किसान की लागत और कर्ज बढ़ रहा, लेकिन नहीं बढ़ रही उपज

किसानों की समस्याओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति ने कहा है कि किसानों की लागत और कृषि के लिए लिए जाने वाले कर्ज का बोझ बढ़ रहा है, लेकिन कृषि उपज नहीं बढ़ रही। समिति ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट दाखिल की है। इसमें कृषि संकट के कारणों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है, जिनमें स्थिर उपज, बढ़ती लागत और कर्ज और अपर्याप्त मार्केटिंग सिस्टम शामिल हैं।

शंभू बार्डर पर आंदोलन कर रहे किसानों की शिकायतों को हल करने के लिए पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश नवाब सिंह की अध्यक्षता में दो सितंबर को उच्चाधिकार प्राप्त समिति गठित की थी। समिति का गठन करते समय, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसानों के विरोध का राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए। समिति में सेवानिवृत्त आइपीएस अधिकारी बीएस संधू, मोहाली निवासी देविंदर शर्मा, प्रोफेसर रंजीत सिंह घुमन और पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के कृषि अर्थशास्त्री डा. सुखपाल सिंह शामिल हैं।

समिति ने शीर्ष अदालत के विचार के लिए 11 मुद्दे तैयार किए

एमएसपी को कानूनी मान्यता की संभावना तलाशने सहित समाधान सुझाएसमिति ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी मान्यता और प्रत्यक्ष आय सहायता देने की संभावना तलाशने सहित विभिन्न समाधान भी सुझाए। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने शुक्रवार को अंतरिम रिपोर्ट को रिकार्ड पर लिया और समिति के प्रयासों और जांच किए जाने वाले मुद्दों को तैयार करने के लिए उसकी प्रशंसा की।

समिति ने शीर्ष अदालत के विचार के लिए 11 मुद्दे तैयार किए हैं। इनमें कृषि को पुनर्जीवित करने के उपाय, बढ़ते कर्ज बुनियादी कारणों की जांच करना, किसानों और ग्रामीणों के बीच बढ़ती अशांति के कारणों की जांच करना शामिल है। इससे किसानों और सरकार के बीच विश्वास बहाल करने में मदद मिलेगी। बढ़ते कर्ज संकट पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है ताकि कर्ज में डूबे किसानों और कृषि श्रमिकों को राहत मिल सके।

हाल के दशकों में किसानों और कृषि श्रमिकों पर कर्ज कई गुना बढ़ गया

दो दशक से अधिक समय से संकट का सामना कर रहे किसान समिति ने अंतरिम रिपोर्ट में कहा, देश में किसान विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा के किसान दो दशक से अधिक समय से लगातार बढ़ते संकट का सामना कर रहे हैं। हरित क्रांति के शुरुआती लाभ के बाद, पिछली सदी के नौवें दशक के मध्य से उपज और उत्पादन वृद्धि में ठहराव से संकट की शुरुआत हुई। हाल के दशकों में किसानों और कृषि श्रमिकों पर कर्ज कई गुना बढ़ गया है। कृषि उत्पादकता में गिरावट, बढ़ती उत्पादन लागत, अपर्याप्त मार्केटिंग सिस्टम और सिकुड़ते कृषि रोजगार से कृषि आय वृद्धि में गिरावट आई है। कृषि श्रमिकों के साथ-साथ छोटे और सीमांत किसान इस आर्थिक मंदी से सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं।

जलवायु आपदा और इसके घातक परिणाम

जलवायु आपदा भी खाद्य सुरक्षा को कर रहे प्रभावित समिति ने यह भी कहा कि जलवायु आपदा और इसके घातक परिणामों, जिसमें घटता जलस्तर, बार-बार सूखा पड़ना, कुछ क्षेत्रों में अत्यधिक वर्षा का पैटर्न, भीषण गर्मी शामिल हैं, कृषि क्षेत्र और खाद्य सुरक्षा को बड़े पैमाने पर प्रभावित कर रहे हैं। फसल-अवशेषों का प्रबंधन भी कृषि में गंभीर चुनौती बन गया है। समिति ने कहा कि देशभर में किसान की आत्महत्या कर रहे हैं। भारत में 1995 से लेकर अब तक चार लाख से अधिक किसानों और कृषि श्रमिकों ने आत्महत्या की है।

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