हुम सब कहते हैं बी पॉजिटिव, एक बार जरुर पढ़े इससे जुड़ी ये खास खबर…

अक्सर हम सकारात्मकता यानी पॉज़िटिविटी का मतलब पॉज़िटिव इमोशन समझ लेते हैं। जब भी किसी सफल और ख़ुशहाल व्यक्ति की कल्पना की जाती है हम यह मानकर चलते हैं कि उसके अंदर पॉज़िटिव इमोशन्स कूट-कूटकर भरे गए होंगे। यहां हम भूल जाते हैं कि इंसान पॉज़िटिव और नेगेटिव इमोशन्स यानी सकारात्मक और नकारात्मक भावनाओं को उचित मात्रा में मिलाकर बनाया हुआ जीव है।

जिस तरह हर सिक्के के दो पहलू होते हैं उसी तरह इंसानी भावनाओं के भी दो पक्ष हैं, सकारात्मक और नकारात्मक। सकारात्मक भावनाओं की तरह ही नकारात्मक भावनाएं भी जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा हैं। दरअसल वह नकारात्मक भावनाएं ही हैं, जो हमें सकारात्मक भावनाओं के महत्व को समझाने में मदद करती हैं।

क्या हैं पॉज़िटिव और नेगेटिव इमोशन्स?

वह भावनाएं, जो हमें आमतौर पर अच्छा महसूस कराती हैं, उन्हें हम पॉज़िटिव इमोशन कह सकते हैं। ये भावनाएं हमारे आसपास के सुखद माहौल के चलते उपजती हैं या विषम परिस्थितियों में ख़ुद से की जाने वाली हमारी अंदरूनी बातचीत के फलस्वरूप पैदा होती हैं। कुछ सामान्य सकारात्मक भावनाएं हैं: प्रेम, आनंद, संतुष्टि, रुचि, ख़ुशी, शांति, गर्व, संवेदना, उम्मीद आदि।

दूसरी ओर, नेगेटिव इमोशन्स वो हैं जो हमें आमतौर पर अच्छा नहीं महसूस कराते हैं। नकारात्मक भावनाओं को अप्रिय या दुख की भावना के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। साथ ही यदि कोई भावना आपको हतोत्साहित और निराश करती है, तो वह एक नकारात्मक भावना ही है। सबसे अधिक महसूस की जाने वाली कुछ नकारात्मक भावनाएं हैं: डर, ग़ुस्सा, नफ़रत, उदासी, क्रोध, पछतावा, शर्म, अकेलापन, चिढ़ आदि।

क्यों हमें नेगेटिव इमोशन्स (नकारात्मक भावनाओं) की भी उतनी ही ज़रूरत होती है, जितनी पॉज़िटिव इमोशन्स की?

अगर अपनी भावनाओं का रिमोट कंट्रोल हमारे हाथों में दे दिया जाए तो हममें से लगभग ज़्यादातर लोग सकारात्मक भावनाओं को महसूस करना चाहेंगे। क्यों? क्योंकि सकारात्मक भावनाएं सुखद होती हैं। शायद ही कोई हो, जो नकारात्मक भावनाओं को चुनना चाहेगा। पर हमारे संपूर्ण विकास के लिए दोनों भावनाओं का होना ज़रूरी है, प्रकृति इस बात को हमसे बेहतर ढंग से जानती है इसलिए उसने भावनाओं का रिमोट कंट्रोल हमें कभी दिया ही नहीं।

बेशक नेगेटिव इमोशन्स अनुभव करने के लिहाज़ से सुखद नहीं होते हैं, पर नकारात्मक भावनाएं वास्तव में स्वस्थ जीवन के लिए आवश्यक हैं। ऐसा होने के दो बड़े कारण हैं। पहला कारण: वह नकारात्मक भावनाएं ही हैं, जो हमें बताती हैं कि सकारात्मक भावनाएं क्या होती हैं। उनका क्या महत्व है। सोचिए, अगर नकारात्मक भावनाएं न हों तो सकारात्मक भावनाएं अच्छी लगेंगी?

दूसरा और महत्वपूर्ण कारण यह है कि नकारात्मक भावनाएं हमें अपनी जीवनशैली में उन तरीक़ों को शामिल करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं, जो हमारे जीवित रहने की संभावनाओं को बढ़ाती हैं। उदाहरण के लिए क्रोध समस्याओं से लड़ने के लिए हमें प्रेरित करता है। दुख हमें उन लोगों से जोड़े रखने में सहायक होता है, जो हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं या जिन्हें हम प्यार करते हैं। डर, हमें ख़तरों से बचाता है और सुरक्षित रहने के नए-नए तरीक़ों का आविष्कार करने के लिए प्रेरित करता है।

ज़रा सोचकर देखिए, बिना किसी डर के, क्या आप आज यहां होते, जहां हैं? अगर डर नहीं होता तो आप ग़ैरज़रूरी ख़तरों से खेल रहे होते, जिससे आपको नुक़सान ही होता। कहने का मतलब है कि नकारात्मक भावनाएं हमें भले ही अप्रिय हों, पर जीवन में उनके महत्व को हम नकार नहीं सकते।

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