हैलट के बर्न वार्ड में खुलेगा प्रदेश का पहला स्किन बैंक

कानपुर में हैलट के निर्माणाधीन बर्न वार्ड में स्किन बैंक खोलने की भी कवायद शुरू हो गई है। देहदानियों के शरीर की त्वचा यहां सुरक्षित की जा सकेगी। यह प्रदेश का पहला स्किन बैंक होगा। चूंकि पार्थिव शरीर से निकली त्वचा बर्न रोगियों के जख्मों के लिए सबसे अच्छे ड्रेसिंग मैटीरियल का काम करती है। इससे जख्म जल्दी भरते हैं। ऐसे में सौ फीसदी तक जले रोगियों का भी जीवन बचाया जा सकता है। युग दधीचि देहदान संस्थान ने त्वचा दान के लिए भी मुहिम शुरू कर दी है।

जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के सर्जरी विभागाध्यक्ष और सीनियर प्लास्टिक सर्जन डॉ. प्रेमशंकर ने बताया कि हैलट में उच्चीकृत बर्न वार्ड का काम इसी साल पूरा हो जाएगा। इसके साथ ही स्किन बैंक खोलने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी। सौ फीसदी जले रोगियों के लिए दान में मिलने वाली त्वचा जीवनदायिनी होती है।  दक्षिण भारत में स्किन बैंक खुले हुए हैं। इससे रोगियों की जान बचती है। इसके अलावा जयपुर में भी स्किन बैंक संचालित किया जा रहा है।

देश का पहला स्किन बैंक 1972 में वाडिया चिल्ड्रेंस हॉस्पिटल मुंबई में खुला था। वहीं, युग दधीचि देहदान संस्थान के प्रमुख मनोज सेंगर ने स्किन बैंक के संबंध में मेडिकल कॉलेज प्रबंधन से बात की है। संस्थान मेडिकल कॉलेज के एनॉटमी विभाग को पार्थिव शरीर और नेत्र रोग विभाग को कार्निया दान कराता है। उन्होंने बताया कि देहदानियों के नेत्र के साथ उनकी त्वचा भी दान कराई जाएगी। पार्थिव देह से त्वचा उतारने में 15 मिनट से आधा घंटा लगता है।

त्वचा का रिजेक्शन नहीं होता, ब्लड ग्रुप की भी दिक्कत नहीं
डॉ. प्रेमशंकर ने बताया कि पार्थिव देह की त्वचा की पतली पर्त इपी डर्मिस, डर्मिस निकाली जाती है। यह ड्रेसिंग मैटीरियल की तरह काम करती है। इससे किसी तरह के रिजेक्शन की दिक्कत नहीं होती है। किसी भी ब्लड ग्रुप के पार्थिव शरीर की त्वचा किसी को लगाई जा सकती है। बर्न रोगियों के जख्मों पर त्वचा न होने से शरीर का फ्लुइड निकलता रहता है। इसमें प्रोटीन भी निकल जाता है। त्वचा की पर्त लगाने से द्रव्य बाहर नहीं निकल पाता। जख्म भरने लगता है। दो सप्ताह में रोगी की अपनी त्वचा बनने लगती है और ऊपर से ड्रेसिंग मैटीरियल के रूप में लगाई गई दान की त्वचा पपड़ी बनकर निकल जाती है। ऊपर से लगाई गई त्वचा दो सप्ताह तक जिंदा रहती है। देहदानी के निधन के आठ घंटे के अंदर त्वचा की पर्त निकाल ली जाती है।

क्या होता है स्किन बैंक
स्किन बैंक भी ब्लड बैंक की तरह होता है। यहां त्वचा को एक शीशी में भरकर मानइस तापमान में रखा जाता है। बैंक में तीन से पांच साल तक त्वचा सुरक्षित रखी जा सकती है। रखने से पहले त्वचा में संक्रमण आदि की भी जांच की जाती है।

स्किन बैंक का काम जल्द शुरू किया जाएगा। त्वचा की पर्त लगाने से बर्न रोगियों के जख्मों में संक्रमण नहीं होता है। इसके अलावा फ्लूइड नहीं निकलता। दो सप्ताह में रोगियों को ड्रेसिंग पर लाखों का खर्च आता है। त्वचा की पर्त लगाने से खर्च में भी बचत होगी।  -डॉ. संजय काला, प्राचार्य, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज

17 अगस्त को जयपुर में हुए अंगदान, देहदान सेमिनार में प्रदेश से मैंने प्रतिनिधित्व किया था। जयपुर में स्किन बैंक चल रहा है। उसी तरह के स्किन बैंक प्रदेश के चिकित्सा संस्थानों में खोले जाने की जरूरत है। इस संबंध में जीएसवीएम के प्राचार्य डॉ. संजय काला से भी बात की। मुख्यमंत्री को भी पत्र भेजा है। देहदान और नेत्रदान के साथ त्वचा दान भी कराया जाएगा।  -मनोज सेंगर, प्रमुख युग दधीचि देहदान संस्थान

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