इस मंदिर में महिलाओं की No Entry! चौखट के बाहर से ही कर सकती हैं पूजा-पाठ और परिक्रमा!

छतरपुर जिले के बरहा गांव के पास स्थित एक अद्वितीय मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है. इस मंदिर का संबंध एक रोचक लोककथा से है, जो इसे खास बनाती है. लगभग चार सौ साल पहले, एक रियासत का राजा शांति और एकांत में जीवन व्यतीत करने के लिए इस जंगल में आया था. राजपाठ छोड़कर वह यहां निवास करने लगा.

राजा की आत्म-त्याग की कहानी
कहा जाता है कि जब राजा की पत्नी को उसके स्थान के बारे में पता चला, तो वह भी उस स्थान पर पहुंच गई. वहां पहुंच कर वह राजा से घर लौटने की जिद में अड़ गईं. तब राजा ने कहा, जिस शरीर के पीछे तुम यहां आई हो, मैं उस शरीर को ही याग देता हूं. इसके बाद राजा ने जिंदा समाधि ले ली और बिना देह के ही भक्ति में लीन हो गए. तभी से इस मंदिर का नाम “बिदेही बाबा” पड़ा, जिसका अर्थ है “बिना देह वाला बाबा”. इस मंदिर में बिदेही बाबा के चरण पादुका के साथ-साथ भोलेनाथ भी विराजमान हैं. आज भी इस मंदिर में आने वाले भक्तों की बाधाएं दूर होती हैं.

महिलाओं के लिए वर्जित नियम
हालांकि, इस मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है. वे मंदिर के बाहर से दर्शन कर सकती हैं, लेकिन अंदर जाने या चरण पादुका को छूने का प्रयास नहीं कर सकतीं. ऐसा करने पर उन्हें कष्ट भोगने की बात कही जाती है. विवाहित हों या अविवाहित, सभी महिलाओं के लिए मंदिर के भीतर जाना निषिद्ध है.

बिदेही बाबा का संबंध हनुमान जी से
गांव के बुजुर्ग रंजोल सिंह बताते हैं कि उनके पूर्वजों के अनुसार, बिदेही बाबा को हनुमान जी का भाई माना जाता है. ये मान्यता उन्हें भक्तों के बीच विशेष सम्मान दिलाती है. महिलाएं मंदिर के बाहर से दर्शन कर सकती हैं और परिक्रमा भी कर सकती हैं.

हर साल पौष माह में इस मंदिर में एक बड़ा मेला लगता है, जहां लाखों की संख्या में भक्त दर्शन करने आते हैं. इस अवसर पर गांव के आसपास के खेतों में रबी की फसल नहीं बोई जाती क्योंकि वहां वाहन खड़े किए जाते हैं. ये पल गांव के लोगों के लिए बेहद आनंददायक होते हैं. इस प्रकार, बिदेही बाबा का मंदिर एक अनोखी श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है, जो महिलाओं के लिए एक विशेष स्थान रखता है और उनकी भक्ति का सम्मान करता है.

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