स्कूलों में बम की अफवाह पर हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार व पुलिस से मांगी रिपोर्ट

उच्च न्यायालय ने सोमवार को दिल्ली पुलिस और सरकार को निर्देश दिया कि वह बम की आशंका की स्थिति में स्कूलों से बच्चों को सुरक्षित निकालने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में रिपोर्ट पेश करें। न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने पुलिस और दिल्ली सरकार से स्कूलों में आयोजित मॉक ड्रिल की संख्या और बम की धमकी मिलने पर पुलिस और अन्य अधिकारियों को स्कूल तक पहुंचने में लगने वाले समय के बारे में विवरण देने को कहा है।

कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों को यह बताना चाहिए कि ऐसी स्थिति में माता-पिता पर कम से कम निर्भरता सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं? क्योंकि बच्चों को निकालने की प्राथमिक जिम्मेदारी स्कूलों और अधिकारियों की है। न्यायमूर्ति प्रसाद ने सरकार और पुलिस को यह भी बताने का आदेश दिया कि विभिन्न स्कूलों को प्राप्त फर्जी कॉल की जांच के लिए उन्होंने क्या कदम उठाए हैं। अदालत ने स्टेटस रिपोर्ट दस दिन में दाखिल करने का निर्देश देते हुए सुनवाई 16 मई तय की है।

अदालत पिछले साल वकील अर्पित भार्गव द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें पुलिस और शिक्षा विभाग द्वारा एक विस्तृत कार्य योजना तैयार करने के निर्देश देने की मांग की गई थी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बम की धमकी के संबंध में फर्जी कॉल के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाए। याचिका में यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश देने की भी मांग की गई है कि एक उचित प्रतिक्रिया योजना हो जिसे राष्ट्रीय राजधानी के स्कूलों में लागू किया जा सके।

आरसीए में ओबीसी व ईडब्ल्यूएस को भी मुफ्त कोचिंग का लाभ मिले
उच्च न्यायालय ने जामिया मिलिया इस्लामिया से कहा कि वह अपनी आवासीय कोचिंग अकादमी (आरसीए) में ओबीसी (गैर-क्रीमी लेयर) श्रेणी और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के छात्रों को नामांकन करने के मुद्दे पर दाखिल याचिका को बतौर प्रतिवेदन समझते हुए उचित निर्णय ले। याचिकाकर्ता ने कहा था कि आरसीए सिविल सेवा अभ्यर्थियों के लिए एक मुफ्त कोचिंग कार्यक्रम है। वह केवल महिलाओं तथा अल्पसंख्यक या अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदायों के सदस्यों का नामांकन करता है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन व न्यायाधीश मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने कहा कि विधि के छात्र सत्यम सिंह ने बिना किसी पूर्व प्रतिवेदन के सीधे अदालत का रुख किया है। इस दशा में यह अदालत जामिया मिल्लिया इस्लामिया को इसे एक प्रतिवेदन के तौर पर मानने और कानून के अनुसार चार सप्ताह में निर्णय लेने का निर्देश देता है।

जिहाद के प्रचार मात्र से कोई नहीं बन जाता आतंकी : उच्च न्यायालय
हाईकोर्ट ने कहा कि किसी के मोबाइल में आतंकवादी ओसामा बिन लादेन की तस्वीरें, जिहाद का प्रचार व आईएसआईएस के झंडे जैसी आपत्तिजनक सामग्री पाई जाती है और वह कट्टरपंथी या मुस्लिम प्रचारकों के व्याख्यानों को सुनता है, यह सब उसे आईएसआईएस जैसे प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन का सदस्य करार देने के लिए पर्याप्त नहीं है।न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत एवं न्यायमूर्ति मनोज जैन की पीठ ने उक्त टिप्पणी करते हुए यूएपीए के तहत मामले में एक आरोपी अम्मार अब्दुल रहमान को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया।

पीठ ने कहा कि आज के इलेक्ट्रानिक युग में इस तरह की आपत्तिजनक सामग्री वर्ल्ड वाइड वेब पर आसानी से उपलब्ध है। उसे एक्सेस करना और डाउनलोड करना यह मानने के लिए पर्याप्त नहीं होगा कि आरोपी ने खुद को आईएसआईएस से जोड़ लिया है। कोई भी जिज्ञासु ऐसी सामग्री को एक्सेस कर सकता है और डाउनलोड भी कर सकता है। हमें लगता है कि यह कृत्य अपने आप में कोई अपराध नहीं है। आरोपी को एनआईए ने अगस्त 2021 में गिरफ्तार किया था। उसपर आरोप लगाया गया है कि वह आईएसआईएस के प्रति काफी लगाव रखता है और उसने आईएसआईएस के ज्ञात व अज्ञात सदस्यों के साथ मिलकर जम्मू-कश्मीर और आईएसआईएस के नियंत्रण वाले अन्य क्षेत्रों में आपराधिक साजिश रची थी।

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