DGP की नियुक्ति प्रक्रिया में पहले ही यूपी सरकार कर चुकी है बदलाव

उत्तर प्रदेश समेत सात राज्यों में कार्यवाहक डीजीपी नियुक्ति का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। अदालत ने इसे लेकर सात राज्यों को नोटिस भेजकर जवाब मांगा है। हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार ने अदालत में जवाब देने से पहले अपनी नई नियमावली बना ली, जिसमें डीजीपी की तैनाती राज्य सरकार की ओर से गठित कमेटी को करने का अधिकार दे दिया गया। इसमें रिटायर्ड जस्टिस हाईकोर्ट, रिटायर्ड डीजीपी उत्तर प्रदेश, मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव गृह, संघ लोकसेवा आयोग के एक सदस्य के साथ-साथ मौजूद पूर्णकालिक डीजीपी को रखा गया।

दरअसल, 5 नवंबर को कैबिनेट में आए इस प्रस्ताव को पास होने के बाद से अब तक इससे संबंधित नियमावली सार्वजनिक नहीं की गई है और न ही कमेटी का गठन किया गया, जिससे डीजीपी की स्थायी नियुक्ति हो सके। हालांकि उत्तर प्रदेश में कार्यवाहक डीजीपी के रूप में प्रशांत कुमार काम कर रहे हैं। लेकिन 3 दिन के अन्दर उनकी नियुक्ति स्थाई डीजीपी के तौर पर नहीं होती तो उनकी स्थाई नियुक्ति होना मुश्किल हो जाएगा।  इसलिए 3 दिन के अंदर कमेटी गठित करके डीजीपी की नियुक्ति के लिए बैठक जरूरी है। ऐसे में अगर 30 नवंबर से पहले डीजीपी की नियुक्ति के लिए बैठक नहीं होती है तो प्रशांत कुमार स्थायी डीजीपी की रेस से बाहर हो सकते हैं।

जानिए नियुक्ति की क्या प्रक्रिया
यूपी में डीजीपी के चयन के लिए UP पुलिस बल प्रमुख के चयन और नियमावली 2024 को कैबिनेट में मंजूरी दे दी गई है। अब डीजीपी का चयन हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता वाली कमेटी करेगी। एक बार चुने जाने के बाद डीजीपी को 2 साल का कार्यकाल मिलेगा। इसके लिए चयन के वक्त 6 महीने की सर्विस का बचा होना जरूरी होगा। हालांकि नियमावली में ये भी कहा गया है कि किसी भी आपराधिक या भ्रष्टाचार के मामले में या अपने कर्तव्यों का पालन करने में विफल रहने पर राज्य सरकार, डीजीपी को उनके पद से 2 वर्ष का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही हटा सकती है। इसमें यह भी कहा गया है कि पुलिस महानिदेशक को उनके पद से हटाने संबंधित प्रावधानों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित दिशा निर्देशों का पालन किया गया है।

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