दिल्ली: पुराने रंग-रूप में नजर आएगा लोदी का मकबरा, गुड़-दाल का किया जाएगा इस्तेमाल

लोदी गार्डन में स्थित ऐतिहासिक मकबरे और मस्जिद अपने पुराने रंग रूप में नजर आएंगे। मोहम्मद शाह, बड़ा गुंबद मस्जिद, शीश गुबंद, सिकंदर लोदी व अठपुला स्मारक का सरंक्षण किया जाएगा। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) इनके सरंक्षण का कार्य जल्द शुरू करेगा। इससे यहां आने वाले देशी-विदेशी पर्यटकों को यह स्मारक आकर्षित करेगा।

विशेष रूप से सिकंदर लोदी का मकबरा, बड़ा गुंबद, शीश गुंबद में रखरखाव का अभाव है। हालांकि, यहां बड़ा गुंबद के मुख्य गुंबद का संरक्षण का कार्य किया गया है। इसके अलावा इल्युमिनेशन का कार्य किया गया है। इससे यह स्मारक रात में रोशन रहता है। एएसआई के वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक इसके संरक्षण के लिए टेंडर निकाला है। इसे जल्द ही धरातल पर उतारा जाएगा।

सिकंदर लोदी का मकबरा का बाहरी गुंबद बदहाल स्थिति में है। जगह-जगह से पत्थर निकले हुए हैं। वहीं, वर्गाकार चबूतरे की दो छतरियों का रखरखाव नहीं हो रहा है। सिकंदर लोदी ने 1489-1517 तक शासन किया। वहीं, बड़ा गुंबद मोहम्मद शाह के मकबरे से तीन सौ मीटर पर स्थित है। इसकी टूटती दीवारें, महराब और कमजोर होती नींव बदहाली की कहानी कह रही है। इसी तरह शीश गुंबद के ऑर्च से पत्थर निकले हैं।

उधर, इसमें कई जगहों पर दरारें आ गई हैं। इनकी खाली जगहों को भरा जाएगा। सिकंदर लोदी के मकबरे से थोड़ी दूर पूर्व में सात मेहराबों वाला एक पुल है, जिसे नाले पर बनाया है। इस पुल का निर्माण बादशाह अकबर के शासन काल (1556-1605) के दौरान नवाब बहादुर नामक व्यक्ति ने करवाया था। इसका भी सरंक्षण होगा।

सैयद वंश के तीसरे शासक मुहम्मद शाह थे। जिनका शासन 1434-44 तक रहा। इनके शासन काल में कई कार्य किए गए। इसमें लोदी राजवंश से सिकंदर लोदी का मकबरा है, जिसे 1517 में उनके बेटे इब्राहिम लोदी ने बनाया था।

इन ऐतिहासिक इमारतों का सरंक्षण को लेकर तैयारी चल रही है। इनका जल्द संरक्षण कार्य किया जाएगा।-प्रवीण सिंह, दिल्ली सर्कल चीफ व सुपरिटेंडेंट आर्कियोलॉजिस्ट, एएसआई

गुड़-दाल का किया जाएगा इस्तेमाल
मकबरे और गुंबद के संरक्षण के लिए गुड़, उड़द, बेलपत्र के फल, गोंद जैसी चीजें इस्तेमाल किया जाएगा। इसके लिए राजस्थान व मध्यप्रदेश से कारीगर को बुलाया जाएगा। एएसआई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि यह ऐसी पद्धति है, जिससे बनी इमारतें लंबे समय तक खराब नहीं होती है। स्मारकों के संरक्षण में इसी पद्धति का इस्तेमाल किया जाएगा। शीश गुंबद में ऑर्नामेंटल प्लास्टर किया जाएगा।

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