रोज बढ़ रही थी भगवान गणेश की मूर्ति, एक दिन ठोक दी गई कील
सागर में कई प्राचीन देवी-देवताओं के मंदिर हैं, जो लोगों की आस्था के केंद्र बने हुए हैं, लेकिन अगर बात की जाए प्रथम पूज्य भगवान श्री गणेश की, तो सबसे पहले पुरव्याऊ स्थित गणेशघाट पर स्थित शिवाजी कालानी प्राचीन अष्टविनायक गणेश मंदिर का नाम आता है. कहा जाता है कि सैकड़ों साल पहले लाखा बंजारा झील (तालाब) के किनारे खुदाई के दौरान भगवान श्री गणेश जी की मूर्ति प्राप्त हुई थी. खास बात यह है कि एक ही पत्थर में भगवान गणेश के साथ हनुमान जी और रिद्धि-सिद्धि विराजमान हैं. गणेश प्रतिमा मिलने के बाद इस तालाब के घाट का नाम गणेश घाट रखा गया.
मुंबई के सिद्धिविनायक की तर्ज पर बना मंदिर
मंदिर के पंडित गोविंद राव आठले बताते हैं कि लाखा बंजारा झील के किनारे प्राप्त स्वयंभू प्रतिमा की ऊंचाई बढ़ती रही. प्रतिमा की ऊंचाई बढ़ते देख शंकराचार्यों ने मंत्रोच्चारण कर भगवान गणेश के सिर पर कील ठोक दी, जिससे उनकी ऊंचाई बढ़ना बंद हो गई. यह अष्टकोणीय मंदिर मुंबई के सिद्धिविनायक की तर्ज पर है.
मराठा शासक गोविंद पंत बुंदेले ने कराया निर्माण
मंदिर के निर्माण को लेकर कुछ मतभेद हैं. जाने-माने इतिहासकार डॉ. रजनीश जैन के अनुसार, मंदिर का निर्माण 1735 के आसपास मराठा शासक गोविंद पंत बुंदेले ने कराया था. उनके अनुसार, मंदिर के संस्कृत अभिलेख इस बात की पुष्टि करते हैं. बुंदेलखंड की रक्षा के लिए आए पेशवा बाजीराव बल्लाल ने महाराजा छत्रसाल के निधन के बाद राज्य के तीसरे हिस्से को संभालने के लिए 1733 में अपने प्रिय योद्धा गोविंद पंत को बुंदेला उपाधि के साथ सागर भेजा था. उन्होंने पहले यह मंदिर बनवाया, फिर सागर किला और परकोटों का नवनिर्माण कराया. मंदिर में लगे दो सती स्तंभों में से एक गोविंद पंत की पत्नी बाई साहिब के सती होने का गवाह भी है.
1638 में गणेश प्रतिमा की स्थापना
पुजारी आठले के अनुसार, झील के किनारे खुदाई में वर्ष 1603 में भगवान गणेश की मूर्ति प्राप्त हुई थी. एक ही शिला में भगवान गणेश के साथ हनुमान जी और रिद्धि-सिद्धि विराजमान थे. इसके बाद मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हुआ, जो 35 वर्षों के बाद वर्ष 1638 में पूरा हुआ. मंदिर का निर्माण मराठे, भोसले, शिंदे और सागर के 11 महाराष्ट्रियन समाज के लोगों ने कराया. इसके बाद वर्ष 1640 में मंदिर में प्रतिमा की स्थापना की गई.