दिल्ली: चुनावी रण में 10 साल से निर्दलीय और क्षेत्रीय दल गायब
दिल्ली के सियासी रण में कई निर्दलीय प्रत्याशी भी अपनी-अपनी किस्मत आजमाने उतरे हैं, लेकिन साल 2015 के बाद से निर्दलीय और क्षेत्रीय दल राजधानी की राजनीतिक सियासत से ओझल हो गए हैं।
दिल्ली के सियासी रण में कई निर्दलीय प्रत्याशी भी अपनी-अपनी किस्मत आजमाने उतरे हैं, लेकिन साल 2015 के बाद से निर्दलीय और क्षेत्रीय दल राजधानी की राजनीतिक सियासत से ओझल हो गए हैं। बीते दो विधानसभा चुनावों से भाजपा और आप के प्रत्याशी ही अपने सिर पर जीत का सेहरा बंधा पाई है।
वर्ष 1952 के विधानसभा चुनाव में 78 निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में उतरे थे। इसमें से एक निर्दलीय को ही जीत मिली थी, लेकिन 1956 में दिल्ली विधानसभा भंग कर दी गई। वहीं, 1993 के विधानसभा चुनाव में तीन निर्दलीय प्रत्याशियों ने जीत हासिल की। 1998 में भी जनता दल के एक प्रत्याशी और दो निर्दलीय प्रत्याशियों ने बदरपुर और सीलमपुर से जीत हासिल की थी। 2003 के विधानसभा चुनाव में बदरपुर में एनसीपी और जनता दल सेक्युलर से एक उम्मीदवार और नजफगढ़ विधानसभा से निर्दलीय प्रत्याशी को जीत मिली।
साथ ही, 2008 के विधानसभा चुनाव में बसपा के दो, लोक जनशक्ति पार्टी के एक और नजफगढ़ से एक निर्दलीय प्रत्याशी को जीत मिली। साल 2013 के विधानसभा चुनाव में जनता दल यूनाइटेड से एक, शिरोमणि अकाली दल से एक और मुंडका से एक निर्दलीय प्रत्याशी की जीत का सिलसिला बरकरार रहा, लेकिन 2013 से आप के दिल्ली की राजनीति में उदय के बाद से निर्दलीय, अन्य राष्ट्रीय दल और क्षेत्रीय दलों के प्रत्याशियों की जीत का सिलसिला मानो थम गया।
222 निर्दलीय उतरे, जीता कोई भी
2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों की बात करें, तो केवल आप और भाजपा उम्मीदवारों को ही जीत मिली। ऐसे में अन्य राष्ट्रीय दल, राज्य पार्टी और निर्दलीय प्रत्याशी जीत दर्ज नहीं करवा सके। 2015 में 222 निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में उतरे, जीत तो बहुत दूर, कई की जमानत तक जब्त हो गई। कई अन्य राज्य पार्टियां भी आप की आंधी में उड़ गईं। वहीं, 2020 के चुनाव में 148 निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में उतरे, लेकिन कोई भी जीत नहीं सका। इसके अलावा अन्य राज्य पार्टियों के प्रत्याशी भी चुनाव में हार गए।