भारत की पहली नृत्यांगना जिसने अपनी भरतनाट्यम से पूरी दुनिया को हिला दिया…

बालासरस्वती भरतनाट्यम की सुप्रसिद्ध नृत्यांगना। जिन्हें ‘संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार’, ‘पद्मभूषण’ और ‘मानद विद्या वाचस्पति’ आदि अलंकारणों से सम्मानित किया गया था। टी. बालासरस्वती एक ऐसी नृत्यांगना थी, जिनके थिरकते कदमों से पूरी दुनिया थिरकती थी। बालासरस्वती का जन्म तमिलनाडु में 13 मई, 1918 को शास्त्रीय संगीत और नृत्य से जुड़े एक परिवार में हुआ था। मात्र चार साल की उम्र में बाला ने कंदप्पा पिल्लई के अधीन डांस सीखना शुरू कर किया। और यह एक कठोर परिश्रम था, क्योंकि उन दिनों संगीत को एक अलग इकाई नहीं माना गया था। हालांकि बाद में यह बाला शैली की एक पहचान बन गई। भारतीय नृत्यांगना के रूप में वह देश के कोने-कोने में प्रख्यात हो गईं थीं। बालासरस्वती का नाम देश के कोने-कोने में घूम रहा था। 

भारत की पहली नृत्यांगना जिसने अपनी भरतनाट्यम से पूरी दुनिया को हिला दिया...

 

एक नर्तकी के रूप में टी. बालासरस्वती ने अपने कैरियर की शुरुआत 1925 में की थी। वह दक्षिण भारत के बाहर भरतनाट्यम नृत्य प्रस्तुत करने वाली पहली कलाकार थीं। उन्होंने पहली बार सन 1934 में कोलकाता में अपनी नृत्य कला को प्रस्तुत किया था।बता दें कि बालासरस्वती का पूरा परिवार संगीत और नृत्य में शामिल था। उनकी दादी, विना धनमल बीसवीं शताब्दी की एक सबसे प्रभावशाली संगीतकार मानी जाती हैं। वहीं उस समय उनकी मां, जयाम्मल एक मशहूर और जानी मानी गायक थीं। उन्होंने 1934 में कलकत्ता में पहली बार दक्षिण भारत के बाहर अपनी परंपरागत शैली का प्रदर्शन किया। दक्षिण भारत के बाहर पहला प्रदर्शन करने वाली वह पहली महिला थीं।

 

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लेकिन कहते हैं कि जब मन में जुनून और कुछ कर दिखाने का जज्बा हो तो लोगों के इरादे भी मजबूत हो जाते हैं। बाला के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। बाला ने हिम्मत नहीं हारी और अपने इरादे मजबूत कर लिए। बाला को अरीयाक्कुदी रामानुजा अय्यंगार जैसे समर्थकों से समर्थन प्राप्त हुआ। संगीत अकादमी ने भी उनका साथ दिया। संस्था के सचिव डॉ राघवन ने बाला के लिए एक मंच पेश किया। यहां से उनकी जिंदगी ने नया मोड़ ले लिया था। बाला ने पूरे भारत में अपनी कला का प्रदर्शन किया। 1962 में, बाला ने अमेरिका की तरफ रुख किया। उन्होंने 16 केंन्द्रों में प्रदर्शन किया। जहां उनकी प्रतिभा की खूब तारीफ हुई। लोगों ने उन्हें महान नृतकियों में से एक बताया। 

 

बालासरस्वती, संगीतकारों और नर्तकियों के परंपरागत परिवार की सातवीं पीढ़ी हैं, जिन्हें  देवदासी के नाम से भी जाना जाता है। डगलस नाइट जूनियर की जीवनी, “बालासरस्वती हर्ट आर्ट एंड लाइफ” 2010 में प्रकाशित हुई। वेशलेयन यूनिवर्सिटी प्रेस द्वारा प्रकाशित ये लेख न केवल बालासरस्वती के जीवन का एक प्रशंसनीय लेख है, बल्कि यह भी कि औपनिवेशिक और राष्ट्रवादी आधुनिकता के हमले के माध्यम से परंपरागत नृत्य का एक कलात्मक विरासत कैसे बच गया। 

 

बालासरस्वती को भरतनाट्यम में महारत हासिल थी। वह पैरों में पायल पहनकर जब भरतनाट्यम करती थीं, तो उनके हाथों की मुद्राएं,  चेहरे का भाव, लोगों को खूब आकर्षित करता था। उनके एक-एक भाव के लोग कायल थे। बता दें कि बंगाली फिल्म निर्देशक सत्यजीत रे ने एक बालासरस्वती पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी बनाई, जिसका नाम उन्होंने बाला रखा। 

बालासरस्वती का नाम उस वक्त लोगों की जुबान पर आ गया जब एक युवा किशोरी के रूप में, उसे कोरियोग्राफर उदय शंकर ने देखा। जो उनकी कला देखकर उनके प्रवर्तक बन गए। वह एक वैश्विक कैरियर की ओर बढ़ गईं। बालासरस्वती ने मद्रास में एक संस्था के साथ मिलकर नृत्य स्कूल की स्थापना की। यहां उन्होंने अपने अनुसार नर्तकियों को ट्रेनिंग देना शुरू किया। इसके बाद उन्होंने बहुत तेजी से विश्व स्तर पर अपनी पहचान बना ली। बाला ने 1960 के दशक में पूर्वी एशिया, यूरोप और उत्तर अमेरिका में अपनी इस कला के जरिए एक अलग पहचान बनाईं।  

 

 

दिलचस्प बात तो ये है जिस नृतकी की पूरी दुनिया दीवानी थी, उन्हें खिलौनों से बहुत प्यार था। बाला को खिलौने इकट्ठा करने का बेहद शौक था। बाला ने विभिन्न देशों के दौरे के दौरान कई खिलौने कलेक्ट किए। बाला की संगीत अकादमी संस्था में जिन लोगों ने नृत्य में महारत हासिल की उनमें इंदिरा रेड्डी, विजया, उमा-राम, श्यामला, शशिकला, जयंती, चंद्रकपाल, राजिमाणी, माथंगी, गीता, सुगुना और सरतकला शामिल थे। बाद की अवधि में दीपिका, दलाया, उमा (कैलिफोर्निया में एक विद्यालय चलाती है), रंजनी, विजयासरी और सावित्री भी थीं। 

टी. बालासरस्वती को उनकी कला के लिए कई तरह के पुरस्कार से नवाजा गया। साल 1955 में ‘संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार’, साल 1973 में ‘मद्रास संगीत अकादमी’ से ‘कलानिधि पुरस्कार’ और 1977 में ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया था। लेकिन 9 फरवरी साल 1984 को भारत की मशहूर नृत्यांगना बाला ने 64 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया।  

 

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