उत्तराखंड में एक बार फिर कैबिनेट विस्तार व फेरबदल की चर्चाएं हुई तेज, BJP विधायकों में बढ़ी हलचल

उत्तराखंड में एक बार फिर कैबिनेट विस्तार व फेरबदल की चर्चाएं तेज हो गई हैं। माना जा रहा है भाजपा हाईकमान जल्द सीएम धामी कैबिनेट का विस्तार कर सकता है। इधर, कई मंत्रियों के अचानक राज्यपाल से मुलाकात के बाद इन चर्चाओं को भी बल मिलने लगा है। सूत्रों की मानें तो भाजपा विधायकों के बीच लॉबिंग भी शुरू हो गई है।

सीएम धामी कैबिनेट में पिछले लगभग सवा साल से तीन मंत्रियों के पद खाली चल रहे हैं। इसी साल अप्रैल माह में कैबिनेट मंत्री चंदनराम दास के आकस्मिक निधन के बाद एक अन्य पद रिक्त हो चुका है। फिलहाल उनके सभी विभाग मुख्यमंत्री पुष्कर धामी स्वयं संभाल रहे हैं।

कैबिनेट विस्तार का समय जैसे-जैसे लंबा खिंच रहा है तो भाजपा विधायकों की बैचेनी बढ़ती जा रही है। कई विधायक मंत्री पद के लिए लाबिंग में भी लगे हैं। ये कई बार हाईकमान के समक्ष दस्तक दे चुके हैं। इधर, फिर कैबिनेट विस्तार और दो से तीन मंत्रियों की छुट्टी की चर्चाएं फिर शुरू हो गई हैं।

पार्टी सूत्रों का कहना है कि मंत्रियों के परफोरमेंस का फीड बैक हाईकमान को भेजा जा चुका है। अभी दो बड़े जिले हरिद्वार और नैनीताल का कैबिनेट में प्रतिनिधित्व नहीं है। विस्तार में इन दोनों जिलों से एक-एक विधायक को कैबिनेट में प्रतिनिधित्व मिलना तय माना जा रहा है।

चूंकि, अगले साल लोकसभा चुनाव भी होने हैं। ऐसे में कई विधायक भी जल्द विस्तार की उम्मीदें पाले हैं। उधर, पार्टी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि 30 जून तक संगठन के पूरे देश में महा जनसंपर्क अभियान चलेगा लिहाजा इस अवधि में विस्तार व फेरबदल की गुंजाइश कम हैं, लेकिन जुलाई में कभी भी कैबिनेट में नए चेहरे देखने को मिल सकते हैं।

दो दिन पहले राज्यपाल गुरमीत सिंह और मुख्यमंत्री पुष्कर धामी के बीच शिष्टाचार मुलाकात के बाद मंगलवार को कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज और सुबोध उनियाल ने भी राज्यपाल से भेंट की हैं। इससे कयासबाजी बढ़ने लगी है। उधर, संपर्क करने पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट का कहना है कि कैबिनेट विस्तार तो होना ही है। इस संबंध में हाईकमान से भी चर्चा हो चुकी है, लेकिन इस पर फैसला मुख्यमंत्री को ही लेना है।

अभी पार्टी संगठन का महा जनसंपर्क अभियान चल रहा है। लिहाजा, इसके बाद ही हाईकमान इस पर विचार कर सकता। विभिन्न निगम, बोर्ड और परिषदों में दायित्व आवंटन पर ही हाईकमान को फैसला लेना है।

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