इस गांव में 70 साल से कायम है कम्युनिज्म! हर घर में लहराता है लाल झंडा…

दुनिया में बहुत से विचारधाराएं आईं और गईं, लेकिन कम्युनिज्म यानी साम्यवाद का प्रभाव आज भी कई जगह कायम है. फिल्मों में आपने लाल झंडे और क्रांतिकारियों की कहानियां देखी होंगी, लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में एक ऐसा गांव है, जहां कम्युनिज्म सिर्फ एक राजनीतिक विचारधारा नहीं, बल्कि जीवन जीने का तरीका बन चुका है?

वन्नीवेलमपट्टी: जहां हर गली में कम्युनिज्म जिंदा है
तमिलनाडु के विरुधुनगर जिले के पास टी. कल्लुपट्टी से थोड़ी दूरी पर स्थित वन्नीवेलमपट्टी गांव में कदम रखते ही आपको ऐसा लगेगा, जैसे आप किसी क्रांतिकारी धरती पर आ गए हों. यहां हर घर, हर गली में लाल झंडे लहराते हैं. गांव की दीवारों पर चे ग्वेरा, फिदेल कास्त्रो और कार्ल मार्क्स की तस्वीरें बनी हुई हैं.

हर बच्चा जानता है क्रांतिकारियों के नाम
इस गांव की सबसे खास बात यह है कि यहां के बच्चों को भी मार्क्स, लेनिन और चे ग्वेरा के बारे में पता होता है. नागजोथी नाम की महिला ने अपनी बेटियों का नाम मार्क्सिया और लेनिना रखा है. वह कहती हैं, “अगर बेटा होता तो उसका नाम लेनिन रखती.” यह दिखाता है कि यहां विचारधारा सिर्फ चर्चा का विषय नहीं, बल्कि लोगों की पहचान बन चुकी है.

70 साल से चला आ रहा है कम्युनिज्म का असर
यह कोई नई बात नहीं है. वन्नीवेलमपट्टी गांव पिछले 70 सालों से कम्युनिज्म की विचारधारा को जी रहा है. गांव की बुजुर्ग महिलाएं तक अपने हाथों पर हथौड़े और दरांती के टैटू गुदवाकर गर्व महसूस करती हैं. गाड़ियों, टी-शर्ट्स और दीवारों पर कम्युनिस्ट प्रतीक साफ देखे जा सकते हैं.

तंजावुर हत्याकांड से बदला गांव का भविष्य
1968 में तमिलनाडु के तंजावुर जिले में एक भयानक घटना हुई. वहां 44 गरीब मजदूरों को एक कमरे में बंद कर जला दिया गया. इस घटना का वन्नीवेलमपट्टी गांव पर गहरा असर पड़ा. गांव के वेम्बुली नामक व्यक्ति ने इस घटना से प्रेरणा लेकर गांव में कम्युनिज्म की शाखा स्थापित की. इसके बाद से यहां की सोच और भी ज्यादा साम्यवादी हो गई.

Back to top button