ILO Report: भारत में शिक्षित युवाओं के बेरोजगार होने की संभावना अधिक

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार, भारत में बिना स्कूली शिक्षा वाले युवाओं की तुलना में उच्च शिक्षित युवाओं के बेरोजगार होने की संभावना अधिक है। भारत के श्रम बाजार पर आईएलओ की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में स्नातकों के लिए बेरोजगारी दर 29.1% थी, जो पढ़ या लिख नहीं सकने वाले लोगों की 3.4% से लगभग नौ गुना अधिक है। माध्यमिक या उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं के लिए बेरोजगारी दर 18.4% थी, जोकि छह गुना अधिक थी।

ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, आईएलओ ने कहा, “भारत में बेरोजगारी मुख्य रूप से युवाओं, विशेषकर माध्यमिक स्तर या उससे अधिक शिक्षा प्राप्त युवाओं के बीच एक समस्या थी और समय के साथ यह बढ़ती गई।” आईएलओ ने कहा, “भारत में युवा बेरोजगारी दर अब वैश्विक स्तर से अधिक है।”

आंकड़े बताते हैं कि लेबर फोर्स का कौशल बाजार में पैदा होने वाली नौकरियों से मेल नहीं खाता है। इसको लेकर भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन जैसे जाने-माने अर्थशास्त्री ने भी पहले चेतावनी दी थी। उनका चेतावनी में रेखांकित किया गया था कि भारत की खराब स्कूली शिक्षा समय के साथ इसकी आर्थिक संभावनाओं में बाधा बनेगी।

चीन में, 16-24 आयु वर्ग के युवाओं की बेरोजगारी दर वर्ष के पहले दो महीनों में बढ़कर 15.3% हो गई, जो शहरी आबादी की 5.3% दर से लगभग तीन गुना अधिक है।

जबकि 15-29 आयु वर्ग के युवा बेरोजगार भारतीयों की हिस्सेदारी 2000 में 88.6% से घटकर 2022 में 82.9% हो गई, जबकि शिक्षित युवाओं की हिस्सेदारी इस अवधि में 54.2% से बढ़कर 65.7% हो गई, जैसा कि आईएलओ के आंकड़े बताते हैं।

महिलाएं अधिक प्रभावित
आंकड़े बताते हैं कि शिक्षित बेरोजगार युवाओं में महिलाओं की हिस्सेदारी 76.7% है, जबकि पुरुषों की संख्या 62.2% है। ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी भी अधिक थी। ILO ने कहा कि भारत में महिला श्रम बल भागीदारी दर दुनिया में सबसे कम, लगभग 25% है।

रिपोर्ट में कहा गया है, “इससे पता चलता है कि भारत में बेरोजगारी की समस्या युवाओं, विशेषकर शहरी क्षेत्रों के शिक्षित लोगों के बीच तेजी से केंद्रित हो गई है।”

शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि 2000 से 2019 तक युवाओं के रोजगार और अल्परोजगार में वृद्धि देखी गई, लेकिन कोविड-19 महामारी के वर्षों के दौरान इसमें गिरावट आई। आईएलओ ने कहा कि डिजिटल प्लेटफॉर्म ने कर्मचारियों और स्व-रोजगार व्यक्तियों के बीच अंतर को धुंधला कर दिया है, जिससे श्रमिकों की भलाई और कामकाजी परिस्थितियों के लिए नई चुनौतियां पैदा हो रही हैं।

रिपोर्ट में तथाकथित गिग नौकरियों, या खाद्य वितरण ड्राइवरों जैसे अस्थायी और कम भुगतान वाले रोजगार में वृद्धि के बारे में भी आगाह किया गया है।

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