अच्छी परवरिश के लिए “थप्पड़” जरूरी नहीं, नई पीढ़ी की सोच में आ रहा ये बदलाव

अब एक थप्पड़ खाओगो… यह शब्द अपने माता-पिता से जीवन में कई बार आपने सुनी होगी और जो अब माता-पिता की भूमिका में हैं, वे भी अपने बच्चों को कई बार यह कहकर अपना गुस्सा जाहिर कर चुके होंगे। कई बार उन्हें अनुशासित करने के लिए थप्पड़ मारा भी होगा। दरअसल, दुनियाभर में यह सर्वमान्य ‘थ्योरी’ है कि बच्चों की ठीक से परवरिश करने के लिए उन्हें थप्पड़ मारना जरूरी है। हालांकि दुनियाभर के 65 देशों में बच्चों पर किसी भी तरह का बल प्रयोग करना प्रतिबंधित है। बावजूद इसके चार में से एक माता-पिता इसे ‘जादुई धमकी ‘ मानते हैं, जिससे वह बच्चों के व्यवहार में सुधार ला सकते हैं।
हालांकि अब इस सोच में बदलाव आ रहा है। क्वींसलैंड प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के शोध में यह पाया कि प्रतिभागियों में शामिल आधे से ज्यादा माता-पिता (सभी आयु वर्ग के) ने इस बात को स्वीकारा कि उन्होंने बच्चों को अनुशासित करने के लिए थप्पड़ मारा है। हालांकि सोच में बदलाव आ रहा है।
यह है शारीरिक दंड
शारीरिक सजा बच्चों के खिलाफ हिंसा का सबसे आम प्रकार है। इसमें आमतौर पर मारना शामिल है। लेकिन इसमें चुटकी काटना, थप्पड़ मारना या लकड़ी के चम्मच, बेंत या बेल्ट जैसे उपकरण का उपयोग करना भी शामिल है। निष्कर्ष थप्पड़ मारना वास्तव में काम नहीं करता है और समय के साथ व्यवहार को बदतर बना देता है और यह बच्चों की आंतरिक समस्याओं, बच्चों की बढ़ती आक्रामकता, खराब माता-पिता-बच्चे के रिश्तों, खराब धातु स्वास्थ्य और बहुत कुछ से जुड़ा है। इसके विपरीत, बहुत सारी अहिंसक पालन-पोषण रणनीतियां हैं, जो काम करती हैं।