अब साउथ सिनेमा में दिखेगा मिर्जापुर के ‘मुन्ना भैया’ का जलवा, सरनेम हटाने की बताई वजह

प्राइम वीडियो की वेब सीरीज मिर्जापुर से मुन्ना भैया के किरदार से ऑडियंस के दिलों में खास जगह बनाने वाले अभिनेता दिव्येंदु (Divyenndu) अब साउथ सिनेमा में भी अपने धाक जमाने के लिए तैयार है। वह किस सुपरस्टार संग काम कर रहे हैं और अन्य कई पहलुओं पर दिव्येंदु ने खुलकर बात की है।
कभी प्यार का पंचनामा जैसी फिल्म से हंसाने, तो कभी मुन्ना भैया जैसी भूमिका से दबंग छवि बनाने वाले अभिनेता दिव्येंदु शर्मा का हालिया प्रदर्शित म्यूजिक वीडियो जुल्मी सांवरिया में एक नया रूप दिखा।
इसमें वह गरबा के संगीत पर थोड़ा प्यार, रोमांस करते हुए नजर आ रहे हैं। दिव्येंदु ने हाल ही में अपने नाम से सरनेम ‘शर्मा’ हटाने का बड़ा निर्णय लिया। उनके इन सभी विषयों पर बातचीत-
स्याह और कॉमेडी भूमिकाओं के बीच डांस और रोमांस का प्रस्ताव मिला, तो पहला ख्याल क्या आया?
सबसे पहले तो मैं स्वयं बहुत उत्साहित हुआ कि कुछ नया करने को मिल रहा है। स्वयं को एक नई चुनौती देने का मौका मिल रहा था, क्योंकि इससे पहले मैंने इस तरह का गुजराती गरबा जैसा कुछ नहीं किया था। हां, कुछ फिल्मों में डांस नंबर किया है। फिर जब इसका प्रस्ताव मिला तो सोचा क्यों ना इसको किया जाए। l
आप तो दिल्ली में पले-बढ़े हैं, फिर भी क्या कभी गरबा करने या उससे जुड़ने का मौका मिला?
नहीं, इससे पहले मैंने कभी गरबा नहीं किया है। हां, जब एफटीआइआइ (फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट आफ इंडिया) में पढ़ता था, तो हमने वहां एक बार गरबा नाइट रखा था। उसमें कुछ कच्चे-पक्के जितने भी स्टेप आते थे, वो किया था। गरबा सभी लोग साथ में करते हैं, तो इसे देखने ,करने सब में बड़ा मजा आता है। इस गाने में भी मैंने गरबा के ज्यादा स्टेप्स नहीं किए है। हां कुछ स्टेप्स हैं, जो गरबा से प्रेरित हैं। मुझे यह करने में बहुत मजा आया।
मिर्जापुर के बाद शुक्राणु, मेरे देश की धरती, मडगांव एक्सप्रेस समेत ज्यादातर कॉमेडी प्रोजेक्ट्स करना रणनीति का हिस्सा है?
ईमानदारी से बताऊं तो अगले प्रोजेक्ट का निर्णय स्क्रिप्ट के ऊपर निर्भर करता है। जब स्क्रिप्ट पढ़कर लगता है कि हां ये दुनिया मजेदार है, मुझे इसमें जाना चाहिए। यह पात्र कुछ नया है। बाकी कामेडी तो जिंदगी में है ही। जिंदगी में हंसी-मजाक तो चलता रहता है।
सरनेम हमारे यहां काफी महत्वपूर्ण होता है, फिर आपने उसे हटाने का निर्णय क्यों लिया?
मेरे सभी आधिकारिक दस्तावेजों में मेरा नाम अभी भी दिव्येंदु शर्मा ही है। मुझे लगता है कि बतौर कलाकार आपका पहला नाम ही आपकी पहचान होनी चाहिए। आप किस जाति या धर्म से आते हैं, अपने ऊपर बिल्कुल भी इसका भार लेकर नहीं चलना चाहिए। मैं कालेज के समय से ही यह बात सोचा करता था। अंततः मैंने निर्णय लिया कि लोगों को मुझे दिव्येंदु नाम से ही जानना चाहिए। बाकी, सरनेम शर्मा, वर्मा, गुप्ता कुछ भी हो उससे फर्क नहीं पड़ना चाहिए। हमारे भारत में ऐसी चीजें बहुत जरूरी हैं, क्योंकि जाति को लेकर आज भी लोगों का एक अलग नजरिया है।
तेलुगु में भी पदार्पण कर रहे हैं, उस इंडस्ट्री का क्या अनुभव रहा?
बहुत अच्छा और कुछ नया नवेला करने वाला अनुभव रहा। राम चरण, हमारे निर्देशक गुच्ची बाबू, सभी के साथ काम करने में बहुत ज्यादा मजा आया। बहुत अच्छी टीम है, एक अलग दुनिया है। वहां पहुंचने पर मुझे अपनी पहली फिल्म प्यार का पंचनामा करते हुए मिले सारे अनुभव याद आ गए। वहां के लिए नई भाषा सीखना, नई संस्कृति में ढलना, नए लोगों से मिलना सब नया था। सब कुछ मिलाकर काम करने का अच्छा अनुभव रहा।
मिर्जापुर के मुन्ना भैया वाली छवि से पेशेवर तौर पर अपने लिए क्या फायदे-नुकसान देखते हैं?
इसमें सकारात्मक चीजें ही ज्यादा हैं। लोग अगर कलाकार को उसके काम से सराहें, तो उसके लिए उससे बड़ी चीज और कुछ नहीं हो सकती है। विलियम शेक्सपियर ने कहा था कि व्हाट्स देयर इन द नेम, मतलब नाम में क्या रखा है। लोगों को आपको आपके काम से जानना चाहिए। हां, मन में यह भी रहता है कि अगर आपका कोई काम लोगों को जम गया, तो उसका भार अपने ऊपर नहीं आने देना चाहिए। उसको छोड़कर आगे बढ़ना चाहिए और नई चीजें करनी चाहिए। कई लोग हैं, जो अपनी उसी छवि को आगे लेकर चलते हैं।
आप मिर्जापुर 3 का हिस्सा नहीं रहे, लेकिन मिर्जापुर फिल्म में हैं। मुन्ना के उसी हाव-भाव और शैली को दोबारा पकड़ना कितना चुनौतीपूर्ण है?
उम्मीद है कि वो हो जाए। मुझे थोड़ी चिंता है कि मुझे वही चीज दोबारा शूट करनी है। पता नहीं, उस पात्र का व्यक्तित्व अभी भी मेरे अंदर है या नहीं है? मैं भी इसे लेकर काफी नर्वस हूं। वो बहुत ही गंभीर और स्याह पात्र है, उसमें उतरने और उससे निकलने, दोनों में काफी समय लगता है।