नियमितीकरण की घोषणा के बाद अब कर्मचारियों की नजर सेवाकाल पर, दो बार सरकारों ने किए हैं प्रयास

नियमितीकरण पर सीएम पुष्कर सिंह धामी की घोषणा के बाद अब विभिन्न विभागों में सेवाएं दे रहे संविदा, उपनल कर्मचारियों की निगाहें सेवाकाल व कटऑफ के पैमाने पर हैं। राज्य में इससे पहले दो बार नीतियां बनाई गईं, जिसमें अलग-अलग सेवा अवधि रखी गई थी।

वर्ष 2013 से पूर्व तक संविदा, आउटसोर्स कर्मचारियों के नियमितीकरण का कोई प्रावधान नहीं था। दैनिक वेतन, कार्यप्रभारित, संविदा, नियत वेतन, अंशकालिक तथा तदर्थ रूप में नियुक्त कार्मिकों का विनियमितीकरण नियमावली वर्ष 2013 में आई थी, जिसमें कर्मचारियों के लगातार 10 साल की सेवा को आधार बनाकर नियमित करने का प्रावधान था। यह नियमावली विवादों में आ गई और हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी।

इसके बाद वर्ष 2017 में हरीश रावत सरकार ने दोबारा कवायद शुरू की। इसमें सेवाकाल 10 साल से घटाकर पांच साल कर दिया गया था। इस पर भी आपत्तियां हुई और हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी। इसके बाद से लगातार नियमितीकरण की प्रक्रिया मांग से आगे नहीं बढ़ पाई। अब धामी सरकार की घोषणा के बाद कर्मचारियों की उम्मीदें फिर जगी हैं। उनकी निगाहें सेवा अवधि और कटऑफ पर हैं।

हम लंबे समय से नियमितिकरण की लड़ाई लड़ रहे हैं। श्रम न्यायालय, हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट से इस संबंध में निर्णय आ चुके हैं। अब मुख्यमंत्री धामी का आभार जताते हैं। सभी साथी उत्साहित हैं। उम्मीद है कि जल्द ही नियमावली जारी होगी और 15 से 18 साल तक सेवा करने वाले उपनलकर्मी नियमित होंगे। -विनोद कवि, संयोजक, विद्युत एकता मंच

Back to top button