कई जानवरों में होती है “छठी इंद्रीय”, ज्यादा ही सुन सकते हैं वो, छपकलियों की नई रिसर्च ने किया खुलासा
किसी भी जानवर को कम नहीं आंकना चाहिए. कुदरत ने उन्हें जिंदा रहने के लिए खास काबिलियतों से नवाजा है. लेकिन कई बार उनके कुछ हुनर ज्यादा ही खास हो जाते हैं. एक नई रिसर्च में छिपकलियों के बारे में ऐसा ही कुछ अनोखा खुलासा हुआ है. मैरीलैंड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया है कि छिपकलियां कंपन का पता लगाने के लिए संतुलन से जुड़े एक सिस्टम का उपयोग करती हैं. यह जानवरों के सुनने और छूने से जुड़ी उत्तेजनाओं को समझने के बारे में नई जानकारी प्रदान करता है.
पहले नहीं था इसका जरा भी अंदाजा
मैरीलैंड विश्वविद्यालय के जीवविज्ञानियों ने छिपकलियों में एक ऐसी प्रतिभा की खोज की है जो पहले से पता नहीं थी और जो जानवरों की सुनने की क्षमता के बारे में हमारी जानकारी को हिलाकर रख देती है. 4 अक्टूबर, 2024 को करंट बायोलॉजी में प्रकाशित एक नई स्टडी अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने खुलासा किया कि छिपकलियां कम फ्रीक्वेंसी वाले कंपन का पता लगाने के लिए सैक्यूल का उपयोग करती हैं.
कितना खास होता है सैक्यूल
सैक्यूल छिपकलियों के अंदरूनी कान का एक हिस्सा होता है. यह पारंपरिक रूप से संतुलन और शरीर की स्थिति बनाए रखने से जुड़ा हुआ है. शोधकर्ताओं के अनुसार, यह विशेष “छठी इंद्रिय” छिपकलियों की सामान्य सुनने की क्षमता और उनके आस-पास की दुनिया को महसूस करने के तरीके में एक मददगार जैसी भूमिका भी निभाती है.
कम ही समझते रहे हम जानवरों को
टीम का मानना है कि यह पहले से अज्ञात सुनने की क्षमता अन्य सरीसृप प्रजातियों में भी मौजूद हो सकती है, जो जानवरों की संवेदी प्रणालियों के समय के साथ विकसित और अलग होने के बारे में मौजूदा विचारों को चुनौती देती है. साफ है वैज्ञानिक मान रहे हैं कि हम अब तक जानवरों को कमतर ही आंकते रहे थे.
गेको में सैक्यूल की नई भूमिका
यूएमडी में जीवविज्ञान की एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय प्रोफेसर और अध्ययन की सह-लेखिका कैथरीन कैर ने कहा “जैसा कि हम जानते हैं, कान हवा में उड़ने वाली आवाज़ों को सुनता है. यह प्राचीन आंतरिक मार्ग आमतौर पर संतुलन से जुड़ा होता है. यह गेको को भी ज़मीन या पानी जैसे माध्यमों से गुज़रने वाले कंपनों का पता लगाने में मदद करता है.”
सुनने की काबिलियत का इतिहास
उन्होंने कहा, “यह मार्ग उभयचरों और मछलियों में मौजूद है, और अब यह छिपकलियों में भी संरक्षित साबित हुआ है. हमारे नतीजों से पता चलता है कि सुनने की प्रणाली कैसे विकसित हुई. जो आप मछलियों में देखते हैं, वही इंसानों सहित जमीन के जानवरों में दिखती है.” सैक्यूल 50 और 200 हर्ट्ज़ तक के हल्के कंपनों को पहचान सकता है, जो कि गेको की अपने कानों से सुनी जाने वाली आवाज़ से काफ़ी कम है.
गेको में ज्यादा काबिलियत
शोधकर्ताओं का कहना है कि यह दर्शाता है कि सैक्यूल गेको की नियमित श्रवण प्रणाली के लिए एक अलग लेकिन कुछ जोड़ने वाला काम करता है. गेको हवा में उड़ने वाली आवाज़ें सुन सकते हैं, जबकि कई अन्य सरीसृपों में यह काबिलियत नहीं होती है. अध्ययन के मुख्य लेखक और यूएमडी में पोस्टडॉक्टरल शोधकर्ता और पूर्व स्नातक छात्र दावेई हान कहते हैं कि गेको की सुनने की क्षमता में सैक्यूल की भूमिका की खोज से अन्य जानवरों में संचार और व्यवहार की बेहतर समझ हो सकती है, जिन्हें पहले सीमित सुनने वाली क्षमता का माना जाता था.
सोच बदलने की जरूरत है
हान ने समझाया, “बहुत सारे सांपों और छिपकलियों को इस अर्थ में ‘मूक’ या ‘बहरा’ माना जाता था कि वे आवाज़ नहीं निकाल पाते या अच्छी तरह से आवाज़ नहीं सुन पाते, लेकिन यह पता चला है कि वे संभावित रूप से इस संवेदी मार्ग का उपयोग करके कंपन संकेतों के जरिए संचार कर सकते हैं, जो वास्तव में वैज्ञानिकों के जानवरों की धारणा के बारे में सोचने के तरीके को बदल देता है.”
स्टडी के नतीजे बताते हैं कि कैसे जानवरों के विकास के मामले में साइंटिस्ट कान और उसकी काबिलियतों के बदालवों को अब और अधिक समझ पा रहे हैं. ये नतीजे सीधे तौर पर इंसानों की सुनने की क्षमता से जुड़े नहीं हैं. फिर भी कैर और हान को उम्मीद है कि उनके नतीजे स्तनधारोयों के सुनने की क्षमता के बारे में और अधिक पड़ताल को प्रेरित करेंगे. उनका मानना है कि सुनने और संतुलन के बीच स्थापित लिंक अनुसंधान के लिए नए रास्ते खोलता है, जिसमें मानव सुनने और संतुलन विकारों के बीच संबंध शामिल है.