अनदेखी और लापरवाही से छिन रही है आंखों की रोशनी

एम्स के डाॅ. राजेंद्र प्रसाद नेत्र विज्ञान केंद्र के विशेषज्ञों के शोध से इसका खुलासा हुआ है।

लोगों की लापरवाही आंखों से रोशनी के साथ शरीर की गतिशीलता छिन रही है। एम्स के डाॅ. राजेंद्र प्रसाद नेत्र विज्ञान केंद्र के विशेषज्ञों के शोध से इसका खुलासा हुआ है।

विशेषज्ञ का कहना है कि आंखों की गिरती रोशनी सहित दूसरी परेशानी को दूर करने के लिए सहायक प्रौद्योगिकी उपलब्ध हैं, लेकिन लोग जान बूझकर इनका प्रयोग नहीं करते। लंबे समय तक ऐसी स्थिति मरीज को दिव्यांग बना देती है। इन्हीं समस्याओं का पता लगाने के लिए एम्स के डॉक्टरों ने सहायक प्रौद्योगिकी का उपयोग, अपूर्ण आवश्यकताएं और पहुंच में बाधाएं: भारत में उप-जनसंख्या-आधारित अध्ययन विषय पर शोध किया।

इस शोध से पता चला कि देश की बड़ी आबादी को सहायक प्रौद्योगिकी की आवश्यकता है। सबसे ज्यादा लोगों में चश्में की कमी के कारण देखने में कठिनाई की समस्या दिखी। महिलाओं, वृद्ध आबादी, ग्रामीण निवासियों और गंभीर कठिनाइयों वाले व्यक्तियों में सहायक प्रौद्योगिकी का अभाव मिला।

शोध से जुड़े केंद्र के सामुदायिक नेत्र विज्ञान में प्रोफेसर डॉ. सूरज सिंह सेनजाम ने बताया कि शोध में आठ हजार से ज्यादा लोगों को शामिल किया गया। इसमें पाया गया कि काफी ऐसे लोग हैं जिन्हें ऐसी सुविधा के लिए अपनी जेब से भुगतान करना पड़ा, लेकिन इसे वहन करने में असमर्थता और सीमित उपलब्धता इन लोगों में बड़ी समस्या मिली। यही कारण है कि इन्होंने जरूरत होने के बाद भी इनका प्रयोग नहीं किया। इस कारण आगे चलकर समस्या बढ़ गई।

शोध में शामिल हुए 8486 लोग
अध्ययन के लिए 8964 व्यक्तियों को चुना गया। इसमें कुल मिलाकर 8486 प्रतिभागियों का सर्वेक्षण के लिए चुना गया। इनमें से 31.8 फीसदी (2700) लोगों में एक समस्या देखी गई। इसमें 6.3 फीसदी (532) को गंभीर या कुल कठिनाइयां थीं। सहायक प्रौद्योगिकी की आवश्यकता के लिए नमूना प्रचलन 27.8 फीसदी (2357) था।

शोध में गंभीर या कुल कठिनाइयों वाले व्यक्तियों में अपूरित आवश्यकताएं 52.3 फीसदी (278/532) थी। महिलाओं, ग्रामीण निवासियों और वृद्ध व्यक्तियों में यह समस्या सबसे ज्यादा दिखी। चश्मे सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किए जाने वाले उत्पाद थे। इसके बाद कैन, स्टिक, ट्राइपॉड और क्वाड्रिपॉड का स्थान था।

Back to top button