प्रोजेक्ट फाइनेंस के नये नियम पर वित्त मंत्रालय से बैंकों की गुहार
परियोजनाओं को कर्ज देने के आरबीआई के नये नियम को लेकर बैंकों ने वित्त मंत्रालय से गुहार लगाई है। एक दिन पहले ही वित्त मंत्रालय में बैंकों व वित्तीय एजेंसियों के साथ एक उच्चस्तरीय बैठक की गई है जिसमें बैंकिंग सेक्टर से जुड़े तमाम मुद्दों पर विमर्श किया गया। इस बैठक में बैंकों की तरफ से प्रोजेक्ट फाइनेंस के नये नियम का मुद्दा उठाया गया।
बैंकों का कहना है कि आरबीआई का नया नियम उनके लिए कर्ज की लागत बढ़ा देगा। इसका असर उनके मुनाफे के स्तर पर भी होने वाला है। बैंकों से पहले गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की तरफ से भी आरबीआई के नये नियम को लेकर अपनी परेशानी से वित्त मंत्रालय को अवगत कराया है।
आरबीआई के नये नियम से दुविधा में बैंक
आरबीआई के नये नियम के मुताबिक बैंकों व वित्तीय संस्थानों की तरफ से परियोजनाओं को जितना कर्ज दिया जाएगा उसकी पांच फीसदी राशि का समायोजन अपने मुनाफे से करना होगा। बैंकिंग उद्योग के सूत्रों ने कहा है कि आरबीआई की तरफ से दो महीने पहले यह प्रस्ताव किया गया था लेकिन अभी तक इसके बारे में स्पष्टता नहीं है। इस वजह से काफी दुविधा है। कुछ बैंकों व वित्तीय संस्थानों ने बड़ी परियोजनाओं को कर्ज देने के फैसले को फिलहाल टाल रखा है। इनका मानना है कि इस बारे में नीतिगत स्पष्टता आने के बाद ही कर्ज देने का फैसला होना चाहिए।
नए नियम की घोषणा के बाद टूट गए थे बैंकों के शेयर
आरबीआई का नया प्रस्तावित नियम कहता है कि परियोजनाओं को लागत देने के समय निर्माण के दौरान कुल कर्ज का 5 फीसदी का समायोजन बैंक के खाते में होनी चाहिए। बाद में जब परियोजना की शुरुआत हो जाएगी तो समायोजन के अनुपात को घटा कर एक फीसदी किया जाएगा। इस नियम के आने के साथ ही शेयर बाजार में बैंकों व वित्तीय संस्थानों के शेयरों में भारी गिरावट दर्ज की गई थी। खास तौर पर पीएफसी, आरईसी और इरेडा जैसी सरकारी क्षेत्र के एनबीएफसी में काफी गिरावट देखी गई थी।
सरकारी बैंक भी नहीं हैं संतुष्ट
सरकारी बैंक भी इस प्रस्तावित नियम को लेकर बहुत संतुष्ट नहीं है और स्पष्टता की मांग कर रहे हैं। पूर्व में वित्तीय सेवा विभाग के सचिव ने कहा था कि वित्त मंत्रालय आरबीआई के प्रस्तावित नियम का अध्ययन कर रहा है। आरबीआई की तरफ से इस नये नियम को लाने का एक मकसद यह भी था कि जिस रफ्तार से अभी देश में कर्ज की रफ्तार बढ़ रही है उससे आगे चल कर फिर से फंसे कर्ज (एनपीए) की समस्या ना पैदा हो।
एनपीए की समस्या से निपटने में सहायक होगा आरबीआई का नया नियम
अभी काफी मशक्कत के बाद भारत के बैंकिंग सेक्टर एनपीए की समस्या से बाहर निकल पाया है। पांच वर्ष पहले सकल एनपीए का स्तर (कुल अग्रिम के मुकाबले) 11 फीसदी थी जो अब घट कर तीन फीसदी से भी नीचे आ गया है। दूसरी तरफ कर्ज की रफ्तार लगातार 15-16 फीसदी बनी हुई है। ज्यादा कर्ज वितरण की वजह से एनपीए के फिर से बढ़ने का खतरा रहता है। ऐसे में आरबीआई का नया नियम बैंकों को भावी एनपीए समस्या से मुकाबले के लिए तैयार रखेगा।