आसानी से माफ कर देना, पीठ पीछे बुराई न करना जैसी आदतें बनाती हैं…
हाल ही में ऑफिस में मेरी टीम में कुछ लोगों की ज्वॉइनिंग हुई। जिसमें दो लड़कियां और चार लड़के थे। ज्वॉइनिंग के पहले दिन तो उन सबमें आपस में कुछ खास बातचीत नहीं हुई, लेकिन अगले ही दिन से दोनों लड़के ऐसे बात कर रहे थे, जैसे दो बिछड़े यार मिल गए हों। वहीं दूसरी ओर चार लड़कियां थी, लेकिन उनका आपस में कोई हाय-हैलो नहीं था। दिन, हफ्ते, महीने भर बाद उनकी दोस्ती यहां तक पहुंची थी कि वो साथ में बैठकर लंच करती थीं। उनकी ये दोस्ती ऑफिस तक ही सीमित थी, वहीं लड़के ऑफिस के बाद कभी पार्टी की, तो वीकेंड में ट्रिप का स्टेटस लगाते रहते थे। इस सिचुएशन को देखते हुए मैंने गौर करना शुरू किया कि आखिर क्यों महिलाओं के मुकाबले पुरुषों की दोस्ती जल्दी हो जाती है और लंबी भी चलती है। इसे लेकर मैंने अपने मेल फ्रेंड्स से भी बात की और उन्होंने भी कई सारे कारण बताएं, जो काफी हद तक मुझे सही लगे।
बिंदास रहने की आदत
जहां महिलाएं किसी से दोस्ती करने से पहले उसका नेचर, मूड, बात करने का तरीका जैसी कई सारी चीजों पर गौर करती हैं, वहीं पुरुषों के लिए ये सारी चीजें मायने नहीं रखती। उनके लिए दोस्ती का मतलब बस विचार मिलना है।
भूलने की आदत
दोस्ती के रिश्ते में छोटी-मोटी बातों को भूलना, माफ करके आगे बढ़ना अच्छी बात होती है, जो पुरुषों के लिए बड़ा टास्क नहीं होता, लेकिन महिलाओं के लिए ऐसा करना मुश्किल होता है। जिस वजह से कई बार अच्छी-खासी दोस्ती टूट भी जाती है।
बातों को दिल से न लगना
दोस्ती को बेफ्रिकी का रिश्ता है। तोल-मोल कर तो हम रिश्तेदारों के सामने बोलते हैं, दोस्तों के सामने तो जो मुंह में आया बोल देते हैं। दोस्त ने दिल को दुखाने वाली कोई बात कहीं, तो पुरुष रिएक्ट करके भूल जाते हैं और इसके बारे में ज्यादा नहीं सोचते, वहीं महिलाएं ऐसा नहीं कर पातीं। इसकी एक वजह उनका सेंसिटिव नेचर भी होता है। जो गलत नहीं है, लेकिन दोस्ती के मामले में कई बार इससे परेशानी हो जाती है।