रूस के हमले के बाद भारत के लिए बढ़ी कच्चे तेल की चिंता

रूस और यूक्रेन के बीच तनाव थमने का नाम नहीं ले रहा है और अब रूस ने अपनी हमले की रणनीति को और तेज कर दिया है। 21 नवंबर को रूस ने यूक्रेन के निप्रो शहर पर इंटरकॉन्टिनेंटल मिसाइल RS-26 रूबेज से हमला किया, जिससे संघर्ष में और बढ़ोतरी हुई है। इस हमले के बाद वैश्विक ऊर्जा बाजार में हलचल मच गई और कच्चे तेल की कीमतों में भारी उछाल आया है। ब्रेंट क्रूड वायदा 74.37 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया है, जिससे भारत जैसे तेल आयातक देशों के लिए आर्थिक चिंता बढ़ गई है। कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें भारत की ऊर्जा सुरक्षा और महंगाई दर पर गहरा असर डाल सकती हैं।

क्या होगा असर?

भारत जैसे ऊर्जा आयात पर निर्भर देशों के लिए तेल की बढ़ती कीमतें चिंता का विषय हैं। भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों का अधिकांश हिस्सा आयात करता है, जिससे वैश्विक तेल बाजार के उतार-चढ़ाव का सीधा असर पड़ता है। कच्चे तेल की ऊंची कीमतें न केवल व्यापार घाटे को बढ़ा सकती हैं, बल्कि महंगाई दर में भी इजाफा कर सकती हैं। रूस भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता है, इसलिए सप्लाई में किसी भी बाधा का भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर गहरा असर पड़ सकता है।

तेल बाजार पर एक और असर OPEC+ की आगामी बैठक से पड़ सकता है। पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (OPEC) और रूस के नेतृत्व वाले उसके सहयोगी 1 दिसंबर को होने वाली बैठक में उत्पादन बढ़ाने की योजना को टाल सकते हैं। OPEC+ ने पहले 2024 और 2025 में उत्पादन में मामूली बढ़ोतरी की योजना बनाई थी लेकिन वैश्विक तेल मांग में कमी और अन्य देशों द्वारा उत्पादन में बढ़ोतरी ने इस योजना को मुश्किल बना दिया है।

भारत की चिंताएं

अमेरिका में कच्चे तेल के भंडार में अप्रत्याशित वृद्धि ने भी बाजार की स्थिति को और जटिल बना दिया है। यह वृद्धि 5,45,000 बैरल की थी, जिससे भंडारण का स्तर 43.03 करोड़ बैरल तक पहुंच गया। रूस-यूक्रेन युद्ध और इन घटनाक्रमों से वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति और कीमतों पर बड़ा असर पड़ सकता है और भारत जैसे आयातक देशों के लिए यह स्थिति आर्थिक चुनौतियों को और बढ़ा सकती है।

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