आईए जानें वैशाख शुक्ल एकादशी का महत्व…

पौराणिक कथाओं के अनुसार, कार्तिक शुक्ल द्वादशी और वैशाख शुक्ल द्वादशी ऐसी तिथियां है जो भगवान विष्णु की पूजा के लिए सर्वोत्तम मानी गई हैं। मान्यता है कि हजारों ब्राह्मणों को दान देने का जो फल प्राप्त होता है, वह इस वैशाख मास की द्वादशी में दान देने से प्राप्त हो जाता है। कार्तिक शुक्ल द्वादशी को नारायण निद्रा से उठते हं जबकि वैशाख शुक्ल द्वादशी को सर्वशक्ति संपन्न हो जाते हैं। वैशाख शुक्ल एकादशी को निकलने वाले अमृत की रक्षा करते हैं जिससे कि त्रयोदशी को देवताओं को इसका पान करा सकें।

परशुराम द्वादशी भी कहते हैं-

वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को परशुराम द्वादशी भी कहते हैं। मान्यता है कि भगवान परशुराम भगवान विष्णु के छठवें अवतार हैं। जिनका प्राकट्य अक्षय तृतीया को हुआ था। लेकिन परशुराम जी के रूप में इनका जीवन आरंभ वैशाख शुक्ल द्वादशी को हुआ था। शास्त्रों में इस तिथि को अत्यंत शुभ बताया गया है। यह तिथि निसंतान दंपत्ति के लिए अति शुभ मानी गई हैं।

वैशाख द्वादशी को करें ये काम-

मान्यता है कि इस दिन भगवान नारायण को चंदन, फूल, धूप और तुलसीपत्र तांबे के पत्र में रखकर अर्पित करने चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। 

एकादशी व्रत का पारण-

वैशाख शुक्ल द्वादशी तिथि के दिन मोहिनी एकादशी व्रत का पारण किया जाएगा। 2 मई को व्रत पारण का समय सुबह 05 बजकर 40 मिनट से सुबह 08 बजकर 19 मिनट तक रहेगा। पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय – 11:17 पी एम है।

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