एचआईवी ग्रसित गर्भवती भी दे सकती है स्वस्थ बच्चे को जन्म : डॉ. नीतू
गर्भावस्था में एआरटी सेंटर के परामर्श का पालन करना होता है जरूरी
विश्व एड्स दिवस (01 दिसंबर) पर विशेष
लखनऊ : केस-1 रमेश और नीता(बदला हुआ नाम) दोनों ही जन्म से एचआईवी (ह्युमन इम्यूनो डेफिशिएंसी वायरस) पॉजिटिव हैं | इलाज के दौरान उन दोनों की मुलाकात किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय(केजीएमयू) स्थित एंटीरेट्रो वायरल थेरेपी (एआरटी) सेन्टर पर हुई | कुछ मुलाकातों के बाद दोनों ने विवाह के बंधन में बंधने का निर्णय ले लिया| विवाह के बाद जब उन्होंने बच्चे के जन्म की योजना बनाई तो पूरी तरह से एआरटी सेंटरकी सलाह को माना| आज इनको एक स्वस्थ बच्चा है और सुखी जीवन व्यतीत कर रहे हैं|
केस– 2 स्थानीय निवासी 35 वर्षीया कोमल (बदला हुआ नाम) को शादी के सात साल हो चुके थे लेकिन वह गर्भ धारण नहीँ कर पा रही थीं| इसके लिए उन्होंने क्वीन मेरी अस्पताल में जांच करायी तो वहाँ के चिकित्सक ने पूरी जांच करने के बाद कोमल और उनके पति को वायरल मार्कर जांच कराने की सलाह दी| जांच की रिपोर्ट आने पर दोनों ही एचआईवी पाज़िटिव निकले। इसके बाद दोनों बहुत ही निराश हुए| क्वीन मेरी में उनकी काउंसलिंग की गई और उन्हें किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के एआरटी प्लस(एंटी रिट्रो वायरल थेरेपी) सेंटर रेफर किया गया| यहाँ दंपति का पंजीकरण कर काउंसलिंग शुरू की गई| उनसे पूछा गया कि वह बच्चा चाहते हैं या नहीं| उन्होंने कहा कि वह बच्चे के लिए इच्छुक तो हैं लेकिन डर है कि कहीं बच्चा एचआईवी पाज़िटिव न हो जाए| उन्हें एआरटी प्लस सेंटर के काउंसलर द्वारा बताया गया कि एआरटी सेंटर से इलाज कराया जाए, अगर वह उसके अनुसार ही करेंगे तो सब कुछ अच्छा होगा | दंपति ने हामी भर दी | दोनों का ही इलाज शुरू हुआ| महिला ने लड़के को जन्म दिया | बच्चे के जन्म के बाद भी वह एआरटी सेंटर से इलाज कराते रहे| डेढ़ साल बाद जब बच्चे की एचआईवी की जांच हुई तो रिपोर्ट निगेटिव आयी| एचआईवी एक ऐसा वायरस है जो कि मानव शरीर में पाया जाता है| यह मनुष्य की प्रतिरोधक क्षमता को धीरे-धीरे कम करता है | एड्स (एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिशिएंसी सिंड्रोम ) एचआईवी की एक अवस्था है |
केजीएमयू स्थित एआरटी सेंटर की सीनियर मेडिकल ऑफिसर डा. नीतू गुप्ता बताती हैं कि कोई जरूरी नहीं है कि माँ या पिता या दोनों एचआईवी से ग्रसित हैं तो बच्चा एचआईवी से ग्रसित ही होगा| गर्भावस्था के दौरान सावधानी बरतने से स्वस्थ बच्चे का जन्म हो सकता है| यह कोई वंशानुगत बीमारी नहीं है कि माता पिता को बीमारी है तो बच्चे में भी होगी| साल 2021-22 में देश में कुल 20,162 गर्भवती एचआईवी से ग्रसित थीं वहीं उत्तर प्रदेश में यह आंकड़ा 2,186 था जिनका एआरटी सेंटर पर इलाज हुआ| जनपद में इस समय एआरटी पर 30 गर्भवती और 204 बच्चों का इलाज चल रहा है| एचआईवी पाज़िटिव गर्भवती का सबसे पहले एआरटी सेंटर पर पंजीकरण होता है और जरूरी जांच के बाद काउंसलिंग होती है और दवाएं शुरू की जाती हैं|
मरीज की काउंसलिंग इंटीग्रेटेड काउंसलिंग एंड टेस्टिंग सेंटर (आईसीटीसी) से ही शुरू हो जाती है| गर्भवती के साथ उसके परिवार की भी काउंसलिंग की जाती है| प्रसव के लिए क्वीन मेरी के जच्चा बच्चा केंद्र पर भेजा जाता है और वहाँ पर उनका पंजीकरण किया जाता है| एचआईवी पाज़िटिव गर्भवती को सरकारी अस्पताल में ही प्रसव के लिए संदर्भित किया जाता है|
डा. नीतू ने बताया कि केजीएमयू के अलावा झलकारी बाई और रानी अवंतीबाई जिला महिला चिकित्सालय में एचआईवी ग्रसित गर्भवती का सुरक्षित प्रसव कराने की सुविधा उपलब्ध है| जन्म के तुरंत बाद से बच्चे को डेढ़ साल की आयु का होने तक दवा दी जाती है| बच्चे का 3 माह, 6 माह 12 माह पर ड्राइड ब्लड स्पॉट (डीबीएस) की जांच और 18 माह पर एचआईवी की पुष्टि के लिए एलाइजा टेस्ट किया जाता है| 18 माह पर जांच में यदि बच्चा एचआईवी निगेटिव आता है तो उसे एचआईवी संक्रमण से मुक्त माना जाता है| डा. नीतू बताती हैं कि एचआईवी ग्रसित गर्भवती की आठवें और नौवें महीने में वायरल लोड की जांच कराई जाती है और यदि वायरल लोड 1000 से नीचे होता है और महिला नियमित दवाओं का सेवन कर रही है तो वह बच्चे को केवल स्तनपान करा सकती है | ऐसे में बच्चे को या तो केवल स्तनपान कराना चाहिए या केवल गाय, भैंस या डिब्बे का दूध देना चाहिए| मिक्स फीडिंग कराने में संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है|
एआरटी सेंटर के काउन्सलर डा. भास्कर पांडे बताते हैं कि एचआईवी ग्रसित के साथ असुरक्षित यौन सम्बन्ध से, एचआईवी संक्रमित रक्त के चढ़ाए जाने से, संक्रमित सुईयों एवं सीरिंज के साझा प्रयोग से तथा संक्रमित माँ से उसके होने वाले बच्चे में हो सकता है| यदि कोई व्यक्ति एचआईवी जाँच में पॉजिटिव आता है तो मेडिकल कॉलेज/ जिला अस्पताल में एआरटी सेंटर में पंजीकरण कराया जाता है जहां एचआईवी की जांच और निःशुल्क इलाज किया जाता है| गर्भावस्था के दौरान एक बार एचआईवी का टेस्ट जरूर कराना चाहिए अगर किसी महिला को एचआईवी होने की आशंका है और वह गर्भवती है तो वह पहले अपना और अपने पति की एचआईवी की जांच कराए क्योंकि गर्भवती को एचआईवी होने पर बच्चे में एचआईवी होने की संभावना बढ़ जाती है| यदि गर्भवती में आठवें और नौवें महीने में वायरल लोड 1000 से अधिक होता है या ऐसी गर्भवती जो एचआईवी ग्रसित है लेकिन इस बात से अनभिज्ञ है और प्रसव हो जाता है तो बच्चे में एचआईवी होने की संभावना अधिक हो जाती है|एचआईवी पीड़ित गर्भवती को पहले और तीसरे महीने में क्लीनिकल परीक्षण कराना चाहिए| इसके साथ ही एचआईवी और अन्य इन्फेक्शन से जुड़े टेस्ट कराते रहने चाहिए|समय–समय पर वायरल लोड की जांच करानी चाहिए ताकि यह पता चल सके कि मरीज को दी जा रही दवायेँ काम कर रही हैं या नहीं| महिला एचआईवी से पीड़ित है तो उसे अन्य बीमारियों जैसे टीबी का संक्रमण होने की संभावना अधिक होती हैं | गर्भवती को खानपान पर भी खास ध्यान रखना चाहिए| डा. नीतू का कहना है कि एचआईवी के साथ व्यक्ति स्वस्थ जीवन जी सकता है बशर्ते वह नियमित दवा, संतुलित तथा पौष्टिक आहार का सेवन करे| जीवन के प्रति सकारात्मक विचार रखें और खुश रहें|