दिवालिया होने की कगार पर था भारत, मनमोहन सिंह ने इकोनॉमी को डूबने से कैसे बचाया?

भारत के लिए 1990 के दशक की शुरुआत किसी बुरे सपने से कम नहीं थी। विदेशी निवेश के लिए दरवाजे ठप थे। ‘इंस्पेक्टर राज’ ने उद्योग-धंधे खोलना मुश्किल कर रखा था। अर्थव्यवस्था चौपट होने की कगार पर थी। उस वक्त मनमोहन सिंह संकटमोचक की तरह सामने आए। उनकी नीतियों ने न सिर्फ भारत को दिवालिया होने से बचाया, बल्कि उसे इस काबिल बनाया कि वह तीन दशक बाद दुनिया की शीर्ष पांच अर्थव्यवस्थाओं में शुमार हो सके।

भारतीय अर्थव्यवस्था की समस्या क्या थी?
1990 के दशक से पहले लाइसेंस परमिट राज था। इसका मतलब कि सबकुछ सरकार ही तय करती थी किस सामान का उत्पादन कितना होगा, उसे बनाने में कितने लोग काम करेंगे और उसकी कीमत क्या होगी। इस परमिट राज ने देश में कभी निवेश का माहौल पनपने ही नहीं दिया।

इससे सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ता गया और नौबत दिवालिया होने तक की आ गई। भारत को उस समय अपने जरूरी खर्च चलाने के लिए सोना तक विदेश में गिरवी रखना पड़ा। भारत के पास इतना विदेशी मुद्रा भंडार था कि उससे दो हफ्ते के आयात का खर्च ही उठाया जा सकता था।

मनमोहन सिंह ने इकोनॉमी को कैसे संभाला
उस समय केंद्र में नरसिम्हा राव की सरकार थी, जो देश के सबसे सुलझे नेताओं में गिने जाते थे। उन्होंने वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी मनमोहन सिंह को सौंपी। इसकी वजह भी बड़ी खास थी। उस वक्त भारत की साख बेहद गिर चुकी थी। कोई भी बड़ी अंतरराष्ट्रीय हमें कर्ज देने को तैयार नहीं थी।

राव ने मनमोहन सिंह को इसलिए वित्त मंत्री बनाया, ताकि अंतरराष्ट्रीय बैंकों से आसानी से कर्ज मिल सके। साथ ही, मनमोहन सिंह पहले भी आर्थिक सलाहकार के तौर पर सरकार के साथ काम कर चुके थे। वह आरबीआई गवर्नर भी रह चुके थे, लिहाजा उन्हें आर्थिक नीतियों का भी बेहतर अंदाजा था।

1991 के बजट में बदल गई देश की सूरत
वह दिन था 24 जुलाई 1991, मनमोहन सिंह का बतौर वित्त मंत्री पहला बजट। अमूमन बजट तैयार करने में तीन महीने लगते हैं, लेकिन बजट लोकसभा चुनाव के बाद पेश किया जा रहा था, तो मनमोहन सिंह को सिर्फ एक ही महीने का वक्त मिला। उन्होंने इस महीने में कमाल कर दिया।

उन्होंने बजट में लाइसेंस परमिट राज को खत्म कर दिया। बंद अर्थव्यवस्था को खोल दिया, घरेलू निजी कंपनियां आईं, विदेशी कंपनियों ने भी एंट्री की। इससे सिस्टम में पैसा आया और कंपनियां फलने-फूलने लगीं। करोड़ों नए रोजगार पैदा हुए। करोड़ों लोग गरीबी रेखा से पहली बार ऊपर उठे।

1991 के बजट की मुख्य बातें:
इस बजट ने आर्थिक उदारीकरण की शुरू की, जिससे निवेश का माहौल बेहतर हुआ।
लाइसेंसिंग राज का अंत किया गया। कंपनियों को कई तरह की प्रतिबंधों से छूट दी गई।
आयात-निर्यात नीति में बदलाव हुआ। इससे भारत का व्यापार काफी बेहतर हो गया।
विदेशी निवेश का स्वागत किया गया, इससे निवेश और नौकरियों की भरमार हो गई।
सॉफ्टवेयर के निर्यात के लिए टैक्स में छूट दी गई, जिससे भारत टेक्नोलॉजी का हब बना।

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