मोदी ने खेला राजनीतिक करियर में अब तक का सबसे बड़ा जुआ, जानिए क्या होंगे कामयाब?

नोटबंदी के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने जीएसटी के तौर पर सबसे बड़ा राजनीतिक जुआ खेल दिया है। देश की इकॉनमी की तेज रफ्तार से लेकर अगले लोकसभा चुनाव में बीजेपी की उम्मीदें, सब कुछ इसकी कामयाबी पर निर्भर है। अब जब चुनाव होने में 20 महीने से कम का वक्त बचा है, मोदी ने अपने राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा जुआ खेला है। जीएसटी अगर कामयाब हुआ तो एक सर्वमान्य नेता के तौर पर उनकी छवि और ज्यादा मजबूत होगी। अगर जीएसटी के नतीजे सरकार के मनमुताबिक नहीं हुए तो इसकी बड़ी कीमत भी पार्टी और सरकार को चुकानी पड़ सकती है। पीएम ने नोटबंदी के फैसले की तरह इस बार भी जीएसटी की जिम्मेदारी अपने सिर ली है। कामयाबी या असफलता, दोनों का ही सेहरा उनके सिर ही बंधेगा।
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सरकार के सबसे सीनियर नौकरशाहों के साथ हाल ही में एक बैठक के दौरान पीएम मोदी ने निर्देश दिए थे कि गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स को कामयाब बनाने के लिए वे हर कोशिश करें। मोदी ने अफसरों से कहा कि वे अपने संबंधित विभागों पर जीएसटी से पड़ने वाले असर का बारीकी से मुआयना करें। मोदी अफसरों से यह जिक्र करना नहीं भूले कि उन्होंने नोटबंदी के मुद्दे को को किस तरह ‘अपने कंधों पर’ ढोया है।यह सच है कि नोटबंदी के मुद्दे पर बीजेपी सरकार को तमाम परेशानियों के बावजूद आम लोगों की बहुत ज्यादा आलोचना का सामना नहीं करना पड़ा। मोदी का इसका क्रेडिट लेना शायद जरा सा अहंकार जाहिर करता हो, लेकिन बीजेपी और सीनियर मंत्री करीब-करीब एकराय हैं कि नोटबंदी को मिली कामयाबी मोदी की विश्वसनीयता का ही नतीजा है। मोदी ने पीएम बनने के बाद एक स्थिर शुरुआत की। इसके बाद, वह अपनी महत्वाकांक्षी योजनाओं को पूरा करने में जुट गए। इस दौरान उन्होंने कुछ बोल्ड कदम भी उठाए, जिनमें आतंकी लॉन्च पैड्स के खिलाफ सितंबर 2016 में सेना की सर्जिकल स्ट्राइक भी शामिल है। इससे परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र पाकिस्तान से निपटने के तौर-तरीकों का पुराना पारंपरिक दायरा टूटा।
इसके बाद नोटबंदी एक बड़ा साहसिक फैसला रहा। बड़े नोटों को बंद करने के फैसले से इकॉनमी के ठहरने, लोगों में असंतोष पनपने और राजनीति-ब्लैकमनी के संयुक्त गिरोह के निशाने पर आने जैसे खतरे थे। बीजेपी नेताओं के मुताबिक, यह मोदी की छवि का ही असर था, जिसकी वजह से सरकार की उस दलील को लोगों के बीच रजामंदी मिली कि नोटबंदी का निशाना आम लोग नहीं, बल्कि टैक्स चुराने वाले और जमाखोर हैं।
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अधिकारियों का कहना है कि मोदी जीएसटी को कामयाब बनाने के लिए कमर कस चुके हैं। वह मुद्दे की बड़ी तस्वीर के अलावा इसकी बारीकियों को समझने के लिए लगातार ब्रीफिंग ले रहे हैं। नोटबंदी के वक्त भी उन्होंने ऐसे ही किया था। अपनी इस मेहनत का उन्होंने एक जनसभा में यह कहते हुए जिक्र किया था कि, ‘खोपड़ी खपा रहा हूं।’ इकॉनमी को रफ्तार देने के लिए मोदी अब देश के सबसे बड़े टैक्स रिफॉर्म के सहारे हैं। पीएम को पता है कि जीएसटी के सहारे उन्होंने देश से एक बार फिर बड़ा वादा किया है, जिसे निभाना आसान नहीं होगा। उम्मीद तो यही है कि देश की इकॉनमी की रफ्तार में आ रही कमी को जीएसटी एक ज्यादा फिर थामेगा और 2019 के आम चुनाव में मोदी सरकार की राह आसान होगी।