर मिडिल क्लास टैक्सपेयर्स के हाथ में अधिक रकम बचेगी। इसे वे जरूरत का सामान खरीदेंगे, जिससे इकोनॉमी में डिमांड को बढ़ावा मिलेगा। इससे कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था को फायदा मिलेगा और जीडीपी ग्रोथ तेज होगी।

राजकोषीय घाटे पर क्या हुआ?

वित्त वर्ष 26 के लिए सकल राजकोषीय घाटा (GFD) का लक्ष्य वित्त वर्ष 25 में सकल घरेलू उत्पाद GDP) के 4.8 फीसदी के मुकाबले 4.4 फीसदी है। राजकोषीय गणित और राजस्व अनुमान थोड़े आशावादी हैं। वहीं, सरकार की शुद्ध बाजार उधारी 11.5 ट्रिलियन रुपये आंकी गई है। आर्थिक जानकारों का अनुमान भी यही था। सबसे अहम बात की वित्त मंत्री निर्मला सीतरमण ने अगले पांच में भारत के कर्ज को जीडीपी के मुकाबले 6-7 फीसदी करने का रोडमैप तैयार किया है।

कितनी रकम खर्च करेगी सरकार?
सरकार ने टैक्स में कटौती करके आम जनता को बड़ी राहत दी है। इसलिए उसके पास दूसरी योजनाओं का आवंटन बढ़ाने के लिए ज्यादा गुंजाइश नहीं बची। पूंजीगत व्यय आवंटन सिर्फ 10 फीसदी बढ़ रहा है। सही मायने में कोर कैपेक्स (सड़क, रेलवे और रक्षा) के अगले वित्त वर्ष में सालाना आधार पर सिर्फ 3 फीसदी की दर से बढ़ने का अनुमान है। यह वित्त वर्ष 25 के बराबर ही है। ग्रामीण क्षेत्र की बात करें, तो सिर्फ जल जीवन मिशन पर फोकस बढ़ा है। वहीं, MNREGA (ग्रामीण रोजगार) और PM किसान (किसान) का बजट सालाना आधार पर तकरीबन जस का तस है।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का बजट में फोकस नियमों की जटिलता दूर करने पर भी रहा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि MSME के लिए अप्रूवल, डॉक्युमेंटेशन, सर्टिफिकेशन और लाइसेंस को आसान बनाने की जरूरत है। यह रोजगार बढ़ाने का भी काम करेगा। कुल मिलाकर, व्यय में धीमी रफ्तार बनी रहेगी और खपत की तरफ झुकाव रहेगा

शेयर मार्केट पर क्या असर होगा?
नुवामा इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के अबनीश रॉय (Abneesh Roy) का कहना है कि अगर शेयर मार्केट की नजर से देखें, तो कंजम्पशन सेगमेंट को लाभ होने की संभावना है। यह चीज बजट के दिन नजर आई थी, जब बजट के बाद सरकारी और रक्षा क्षेत्र के शेयर धड़ाम हो गए। लेकिन, फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स शेयरों में जोरदार उछाल दिखा।
अबनीश रॉय का कहना है कि पोर्टफोलियो के बारे में में हमारा रक्षात्मक नजरिया बरकरार है। हम उपभोग से जुड़े शेयरों को कैपेक्स के मुकाबले प्राथमिकता देके हैं। प्रमुख ओवरवेट सेक्टर की बात करें, तो ये उपभोक्ता, निजी बैंक, बीमा, केमिकल, फार्मा और टेलीकॉम रहेंगे। इनमें निवेशकों को पैसे बनाने का मौका मिल सकता है। वहीं, औद्योगिक क्षेत्र, धातु और ऊर्जा सेक्टर अंडरवेट रहेंगे। इनमें सुस्ती देखने को मिल सकती है।

Back to top button