आज के लेेख में हम जानेंगे आंख फड़कने की वजह इसके प्रकार और क्या है इसका इलाज..
आंखों के फड़कने की समस्या किसी को भी और कभी भी हो सकती है लेकिन अगर यह लगातार बनी रहे तो बिना देर किए डॉक्टर से संपर्क करें क्योंकि ये किसी गंभीर परेशानी की ओर भी इशारा हो सकता है। आज के लेेख में हम जानेंगे आंख फड़कने की वजह इसके प्रकार और क्या है इसका इलाज। जानें यहां विस्तार से।
आंख का फड़कना अपनी इच्छा से नहीं होता और इसका संबंध स्वाभाविक रूप से पलक झपकने से है। ऐसा दिन में कई बार हो सकता है। यह आम समस्या है। कई लोगों को यह परेशानी हो सकती है। इसका प्रमुख कारण ओकुलर मायोकिमिया होता है। पलक की मांसपेशियों में ऐंठन की वजह से आंख फड़कने की समस्या हो सकती है। कुछ सेकेंड या मिनटमें ये अपने आप बंद हो जाती है, लेकिन अगर नीचे और ऊपर की दोनों पलके लगातार फड़कने लगे और कई दिनों तक ये समस्या बनी रहे, तो और ज्यादा देर किए बिना डॉक्टर से दिखाएं क्योंकि यह किसी बीमारी का भी संकेत हो सकता है।
मेडिकल फील्ड में आंख फड़कने की तीन अलग-अलग स्थिति बताई गई है, जिसे मायोकेमिया, ब्लेफेरोस्पाज्म और हेमीफेशियल स्पाज्म के नाम से जाना जाता है। जानेंगे इनके बारे में।
मायोकेमिया
इस समस्या में आंखों का फड़कना नॉर्मल होता है। जो कभी-कभार होता है और खुद से कुछ देर में ठीक भी हो जाता है। यह समस्या ज्यादातर स्ट्रेस, आंखों की थकान, कैफीन के ज्यादा सेवन, नींद की कमी या फिर लंबे वक्त तक मोबाइल या कंप्यूटर के ज्यादा इस्तेमाल से होती है।
ब्लेफेरोस्पाज्म
यह समस्या आंखों की मसल्स सिकुड़ने की वजह से होती है। जो आंखों के लिए नुकसानदायक होता है। इस बीमारी में व्यक्ति को पलकें झपकाते हुए दर्द होता है और कई बार तो आंखों को खोलना भी मुश्किल हो जाता है। इसके साथ ही आंखों में सूजन बनी रहती है, चीज़ें धुंधला दिखाई देती हैं।
हेमीफेशियल स्पाज्म
इस प्रॉब्लम में चेहरे का आधा हिस्सा सिकुड़ जाता है जिसका इसका असर आंख पर भी नजर आता है। पहले तो इसमें आंखे फड़कती हैं लेकिन बाद में गाल और मुंह की मसल्स भी फड़कने लगती हैं। यह आमतौर पर किसी तरह के जलन और चेहरे की नसों के सिकुड़ने की वजह से होता है। इस तरह का फड़कना लगातार बना रहता है।
ने बताया कि, ‘यह कोई गंभीर समस्या नहीं है और इसकी वजह से कोई दूसरी परेशानी नहीं होती। इस समस्या के कारणों में आंखों में ड्राईनेस, पलकों में संक्रमण या सूजन, लंबे समय तक स्क्रीन देखना, जिससे कंप्यूटर विजन सिंड्रोम भी होता है या नींद में कमी या अन्य कारणों से होने वाली थकान हो सकते हैं। इन मामलों में लुब्रिकेटिंग आई ड्रॉप्स और जेल के प्रयोग की सलाह दी जाती है।
लेकिन अगर इसका संबंध फेशियल डायस्टोमास से होता है, तो इसमें ऑप्थेलमोलॉजी और न्यूरोलॉजी से जुड़ी जांच कराने की जरूरत पड़ती है, जिनमें न्यूरोइमेजिंग तकनीक का सहारा भी लिया जा सकता है। गौरतलब है कि फेशियल डायस्टोमास में सामान्य असेंशियल ब्लेफरोस्पास्म और बेनिफिशियल स्पास्म शामिल होते हैं।
ब्लेफरोस्पास्म के लिए बोटुलिनम टॉक्सिन टाइप ए (बोन्टा) सबसे पहले दिया जाने वाला इलाज है। इससे 90 प्रतिशत से ज्यादा मरीजों में लक्षणों में सुधार दिखाई देता है। हालांकि, इन इंजेक्शंस के एक से ज्यादा सेट्स की जरूरत पड़ सकती है। उचित परिणाम दिखाई नहीं देने पर सर्जरी की सलाह दी जाती है।”