चुनावी साल में जम्मू-कश्मीर का हाल, 10 साल के बदलावों की परीक्षा का वक्त…

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव 10 साल बाद होने जा रहे हैं। इस बीच राज्य के माहौल और सियासत ने अनेक करवटें ली हैं। इन्हीं दस वर्षों में अनुच्छेद-370 और 35ए की विदाई हुई, तो राज्य एक विधान-एक निशान और एक संविधान के संकल्प से जुड़ा। इन्हीं दस वर्षों में राज्य ने धुर विरोधी विचारधारा वाले दलों भाजपा व पीडीपी को हाथ मिलाकर सरकार बनाते और चलाते देखा। पूर्ण राज्य से केंद्रशासित प्रदेश और राज्यपाल से उप राज्यपाल तक के शासन की यात्रा भी इसी कालखंड का हिस्सा है।

जम्मू-कश्मीर के मतदाता नई उम्मीदों और आकांक्षाओं के साथ जब नई सरकार चुनने को तैयार हैं, यह चुनाव पिछले 10 वर्षों में राज्य के बदलावों और विकास के दावों की परीक्षा भी लेगा। इन चुनावों का असर सिर्फ देश तक ही सीमित नहीं रहने वाला है। पड़ोस में पाकिस्तान और बांग्लादेश में जब लोकतांत्रिक सरकारों के तख्तापलट का दौर चल रहा है, तब लोकसभा चुनाव के तीन महीने के अंदर जम्मू-कश्मीर के ये चुनाव बड़े अहम हो गए हैं। इन चुनावों से न सिर्फ अंतर्राष्ट्रीय जगत में देश की प्रतिष्ठा बढ़ेगी, बल्कि आंतरिक रूप से अस्थिर पड़ोसियों के लिए बड़ा सबक भी होगा। 

बड़ा संदेश : केंद्र आतंकी घटनाओं के दबाव में नहीं
अनुच्छेद-370 व 35 ए समाप्त किए जाने के बाद लोकसभा चुनाव में जम्मू-कश्मीर के मतदाताओं, खासकर घाटी के मतदाताओं पर देश-दुनिया की नजरें थीं। घाटी के मतदाताओं ने रिकॉर्ड मतदान कर पूरी दुनिया को बदलते जम्मू-कश्मीर की ऐसी छवि दिखाई कि आतंकी संगठन बौखला गए। मोदी सरकार के तीसरी बार शपथ लेने के साथ लंबे समय से शांत चल रहे जम्मू संभाग में आतंकी मुठभेड़ की जो घटनाएं शुरू हुईं, रुकने का नाम नहीं ले रही हैं। देश के कई जवानों को बलिदान होना पड़ा है। विपक्षी दल तक आरोप लगा रहे थे कि आतंकी घटनाओं का बहाना लेकर केंद्र चुनाव टालना चाहता है। न तो केंद्र और न ही चुनाव आयोग, कोई भी किसी भी तरह से आतंकी घटनाओं के दबाव में नजर नहीं आया।

अटकलें बेबुनियाद : हार जीत अपनी जगह लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्धता अपनी जगह 
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य में चुनाव कराने की समय सीमा 30 सितंबर तय की थी। विपक्ष तय समयसीमा में चुनाव कराने के लिए लगातार मांग कर रहा था और केंद्र सरकार की नीयत पर आशंकाएं भी जता रहा था। कई यह भी कहते नजर आ रहे थे कि एलजी के जरिये राज्य पर हुकूमत कर रहा केंद्र का सत्ताधारी दल अपनी जीत को लेकर निश्चिंत न होने से चुनाव टाल सकता है। भाजपा का एक धड़ा भी अभी चुनाव के पक्ष में नहीं था। इसके बावजूद केंद्र ने सारी बातों को निरा अटकलबाजी साबित करते हुए चुनाव की राह बनाई। आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों पर कड़ाई से अमल करते हुए तय समयसीमा में चुनाव कराने का एलान कर दिया। चुनाव प्रचार 30 सितंबर से एक दिन पहले 29 सितंबर को समाप्त हो जाएंगे। हालांकि, अंतिम चरण का मतदान एक अक्तूबर व मतगणना 4 अक्तूबर को होगी। संदेश साफ है कि चुनाव में हार-जीत अपनी जगह है, लोकतंत्र के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता कायम है।

निगाहें : अगली सरकार पूर्ण बहुमत वाली या बेमेल 
लोकसभा चुनाव के एलान तक कोई भी दल हाथ मिलाकर मैदान में नहीं आ सका है। न तो भाजपा कोई गठबंधन बना पाई और न ही कांग्रेस किसी दल से हाथ मिला पाई। पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस से लेकर दूसरे छोटे दल तक गठबंधन को लेकर दुविधा में नजर आ रहे हैं। जम्मू से लेकर कश्मीर तक के तमाम लोगों की धारणा है कि आज की तिथि में कोई भी एक दल अपने बलबूते बहुमत लाकर चुनाव जीतने की स्थिति में नहीं है। कोई जम्मू संभाग में मजबूत है तो कोई कश्मीर संभाग में। कुछ छोटे दल दो-तीन जिलों व कुछ चुनिंदा सीटों तक फर्क डाल सकते हैं। 

कई सीटों पर राजनीतिक दलों के दावेदार चेहरों से मजबूत निर्दलीय नजर आ रहे हैं। कोई दल राज्य की सभी 90 सीटों पर अकेले बलबूते अपने मजबूत प्रत्याशी उतार ले जाएगा, यह तक साफ नहीं है। ऐसे में एक बार फिर सबकी नजरें हैं कि नई सरकार कैसे आकार ले पाती है? क्या अनुमान से उलट कोई पूर्ण बहुमत ला पाता है या फिर बेमेल गठबंधन का दौर लौट आता है? 

कसौटी बड़ी : लोकसभा चुनाव से हो सकेगा अधिक मतदान  
जम्मू-कश्मीर के मतदाताओं ने लोकसभा चुनाव में रिकॉर्ड मतदान किया। घाटी की तीन लोकसभा सीटों पर जमकर वोट पड़े। जम्मू संभाग में बढ़ी आतंकी घटनाओं के बीच चुनाव आयोग के सामने आम चुनाव में हुए मतदान को पीछे छोड़ना सबसे बड़ी चुनौती होगी। हालांकि, लगातार आतंकी घटनाओं के बावजूद अमरनाथ यात्रा 10 साल का रिकॉर्ड तोड़कर संपन्न होने वाली है। 

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