पिता की हुई हत्या हुई और मां को कैंसर था, फिर भी बेटी बनी IAS अफसर

आईएएस अधिकारी किंजल सिंह की पहचान एक तेज तर्रार अफसर के रुप में है लेकिन उनके परिवार की कहानी बहुत ही दर्दनाक है। किंजल सिंह के काम के तरीके से फैजाबाद जिले में अपराधियों के पसीने छूटते हैं, लेकिन आज जिस मुकाम तक किंजल सिंह पहुंची हैं उनके लिए ये राह बिल्कुल भी आसान नहीं रही। आगे की स्लाइड्स में जानिए किंजल सिंह की कहानी।
पिता की हुई हत्या हुई और मां को कैंसर था, फिर भी बेटी बनी IAS अफसर1982 में किंजल सिंह के पिता डीएसपी केपी सिंह की हत्या कर दी गई थी। उस वक्त वह महज 6 महीने की थी। गुड़ियों से खेलने की उम्र में वह अपनी मां के साथ बलिया से दिल्ली तक का सफर पूरा करके सुप्रीम कोर्ट आती और पूरा दिन अदालत में बैठने के बाद रात में फिर उसी सफर पर निकल जाती।

उनकी मां विभा सिंह इंसाफ के लिए अकेली लड़ती रहीं। किंजल के परिवार का यह संघर्ष पूरे 31 साल तक चलता रहा। यह जद्दोजहद 5 जून, 2013 को उस समय जाकर खत्म हुई, जब लखनऊ में सीबीआई की विशेष अदालत ने अपना फैसला सुनाया। कोर्ट ने केपी सिंह की हत्या के आरोप में 18 पुलिसवालों को दोषी ठहराया। फैसले के वक्त तक किंजल बहराइच की डीएम बन चुकी थीं। 

किंजल के पिता डीएसपी केपी सिंह आईएएस बनना चाहते थे और उनकी हत्या के कुछ दिन बाद आए परिणाम में पता चला कि उन्होंने आईएएस मुख्य परीक्षा पास कर ली थी। किंजल बताती हैं, ‘जब मां कहती थीं कि वो अपनी दोनो बेटियों को आईएएस अफसर बनाएंगी तो लोग उन पर हंसते थे।’

2004 में किंजल सिंह ने दिल्ली यूनिवर्सिटी में किया टॉप

मां के संघर्षों के बीच किंजल ने दिल्ली यूनिर्वसिटी के लेडी श्रीराम कॉलेज में एडमिशन लिया। ग्रेजुएशन के दौरान उन्हें पता चला कि उनकी मां को कैंसर हो गया है। कीमोथैरेपी के कई राउंड से गुजरने के बाद भी किंजल की मां विभा सिंह की हालत बेहद खराब हो गई थी लेकिन उन्होंने बीमारी से लड़ने में हिम्मत हारी।

किंजल बताती हैं, ‘एक दिन डॉक्टर ने मुझसे कहा, क्या तुमने कभी अपनी मां से पूछा है कि वो किस तकलीफ से गुजर रही हैं? जैसे ही मुझे इस बात का एहसास हुआ, मैंने ठान लिया कि पापा को इंसाफ दिलवाऊंगी।’ इन सबके बीच बीमारी से लड़ते हुए 2004 में उनकी मां की मौत हो गई।

जिस साल उनकी मौत हुई उसी साल किंजल ने दिल्ली यूनिवर्सिटी टॉप किया। इस बीच किंजल ने अपनी छोटी बहन को भी दिल्ली बुला लिया। दोनों बहनें आईएएस की तैयारी में लग गईं। किंजल बताती हैं, ‘हम दोनों दुनिया में अकेले रह गए। हम नहीं चाहते थे कि किसी को भी पता चले कि हम दुनिया में अकेले हैं।’

2008 में दूसरी कोशिश में किंजल का चयन आईएएस के लिए हो गया। उसी साल प्रांजल भी आईआरएस के लिए चुन ली गईं। आज किंजल सिंह जिस मुकाम पर हैं उसके पीछे वो अपने मौसा-मौसी और प्रांजल का धन्यवाद देना नहीं भूलती।

 

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