कैसे पड़ा जगत के पालनहार भगवान विष्णु का नाम नारायण? पढ़ें इससे जुड़ी कथा

सप्ताह के सभी दिन किसी न किसी देवी-देवताओं को समर्पित है। ठीक इसी प्रकार गुरुवार के दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने का विधान है। साथ ही व्रत किया जाता है। पूजा के दौरान श्री हरि को केले का भोग जरूर लगाना चाहिए। इससे प्रभु प्रसन्न होते है, क्योंकि भगवान विष्णु को पीला रंग प्रिय है। भगवान विष्णु के अनेक नाम हैं जैसे- अनंत, जनार्दन, पुरुषोत्तम, हरि और अच्युत आदि। इन सभी नामों का अपना विशेष महत्व है।
ऐसे पड़ा नारायण नाम
पौराणिक कथा के अनुसार, जगत के पालनहार भगवान विष्णु के परम भक्त देवर्षि नारद श्री हरि को नारायण के नाम से पुकारा करते थे। जल का पर्यायवाची शब्द नीर है, जिसे संस्कृत भाषा में विशेष स्थितियों में नर भी कहा जाता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि नारायण का शाब्दिक अर्थ जल जिसका प्रथम अयन या अधिष्ठान यानी रहने का स्थान हो। श्री हरि वैकुण्ठ धाम में वास करते हैं। इसलिए उन्हें नारायण के नाम से पुकारा जाता है।
इस तरह हुई भगवान विष्णु की उत्पत्ति
शिव पुराण की मानें तो देवों के देव महादेव ने विष्णु जी को उत्पन्न किया। एक बार भोले बाबा ने मां पार्वती से कहा कि एक ऐसा पुरुष होना चाहिए जो पृथ्वी का पालन कर सके। ऐसा माना जाता है कि शक्ति के प्रताप से विष्णु जी का आर्विभाव हुआ। उनके नयन कमल की तरह थे। वह चतुर्भुजी होने के साथ-साथ कौस्तुकमणि से भी सुशोभित थे। सर्वत्र व्यापक होने की वजह से उनका नाम विष्णु पड़ा।





