‘एक देश एक चुनाव’ पर पूर्व राष्ट्रपति कोविन्द ने मद्रास हाई कोर्ट के पूर्व जजों से किया विचार-विमर्श

रामनाथ कोविन्द ने मद्रास हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस मुनीश्वर नाथ भंडारी दिल्ली हाई कोर्ट की पूर्व मुख्य न्यायाधीश जी. रोहिणी और पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा से मुलाकात की थी। कोविन्द समिति को जनता से भी लगभग 21 हजार सुझाव प्राप्त हुए हैं जिनमें से 81 प्रतिशत में एक साथ चुनाव का समर्थन किया गया है।

पूर्व राष्ट्रपति और ‘एक देश एक चुनाव’ पर उच्चस्तरीय समिति के अध्यक्ष राम नाथ कोविन्द ने बुधवार को एक साथ चुनाव कराने पर सेवानिवृत्त जजों और उद्योग संगठन के प्रमुखों से नए दौर का विचार-विमर्श किया। चौथे दौर के विचार-विमर्श में कोविन्द ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दिलीप भोसले और दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस राजेंद्र मेनन से मुलाकात की जिन्होंने इस विषय पर अपनी राय दी।

एक बयान के मुताबिक, ‘वित्तीय एवं आर्थिक विशेषज्ञों के साथ विचार-विमर्श की शुरुआत करते हुए कोविन्द ने एसोचैम के अध्यक्ष अजय सिंह (स्पाइसजेट एयरलाइंस के चेयरमैन एंड मैनेजिंग डायरेक्टर) से भी वार्ता की। अजय सिंह के साथ एसोचैम के सेकेट्री जनरल और असिस्टेंट सेकेट्री जनरल भी थे।’ वार्ता के दौरान अजय सिंह ने एक साथ चुनाव कराए जाने के आर्थिक लाभों पर विस्तार से अपने विचार रखे।

इससे पहले कोविन्द ने मद्रास हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस मुनीश्वर नाथ भंडारी, दिल्ली हाई कोर्ट की पूर्व मुख्य न्यायाधीश जी. रोहिणी और पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा से मुलाकात की थी। कोविन्द समिति को जनता से भी लगभग 21 हजार सुझाव प्राप्त हुए हैं जिनमें से 81 प्रतिशत में एक साथ चुनाव का समर्थन किया गया है। 46 राजनीतिक दलों से भी सुझाव आमंत्रित किए गए थे और अभी तक सिर्फ 17 राजनीतिक दलों से सुझाव प्राप्त हुए हैं।

राजनीतिक सहमति बनाना आसान नहीं

पूर्व चुनाव आयुक्त नवीन चावला ने कहा है कि ‘एक देश एक चुनाव’ होने से चुनाव पर खर्च काफी कम हो सकता है, लेकिन इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए व्यापक राजनीतिक विचार-विमर्श की जरूरत होगी, जो आसान नहीं है। मनोरमा ईयरबुक, 2024 में एक लेख में चावला ने कहा कि इस कदम का उद्देश्य चुनाव की लागत घटाना और बार-बार चुनाव होने से लागू होने वाली आदर्श आचार संहिता की आवृत्ति को कम करना है क्योंकि कुछ राजनीतिक दलों का आरोप है कि इसे विकास कार्यों में बाधा पैदा होती है।

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