दिल्ली में नहीं दिखेगा कूड़े का पहाड़, निगम कर रहा है अपनी क्षमता का विस्तार
दिल्ली के तीनों कूड़े के पहाड़ अगले तीन साल में नहीं दिखेंगे। पहला फेज खत्म होने के बाद एमसीडी लैंडफिल साइट खत्म करने के लिए दूसरे चरण पर काम करने जा रही है। दो साल बाद यहां की करीब 70 फीसदी गंदगी खत्म हो जाएगी। इसके अगले साल बाकी 30 फीसदी कचरा भी नहीं बचेगा। कचरा निपटान के लिए नगर निगम अपनी क्षमता का विस्तार कर रहा है। दिल्ली से निकलने वाले कचरे से बनी बिजली राजधानी को रोशन करेगी। वहीं, खाद से फसलें लहलहाएंगी।
दिल्ली के गाजीपुर, भलस्वा व ओखला सैनेटरी लैंडफिल साइट पर दो साल पहले तक कूड़े के पहाड़ साल-दर साल ऊंचे होते जा रहे थे। एक अनुमान के अनुसार, इनमें करीब 280 लाख मीट्रिक टन कूड़ा पड़ा हुआ था। वहीं, हर साल करीब 15 लाख मीट्रिक टन अतिरिक्त कूड़ा डाला जा रहा था। इसी बीच एमसीडी ने स्वच्छ भारत मिशन के तहत केंद्र सरकार से मिल रहे फंड से तीनों सैनेटरी लैंडफिल साइट को कूड़ा मुक्त बनाने की योजना तैयार की। इसे तीन फेज में पूरा होना है।
पहले फेज में 146 लाख मीट्रिक टन कूड़े का उठान
दो साल के पहले फेज में एमसीडी ने करीब 150 लाख मीट्रिक लाख टन कूड़ा उठवाने की योजना तैयार की। इस योजना के तहत 146 लाख मीट्रिक टन कूड़ा उठ चुका है। अब तीनों सैनेटरी लैंडफिल साइट पर करीब 160 लाख मीट्रिक टन कूड़ा है। दरअसल, बीते साल तीनों सैनेटरी लैंडफिल साइट पर करीब 30 लाख मीट्रिक टन कूड़ा डल गया और अगले तीन साल के दौरान 40 लाख मीट्रिक टन कूड़ा और डलने की संभावना है। इस बीच एमसीडी ने अब तीनों सैनेटरी लैंडफिल साइट से 120 लाख मीट्रिक टन कूड़े उठवाने की योजना बनाई है। स्थायी समिति का गठन होते ही इस योजना के तहत कूड़ा उठाने का कार्य शुरू होने की संभावना है। यह कूड़ा करीब दो साल में उठ जाएगा। इसके बाद तीसरे फेस में बचे हुए करीब 80 लाख मीट्रिक टन कूड़े को खत्म किया जाएगा।
हर दिन 11 हजार मीट्रिक टन निकलता कूड़ा
दिल्ली में प्रतिदिन लगभग 11 हजार मीट्रिक टन कूड़ा उत्पन्न होता है। इस कूड़े में से सात हजार मीट्रिक टन कूड़ा बिजली व खाद बनाने में उपयोग किया जाता है। एमसीडी छह हजार मीट्रिक टन से अधिक कूड़ा ओखला, तेहखंड, गाजीपुर व बवाना-नरेला में अपने बिजली बनाने वाले चार संयंत्रों को मुहैया कराती है, जबकि करीब सात सौ मीट्रिक टन कूड़े से खाद बनाती है। वहीं, करीब चार हजार मीट्रिक टन कूड़ा गाजीपुर व भलस्वा सैनेटरी लैंडफिल साइट में डाला जाता है। अब ओखला सैनेटरी लैंडफिल साइट में बहुत ही कम कूड़ा डाला जाता है।
तीन साल बाद कूड़े का उपयोग बिजली व खाद उत्पादन में होगा
एमसीडी तीन साल बाद प्रतिदिन निकलने वालेे समस्त कूड़े का उपयोग बिजली व खाद बनाने में उपयोग करेगी। इस कड़ी में उसने बवना-नरेला में कूड़े से बिजली बनाने वाला एक नया संयंत्र लगाएगी। इस संयंत्र में करीब चार हजार मीट्रिक टन कूड़े की खपत होने का अनुमान है। इसके अलावा वह ओखला में चल रहे बिजली बनाने के संयंत्र की क्षमता बढ़ाएगी। यहां अभी दो हजार मीट्रिक टन कूड़े की जरूरत होती है, जबकि इसकी क्षमता बढ़ने पर तीन हजार मीट्रिक टन कूड़े की आवश्यकता होगी। वहीं कूड़े सेे खाद बनाने की भी क्षमता बढ़ाई जाएगी। अभी एमसीडी पांच सौ मीट्रिक टन कूड़े से खाद बनाती है और उसने अगले वर्षों में आठ सौ मीट्रिक टन कूड़े से खाद बनाने की तैयारी की है।
नगर निगम कूड़ा निपटान की क्षमता का विस्तार कर रहा है। आने वाले समय में जितना कूड़ा पैदा होता है, उतने से बिजली और खाद बनाई जाएगी। इसके लिए कई तरह की योजनाओं पर काम हो रहा है। तीन साल में दिल्ली में लैंडफिल साइट नहीं दिखेगी।