इंदौर: पेड़ों के ट्रांसप्लांट की हकीकत, लाखों रुपए खर्च, एक भी पेड़ जिंदा नहीं बचा

इंदौर में पेड़ों को काटने से बचाने के लिए जन आंदोलन खड़े हो रहे हैं। एमओजी लाइन और हुकुमचंद मिल के पेड़ों की कटाई को रोकने के लिए जनता लगातार प्रदर्शन कर रही है। इस बीच निगम ने फिर से पेड़ों के ट्रांसप्लांट की बात की है। जब भी सड़क, फ्लाय ओवर, मेट्रो या अन्य निर्माण के लिए पेड़ कटते हैं तो निगम उन्हें ट्रांसप्लांट करने की बात कहता है। इस बीच अमर उजाला ने जाना कि पेड़ ट्रांसप्लांट कितना सफल है। नगर निगम ने लगभग दो साल पहले सिरपुर तालाब और उसके आसपास के क्षेत्र में बड़ी संख्या में शहर के पेड़ों को ट्रांसप्लांट किया था। यहां पर ट्रांसप्लांट पेड़ों में अब एक भी पेड़ जिंदा नहीं बचा है। सभी पेड़ों के तने पूरी तरह से काले पड़ गए हैं और वे सूखकर मुरझा चुके हैं।

दो साल पहले किया था ट्रांसप्लांट
सिरपुर तालाब के दरोगा धर्म नारायण ने बताया कि वे दो महीने पहले ही यहां पर आए हैं। इससे पहले वे निगम के उद्यान विभाग में पदस्थ थे। उन्होंने बताया कि दो से तीन साल पहले इन पेड़ों को ट्रांसप्लांट किया गया था लेकिन किस वजह से यह सूख गए इसकी उन्हें जानकारी नहीं है।

ट्रांसप्लांट में आता है लाखों का खर्च
पेड़ों को ट्रांसप्लांट करने में लाखों रुपए का खर्च आता है। इनके लिए निगम जेसीबी, क्रेन जैसी कई बड़ी मशीनें लगाता है। कई मजदूर पेड़ों की कंटाई, छंटाई और मिट्टी की खुदाई के बाद उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पहुंचाने का काम करते हैं।

विशेषज्ञ बोले ट्रांसप्लांट फेल होने के कई कारण
पर्यावरण विशेषज्ञ और प्रकृति प्रेमी संदीप खानवलकर ने बताया कि पेड़ों का ट्रांसप्लांट कई कारण से फेल हो सकता है। ट्रांसप्लांट के दौरान कई बातों का ध्यान रखना पड़ता है। दुनिया के कई देशों में पेड़ ट्रांसप्लांट किए जा रहे हैं और सभी अलग अलग तकनीक का उपयोग करते हैं।

इन वजहों से फेल होते हैं ट्रांसप्लांट

गलत मौसम में ट्रांसप्लांट करना।
ट्रांसप्लांट के वक्त पेड़ों की मुख्य जड़ों का टूटना।
ट्रांसप्लांट के बाद पेड़ों को उचित पानी, खाद न मिलना।
ट्रांसप्लाट करने के दौरान सही तकनीक का उपयोग न करना।
पेड़ की प्रकृति और मिट्टी की प्रकृति में अधिक अंतर होना।

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