GI-टैग की मुहर वाले 7 फूड्स, जो हैं ‘लिट्टी-चोखा’ से भी ज्यादा खास

बिहार का नाम सुनते ही सबसे पहले ‘लिट्टी-चोखा’ याद आता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि बिहार की थाली में कुछ ऐसे रत्न छिपे हैं जिन्हें ज्योग्राफिकल इंडिकेशन (GI) टैग हासिल है? जी हां, यह टैग उन चीजों को दिया जाता है जो एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र से आते हैं और अपनी खास पहचान और गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं। आइए, जानते हैं बिहार के ऐसे 7 GI-टैग वाले फूड्स के बारे में।

बिहार का नाम सुनते ही सबसे पहले जहन में लिट्टी-चोखा का स्वाद आता है। इसमें कोई शक नहीं कि यह व्यंजन बिहार की पहचान है, लेकिन बिहार की पाक कला इससे कहीं ज्यादा समृद्ध है।

जी हां, राज्य के पास ऐसे 7 अनोखे फूड्स (Bihar GI-Tagged Foods) हैं, जिन्हें उनकी विशिष्टता और भौगोलिक पहचान के कारण जीआई टैग मिला है। ये चीजें न सिर्फ स्वाद में लाजवाब हैं, बल्कि बिहार की मिट्टी और संस्कृति की सुगंध भी समेटे हुए हैं। आइए जानते हैं।

भागलपुरी जर्दालू आम

बिहार के भागलपुर क्षेत्र का जर्दालू आम अपनी खास खुशबू और पतले छिलके के लिए दुनियाभर में मशहूर है। इसका नाम ‘जर्दालू’ इसलिए पड़ा, क्योंकि यह जल्दी ‘जर्द’ यानी पीला पड़ जाता है। इस आम की मिठास बहुत ही बैलेंस होती है, जो इसे बाजार के बाकी आमों से अलग बनाती है। हर साल, बिहार सरकार इस आम को VIPs को तोहफे के तौर पर भेजती है, जिससे इसकी विशेष पहचान और भी मजबूत होती है। यह आम सचमुच बिहार के शाही फलों में से एक है।

कतरनी चावल

कतरनी चावल बिहार के भागलपुर और बांका जिलों में उगाया जाता है। इस चावल की सबसे बड़ी खासियत इसकी अनोखी और तेज खुशबू है। जब यह पकता है, तो इसकी सुगंध पूरे घर में फैल जाती है। इसका दाना छोटा और हल्का घुमावदार होता है, इसलिए इसे ‘कतरनी’ कहा जाता है। पुराने जमाने में, इस चावल को सिर्फ खास मौकों और त्योहारों पर ही पकाया जाता था। इसकी सुगंध और स्वाद इसे सादा चावल से कहीं ज्यादा विशेष बना देता है।

सिलाव का खाजा

अगर आपने कभी सिलाव घूमने गए हैं, तो आपने सिलाव का खाजा जरूर खाया होगा। यह एक स्वादिष्ट मिठाई है जो पतली-पतली परतों को एक साथ जमाकर बनाई जाती है। ये परतें इतनी मुलायम होती हैं कि मुंह में जाते ही घुल जाती हैं। इसे बनाने की विधि बहुत पुरानी और जटिल है, जिसमें आटे को कई बार मोड़कर और तलकर चाशनी में डुबोया जाता है। खाजा खाने में कुरकुरा और मीठा होता है, जिसे देखकर पता चलता है कि यह मिठाई कारीगरों की सदियों पुरानी कला का प्रतीक है।

मगही पान

बिहार के मगध क्षेत्र, खासकर नवादा, गया और औरंगाबाद में उगाया जाने वाला मगही पान सिर्फ पान नहीं, बल्कि एक एहसास है। इसकी पत्ती बहुत कोमल, हल्की और स्वाद में तीखी नहीं होती। इसे चबाने पर एक मीठी और हल्की सुगंध आती है, जो इसे भारत में मिलने वाले दूसरे पान के पत्तों से अलग बनाती है। पान खाना बिहार की संस्कृति का हिस्सा रहा है और मगही पान को GI-टैग मिलना इसकी उच्च गुणवत्ता का प्रमाण है।

मिथिला मखाना

मिथिला मखाना, जिसे ‘फॉक्स नट’ भी कहते हैं, बिहार के मिथिला क्षेत्र की सबसे बड़ी पहचान है। बिहार में इसका उत्पादन भारत में सबसे ज्यादा होता है। मखाना पानी में उगने वाला एक सूखा मेवा है, जो पोषक तत्वों से भरपूर होता है। यह हल्का, कुरकुरा होता है और इसे व्रत-उपवास के दौरान खूब खाया जाता है। प्रोटीन, कैल्शियम और फाइबर से भरपूर यह ‘ड्राई फ्रूट’ सेहत के लिए किसी खजाने से कम नहीं है।

शाही लीची

बिहार की शाही लीची को फलों की रानी कहा जाए तो गलत नहीं होगा। मुजफ्फरपुर और उसके आस-पास के क्षेत्रों में उगाई जाने वाली यह लीची अपने रसीले गूदे, छोटे बीज और बेजोड़ मिठास के लिए जानी जाती है। जैसे ही गर्मी आती है, लोग बेसब्री से इस लीची का इंतजार करते हैं। इसका स्वाद इतना शानदार होता है कि देश-विदेश में इसकी भारी डिमांड है। शाही लीची बिहार के कृषि गौरव को दर्शाती है।

मर्चा चावल

बिहार के पश्चिम चंपारण जिले में उगने वाले मर्चा चावल को ‘मिरचा राइस’ भी कहते हैं। इस चावल का दाना बिल्कुल काली मिर्च (गोल) जैसा दिखता है, इसलिए इसका नाम ऐसा पड़ा है। इसकी खुशबू बहुत तेज होती है और इसका स्वाद भी बेहतरीन होता है। इससे बनने वाला ‘चूड़ा’ (पोहा) बहुत ही कुरकुरा और स्वादिष्ट होता है। मर्चा चावल एक दुर्लभ किस्म है जो अब GI-टैग के जरिए अपनी पहचान बनाए रखेगी।

ये सात GI-टैग वाले फूड्स साबित करते हैं कि बिहार की मिट्टी में कितनी विविधता और विशिष्टता है। अगली बार जब आप बिहार की थाली देखें, तो ‘लिट्टी-चोखा’ के साथ-साथ इन नायाब रत्नों का स्वाद लेना न भूलें।

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