हाईकोर्ट की अहम टिप्पणी: विवाहित का सहमति संबंध में रहना व्यभिचार और द्विविवाह जैसा

घर से भाग कर सहमति संबंध में रह रहे प्रेमी जोड़े अपने माता-पिता का नाम खराब करने के साथ ही उनके सम्मान के साथ जीने के अधिकार का भी उल्लंघन कर रहे हैं। साथ ही पहले से विवाहित होकर सहमति संबंध में रहना न केवल व्यभिचार बल्कि द्विविवाह भी है, जो अपराध है। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने सहमति संबंध में सुरक्षा को लेकर एक साथ कई याचिकाओं को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की है।

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि भारत सहमति संबंध की पश्चिमी संस्कृति को अपना रहा है। यदि हम मान लें कि याचिकाकर्ताओं के बीच संबंध विवाह की प्रकृति का संबंध है, तो यह विवाहित पत्नी और बच्चों के साथ अन्याय होगा। विवाहित पुरुष और महिला या विवाहित महिला और पुरुष के बीच लिव-इन रिलेशनशिप विवाह के समान नहीं है, बल्कि यह व्यभिचार और द्विविवाह के बराबर है, जो गैरकानूनी है।

सुरक्षा देकर हम गलत काम करने वालों को प्रोत्साहित कर रहे

अमृतसर के याचिकाकर्ता इस तथ्य से पूरी तरह अवगत हैं कि वे दोनों पहले से विवाहित हैं, इसलिए वे लिव-इन रिलेशनशिप में नहीं आ सकते। महिला अपने पति से तलाक ले चुकी है, लेकिन पुरुष ने पत्नी से तलाक नहीं लिया है। सभी सहमति संबंध विवाह की प्रकृति के नहीं होते। इसलिए विवाह में प्रवेश करना एक ऐसे रिश्ते में प्रवेश करना है, जिसका सार्वजनिक महत्व होता है। परिवार सुरक्षा प्रदान करता है और बच्चों के पालन-पोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रत्येक व्यक्ति को शांति और सम्मान के साथ जीने का अधिकार है, इसलिए इस प्रकार के रिश्ते को सुरक्षा देकर हम गलत काम करने वालों को प्रोत्साहित कर रहे हैं और कहीं न कहीं द्विविवाह की प्रथा को बढ़ावा दे रहे हैं। इससे अनुच्छेद 21 के तहत दूसरे पति-पत्नी और बच्चों के सम्मान के साथ जीने के अधिकार का उल्लंघन होता है।

विवाह पवित्र रिश्ता है, जिसका सामाजिक सम्मान

याचिकाकर्ता अपने माता-पिता के घर से भागकर न केवल परिवार को बदनाम कर रहे हैं, बल्कि माता-पिता के सम्मान और गरिमा के साथ जीने के अधिकार का भी उल्लंघन कर रहे हैं। केवल इसलिए कि दोनों कुछ दिन से एक साथ रह रहे हैं, उनके द्वारा बिना किसी ठोस दावे के साथ लिव-इन-रिलेशनशिप का दावा यह मानने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता है। 

याचिकाओं को खारिज करते हुए न्यायालय ने कहा कि विवाह एक पवित्र रिश्ता है, जिसका कानूनी परिणाम और सामाजिक सम्मान है। यदि ऐसे संबंध को बढ़ावा मिला तो समाज का पूरा सामाजिक ताना-बाना बिगड़ जाएगा। हाईकोर्ट ने याचिकाओं को खारिज करते हुए याचिकाकर्ताओं को छूट दी कि वह खतरे के लिए पुलिस के पास आवेदन कर सकते हैं।

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