एक्सपर्ट्स ने दुनिया भर को चेताया, होने वाली हैं…

बाजार और अर्थव्यवस्था के जानकारों का कहना है कि कोरोना महामारी ने इस बात को साफ कर दिया है कि दुनिया के देशों के बीच दूरी चाहे कितनी भी क्यों न हो इसके बावजूद यह दुनिया परस्पर जुड़ी हुई है. इस बीच कुछ चुनौतियों ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को प्रभावित कर दिया है. इस वजह से लोगों के नेटवर्क, कंपनियों के काम और यहां तक कि ट्रांसपोर्ट के साधनों पर भी असर पड़ा है. 

मांग में कमी आने का अनुमान

इस साल अब एक्सपर्ट्स का सारा ध्यान लोगों की गुजर बसर की बढ़ती लागत पर फिक्स हो गया है. उनका कहना है कि वर्तमान स्थितियों में कुछ चीजें बाजार में मौजूद सामान के प्रकार और उसकी मात्रा को भी प्रभावित करेंगी. इसलिए घरेलू बिलों में बढ़ोतरी और मुद्रास्फीति के प्रभाव से मांग में कुछ हद तक कमी आ सकती है.

सप्लाई चेन होगी प्रभावित

ग्लोबल लॉजिस्टिक्स एक्सपर्ट्स का मानना है कि बड़े पैमाने पर दुनिया के कई हिस्सों में कुछ निश्चित सामान के पहुंचने में देरी हो सकती है, खासकर एशियाई देशों में बने और पश्चिमी बाजारों में एक्सपोर्ट होने वाले प्रोडक्ट्स के मामले में ऐसा हो सकता है. एक स्टडी में सप्लाई चेन के इन पांच मुद्दों पर विस्तार से आपको बताते हैं.

सर्दियों के मौसम में क्या होगा?

1. जीवन यापन की लागत बढ़ेगी

आसमान छूती महंगाई ने खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों से परिवारों को बुरी तरह प्रभावित किया है. इस सर्दी में उपभोक्ताओं के खर्च में भारी कटौती करने की आशंका ने वस्तुओं और सेवाओं की मांग को अनिश्चितता में डाल दिया है. इससे सप्लाई और लॉजिस्टिक्स एक्सपर्ट्स के लिए उपभोक्ताओं द्वारा आवश्यक वस्तुओं की मात्रा और प्रकार का सटीक अनुमान लगाना मुश्किल हो जाता है. 2022 में मांग की भविष्यवाणी करना और भी मुश्किल हो गया है. फिर भी अनुमान लगाया जा रहा है कि चीजों के दाम बढ़ेंगे और बड़े पैमाने पर निर्यात प्रभावित हो सकता है.

2. विकसित देशों की बढ़ी चुनौतियां

जीवन यापन की लागत में बढ़ोतरी के चलते पूरी दुनिया में सैलरी पैकेज बढ़ाने की मांग तेजी से बढ़ी है. दक्षिण कोरिया में हड़ताली ट्रक ड्राइवरों ने इस गर्मी में पहले ही कंप्यूटर सप्लाई चेनको बाधित कर दिया है, जबकि ब्रिटेन की रेलवे हड़ताल ने निर्माण सामग्री की डिलीवरी को प्रभावित किया है. जर्मनी और यूके में कर्मचारी हड़ताल पर हैं, जबकि आयरलैंड में पोर्ट ऑफ लिवरपूल पर आयरिश सागर के पार हड़ताल के कारण फ्रेट हब बंद होने की आशंका है. ब्रिटेन की कुछ यूनियनों ने आने वाले महीनों में सामूहिक हड़ताल का मन बनाया है, जिससे सप्लाई चेन में बाधा आ सकती है. इसके अलावा, 2021 में सामने आई ट्रक ड्राइवरों की कमी इस साल भी बनी हुई है. दूसरी ओर कुशल कामगारों की कमी अब उन सेक्टर्स तक पहुंचत गई है जो बंदरगाहों और गोदामों सहित आपूर्ति श्रृंखलाओं से जुड़े हैं. 

3. ऊर्जा की कमी

मुद्रास्फीति न केवल खाद्य कीमतों के लिए बल्कि ऊर्जा लागत के लिए भी एक समस्या रही है. गैस की बढ़ती कीमतें और रूस से कम आपूर्ति यूरोपीय कंपनियों को कोयले जैसे वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों की तरफ देखने के लिए मजबूर कर रही है, जबकि जर्मनी के चैंबर्स ऑफ इंडस्ट्री एंड कॉमर्स के शोध से पता चलता है कि इसकी 16% कंपनियां उत्पादन को कम करने या आंशिक रूप से व्यावसायिक संचालन को बंद करने के कगार पर हैं.

जर्मनी यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है जो पूरी तरह से निर्यात पर निर्भर है. अगर जर्मनी में मंदी आती है तो वैश्विक स्तर पर मैनुफैक्चरिंग सप्लाई चेन प्रभावित होगी. हालात ऐसे हैं कि जो देश रूस की गैस पर कम निर्भर हैं, वो भी बिजनेस के लिए ऊर्जा की कीमतों में बढ़ोतरी महसूस कर रहे हैं. पाकिस्तान ने ऊर्जा की मांग कम करने के लिए अपने कार्य सप्ताह को छोटा कर दिया है. नॉर्वे में सप्लाई चेन पर असर पड़ने से यूरिया के प्रोडक्शन में कमी आई है.

अमेरिकी खुदरा विक्रेता अपनी सेल के पूर्वानुमान को कम कर रहे हैं. ब्रिटेन के कार निर्माता अपने प्रोडक्शन को लेकर चिंतित हैं. दक्षिण-पश्चिमी चीन में, बिजली की कमी के कारण कार असेंबली प्लांट और इलेक्ट्रॉनिक्स कारखाने पहले ही बंद होने लगे हैं. इन सभी व्यवधानों से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में हलचल होगी.

4. भू-राजनीतिक अनिश्चितता

यूक्रेन पर रूस के हमले की वजह से अधिकांश देशों महंगाई बढ़ी है. इस हमले से दुनिया की कई सप्लाई चेन अस्त-व्यस्त हो गई हैं. जिससे वैश्विक खाद्य संकट पैदा हो गया है. यूरिया की कमी भी कई देशों में कृषि उत्पादन को सीमित कर रही है. दुनिया के अन्य हिस्सों में, महामारी के पहले से ही चीन और अमेरिका के बीच चल रहे तनाव का प्रभाव जारी है. अमेरिकी हाउस स्पीकर नैन्सी पेलोसी की ताइवान की यात्रा के बाद वहां हुए चीन के सैन्य अभ्यास ने अगस्त में दुनिया के सबसे व्यस्त समुद्री मार्ग को बाधित कर दिया. इससे वैश्विक व्यापार पर असर पड़ा

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