कश्मीर से लेकर पूर्वोत्तर तक… शुद्ध हवा-पानी और कार्बनिक खाद्य, फिर भी पहाड़ों में टीबी का संक्रमण

कश्मीर से लेकर पूर्वोत्तर तक शुद्ध हवा और पानी के बावजूद टीबी का प्रसार जारी है, लेकिन एआई तकनीक और पोषण सहायता से इस पर काबू पाया जा रहा है।
शुद्ध हवा, पानी और कार्बनिक खाद्य से भरपूर होने के बाद भी हिमालय क्षेत्र में टीबी संक्रमण का प्रसार है। कश्मीर से लेकर पूर्वोत्तर तक, कई सौ किलोमीटर में फैले इस क्षेत्र के दुर्गम गांवों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के जरिए गैर लक्षण वाले लोगों की जांच हो रही है, जिससे टीबी के नए-नए मरीज सामने आने लगे हैं।
इतना ही नहीं, घाटी से लेकर चीन और बांग्लादेश सीमांत गांवों तक इन स्वदेशी मशीनों के पहुंचने से लोगों को एक्सरे की सुविधा मिल रही है जिसकी वजह से असक्रिय टीबी बैक्टीरिया भी पकड़ में आ रहा है। इस सफलता के चलते सोमवार को विश्व टीबी दिवस पर दिल्ली में घाटी के गांव सम्मानित होंगे जिन्होंने एकजुट होकर टीबी के खिलाफ जंग जीती है।
जानकारी के अनुसार, 100 दिन तक चले प्रधानमंत्री टीबी मुक्त भारत अभियान में जम्मू कश्मीर ने सात दिसंबर 2024 से 23 मार्च 2025 के बीच 3700 से ज्यादा टीबी मरीजों का पता लगाया है। इनमें 90 फीसदी से ज्यादा रोगियों की जांच सरकारी अस्पतालों में हुई। निक्षय रिपोर्ट बताती है कि इनमें सर्वाधिक 1568 मरीज जम्मू जिले में सामने आए। वहीं, अनंतनाग में 104, बड़गाम में 11, बारामूला में 361, डोडा में 269, कठुआ में 290, कुपवाड़ा में 100, पुंछ में 130, पुलवामा में 22, राजोरी में 202, श्रीनगर में 412 और उधमपुर में 266 रोगियों की पहचान हुई।
डॉक्टरों के मुताबिक, माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस बैक्टीरिया के कारण तपेदिक या टीबी होता है जो आमतौर पर फेफड़ों को प्रभावित करता है। हालांकि यह शरीर के अन्य अंगों में भी हो सकती है। कई दशकों से देश के सभी हिस्सों में इसका प्रसार देखा जा रहा है। नई दिल्ली स्थित केंद्रीय क्षय रोग प्रभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि देश के बाकी हिस्सों की तुलना में पर्यावरण के लिहाज से बेहतर इन सभी राज्यों में टीबी का पता लगा पाना काफी मुश्किल है क्योंकि यहां गांवों तक पहुंच पाना गंभीर चुनौतियों से घिरा है।
इसलिए राज्यों की मदद से केंद्र ने यहां आईसीएमआर के वैज्ञानिकों की एआई एक्सरे मशीनों को स्थापित किया है। इसी तरह गांवों से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र या जांच केंद्र तक नमूनों को सुरक्षित ले जाने के लिए भी स्वदेशी उपकरणों को भी लगाया है। इनमें बलगम के नमूनों को करीब आठ घंटों तक सुरक्षित रखा जा सकता है। यही वजह है कि भारत में 2015 से 2024 के बीच टीबी जांच प्रति एक लाख की आबादी पर बढ़कर 2267 तक पहुंची है जो पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा है।
दरअसल काराकोरम पर्वतमाला के जरिए जम्मू कश्मीर, लद्दाख और असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड जैसे पूर्वोत्तर राज्यों को आपस में जोड़ती हैं। यह एशिया की विशाल पर्वतमालाओं में से एक है और हिमालय पर्वतमाला का एक हिस्सा है। साल 2024 में अरुणाचल प्रदेश में 2852, असम में 50560, जम्मू कश्मीर में 12216, लद्दाख में 293, मणिपुर में 2507, मेघालय में 4578, मिजोरम में 2312 और नगालैंड में 4072 सिक्किम में 1314 और त्रिपुरा में 3324 टीबी मरीजों का पता चला। यह आंकड़े बताते हैं कि पहाड़ी राज्यों में शुद्ध हवा और पानी के बावजूद टीबी का प्रसार दिखाई दे रहा है।
पोषण की कमी भी सबसे बड़ा कारणमेघालय के स्वास्थ्य मिशन निदेशक राम कुमार एस ने बताया कि दुर्गम स्थान, वहां की जनजातीय आबादी और पोषण की कमी के चलते यह प्रसार पहाड़ों पर भी है। हाल ही में लांसेट में एक अध्ययन प्रकाशित हुआ जिसके मुताबिक दवाओं के साथ बेहतर पोषण आहार मरीज को जल्दी रिकवर करता है।
आईसीएमआर ने भी एक अध्ययन में कहा है कि करीब 10 किलोग्राम राशन से मौत का जोखिम 60 फीसदी तक कम किया जा सकता है। बीते दिसंबर 2024 से मेघालय खुद निक्षय मित्र की भूमिका निभा रहा है, जो केंद्र से अलग राज्य स्तर पर दो हजार रुपये प्रति माह राशन दे रहे हैं। इसके अब तक काफी सफल परिणाम मिले हैं। इसलिए पहाड़ी क्षेत्रों में पोषण आहार के जरिए तस्वीर बदली जा सकती है।